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चुनौती पूर्ण है दिनकर के काव्य ‘उर्वशी’ को मंचित करना

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कुमार कृष्णन

ऋग्वेद में वैदिक संस्कृति की पहली कथा उर्वशी और राजा पुरुरवा की है। दो भिन्न संस्कृतियों की टकहराट की प्रतीक है यह मार्मिक प्रणय-गाथा। उर्वशी के लिए रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित किया गया था।
हाल ही में कला संस्कृति एवं युवा विभाग,बिहार सरकार के सौजन्य एवं जिला प्रशासन,मुंगेर के सहयोग से कला जागरण,पटना द्वारा रामधारी सिंह दिनकर की अविस्मरणीय कृति उर्वशी का मंचन मुंगेर में किया गया। मुंगेर में इस मंचन के मायने है क्योंकि मुंगेर प्रमंडल के बेगूसराय का सिमरिया गाँव दिनकर की जन्मभूमि है ।
नाटक के कथानक का मूल है कि उर्वशी स्वर्ग लोक की मुख्य अप्सरा थी। वह देवों के राजा इन्द्र की सभा में नृत्य किया करती थी। परम सुन्दरी उर्वशी ने अपना हृदय किसी को अर्पित नहीं किया था। एक बार उर्वशी अपनी अन्य सखियों के साथ भूलोक पर भ्रमण के लिए गई, जहाँ एक असुर की उन पर दृष्टि पड़ी और उसने उनके अपहरण का प्रयास किया। उर्वशी की चीत्कार को सुन राज पुरूरवा ने असुर पर आक्रमण कर उसे मुक्त करा लिया| उर्वशी और पुरुरवा से एक पुत्र का जन्म होता है जिसका पालन महर्षि च्यवन की पत्नी सुकन्या द्वारा किया जाता है। आयु के सोलह वर्ष के होने पर सुकन्या उसे पुरुरवा की राजसभा में ले जाती है। अंत में अपना राजपाट पुत्र आयु को सौंपकर पुरुरवा वन चले जाते हैं।
नाटक की शुरुआत उर्वशी के स्वर्ग से पृथ्वी पर आगमन से होती है, जहां वह पुरूरवा से मिलती है। दोनों में प्रेम होता है, लेकिन उर्वशी को स्वर्ग वापस जाना पड़ता है। पुरूरवा उसके बिना जीवन का अर्थ नहीं समझ पाता और आत्मसमर्पण कर देता है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की रचना उर्वशी का नाट्य मंचन दर्शकों को प्रभावित करने में पूरी तरह सफल होता है।
नाटक के सभी पात्र अपनी -अपनी भूमिका में खरे उतरते हैं। उर्वशी की भूमिका में यामिनी, पुरुरवा की भूमिका में कुमार सौरभ और औशिनरी की भूमिका में श्रीपर्णा चक्रवर्ती ने अपने अभिनय कौशल से दर्शकों को प्रभावित किया। वहीं अन्य पात्र सुकन्या/चित्रालेखा के रूप में श्वेता सुरभि, नट की भूमिका में सौरभ सिंह, नटी /कंचुकी की भूमिका में अपराजिता, रंभा की भूमिका में अंकिता चौधरी, मेनका की भूमिका में कशिश राज, सहकन्या की भूमिका में तान्या शर्मा ,अपाला की भूमिका में आन्या सिंह, निपुणिका की भूमिका में चन्दावती कुमारी, अमात्य की भूमिका में चंदन राज, विश्वमना की भूमिका में मिथलेश कुमार सिन्हा, राक्षस की भूमिका में हरिकृष्ण सिंह मुन्ना और प्रतिहारी की भूमिका में अरविंद कुमार अपने अपने किरदार के साथ न्याय करते दिखे।
नाटकों के मंचन में संगीत केवल एक सहयोगी तत्व ही नहीं अपितु एक अनिवार्य अंग है। भरत से लेकर आज तक संगीत नाटकों को न सिर्फ लोकप्रिय बनाता रहा है अपितु उसकी गूढ व्यंजनाओं को भी सरलीकृत रूप में लोक-हृदय तक पहँचाने में अपनी सार्थक भूमिका निभाता आ रहा है। इस नाटक में भी संगीत का प्रयोग किया गया है। छंदबद्धता, लयात्मकता और संगीतात्मकता सुंदर है।
नाटक में संगीत निर्देशन सरोज दास का था, जबकि संगीत रचना का, मुख्य गायन स्वर नंदिता चक्रवर्ती का और कोरस स्वर नेहा पांडे, खुशी कुमारी और समाहिता का था, जो प्रभावोत्पादक रहा।
स्त्र विन्यास, रीना कुमारी का, प्रकाश एवं ध्वनि, उपेन्द्र कुमार का और यामिनी तथा मनोज मयंक का रूप सज्जा
अनुकुल था।
नाटक के सहायक निदेशक डॉ. किशोर सिन्हा के अनुसार उर्वशी के बारे में तो हर काल में गद्य में, पद्य में काफी कुछ लिखा गया है, पर राष्ट्र कवि दिनकर के काव्य में पहुँच कर सिर्फ उर्वशी ही अवतरित नहीं हुई है, उसके पीछे नारी के प्रति एक चिरंतन दृष्टि, सामाजिक ताना -बाना, पुरुषवादी संस्कृति की सोच और उससे भी बढ़कर स्त्री के उदार हृदय की वाणी भी अवतरित हुई है, नहीं तो कोई कारण नहीं था कि उर्वशी पुत्र आयु को, पुरुरवा पत्नी औशिनरी खुले हृदय और अगाध क्षमता के साथ स्वीकार कर लेती है। इसे नाट्य रुप में संपादित करना चुनौती से कम नहीं था।
निर्देशक सुमन कुमार के निर्देशन में मंचित इस नाटक में कलाकारों ने बेहतरीन प्रदर्शन कर दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। यह नाटक प्रेम, बलिदान और मानवीय संवेदनाओं की गहराई को उजागर करता है।

 

(विभूति फीचर्स)

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