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धैर्य और संकल्प का प्रतीक: दरुमा गुड़िया की प्रेरणादायक कहानी

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लेखिका: नैना जैन

 

कहानी की दुनिया में एक समय था, जब जापान के एक छोटे से काल्पनिक गाँव में एक संत रहा करते थे, जिनका नाम था “दरुमा”। दरुमा संत अपने अद्भुत ज्ञान और अटूट धैर्य के लिए जाने जाते थे। गाँव के लोग उन्हें अपने मार्गदर्शक और प्रेरणा स्रोत के रूप में मानते थे। संत दरुमा का एक ही संदेश था—जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, कभी हार नहीं माननी चाहिए।

एक दिन, अपनी शिक्षा को और प्रभावी बनाने के लिए दरुमा संत ने एक खास गुड़िया बनाई, जिसे “दरुमा गुड़िया” कहा गया। यह गुड़िया दिखने में साधारण थी, लेकिन इसके पीछे का संदेश गहरा और प्रेरणादायक था। दरुमा गुड़िया गोल थी, जिसका निचला हिस्सा भारी था। जब भी इसे गिराया जाता, यह तुरंत फिर से खड़ी हो जाती। संत दरुमा ने इस गुड़िया के माध्यम से गाँव के लोगों को यह सिखाया कि जीवन में कितनी भी बार गिरना पड़े, हर बार उठने का साहस रखना चाहिए।

दरुमा गुड़िया का रंग लाल था, जो जापान में शुभता का प्रतीक माना जाता है। इसका चेहरा ध्यानपूर्वक बनाया गया था, लेकिन आँखें खाली थीं। संत दरुमा ने गाँव वालों को यह नई प्रथा सिखाई—जब वे कोई नया लक्ष्य तय करें, तो गुड़िया की एक आँख को रंग दें। और जब वह लक्ष्य प्राप्त हो जाए, तो दूसरी आँख को भी रंग दें। यह प्रक्रिया उन्हें अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित रहने और अपने सपनों को साकार करने की निरंतर प्रेरणा देती थी।

समय के साथ, दरुमा गुड़िया केवल एक खिलौना नहीं रही, बल्कि धैर्य, संकल्प और सफलता का प्रतीक बन गई। गाँव के लोग इसे शुभ अवसरों पर एक-दूसरे को उपहार के रूप में देने लगे, ताकि यह उन्हें जीवन के संघर्षों में मजबूत बने रहने की प्रेरणा देती रहे।

आज, दरुमा गुड़िया सिर्फ एक गाँव की नहीं, बल्कि पूरे जापान की एक प्रिय वस्तु है। यह काल्पनिक कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी चुनौतियाँ आएं, अगर हम अपने लक्ष्यों के प्रति दृढ़ रहें और लगातार प्रयास करते रहें, तो हम सफलता की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

दरुमा संत की यह कल्पित कहानी हमें धैर्य और संकल्प की महत्ता को समझाती है, और यह सिखाती है कि असफलताओं के बाद भी हमें अपनी कोशिशों में कमी नहीं आने देनी चाहिए।

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