साहित्यकार, लेखक, विचारक राष्ट्र की बौद्धिक निधि होती है – विचारों को पाठकों तक पहुंचाने में प्रिंट मीडिया का बहुमूल्य योगदान
वित्तमंत्री ने प्रिंट मीडिया को भारतीय समाचार पत्र दिवस का तोहफा 1 फरवरी 2025 को बज़ट में किसी पैकेज के रूप में देना समय की मांग-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – भारत आदि अनादि काल से हस्तलिखित व प्रिंट साहित्य का गढ़ रहा है। हम अगर भारत के इतिहास की गहराई में जाएं तो हमें रामायण, भागवत गीता सहित अनेक भाषाओं के अनेकों साहित्य ग्रंथ के रूप में अनमोल मोती मिलेंगे जो हमारी धरोहर है,हमारी सभ्यता,संस्कृति, संस्कार के प्रतीक हैं हम भारतीयों ने पीढ़ियों से इस साहित्य को संजोकर रखे हैं और आगे भी हम अगली पीढ़ियों के लिए संजोकर रखेंगे।आज अगर हम वर्तमान डिजिटल युग में हैं तो हमें इसका आधारभूत सहारा मिला है, अपने साहित्य को सुरक्षा से संरक्षित करने का, क्योंकि हस्तलिखित पौराणिक साहित्य की भी एक सीमा होती है और हो सकता था आगे के सैकड़ों हजारों सालों में यह विलुप्तता के कागार पर होता,परंतु डिजिटल क्रांति ने इसे अब सुरक्षित रखना संभव बना दिया है। अब हमें यकीन है हो चला है कि हमारा आदि अनादि काल का भारतीय साहित्य पूर्णत सुरक्षित रहेगा। परंतु इस डिजिटल युग में प्रिंट मीडिया की विलुप्तता के रूप में हमें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है, क्योंकि भारत की धरोहर कहे जाने वाली प्रिंट मीडिया अब विलुप्तता की कगार पर हैक्योंकि करीब हर समाचार संस्थान आज वित्तीय क्राइसिस से जूझ रहा है परिणामतःअनेक मासिकपाशिक व साप्ताहिक समाचार पत्र बंद हो गए हैं, कई दैनिक समाचार पत्र भी बंद हो चुके हैं तो कई बंद होने की कगार पर है, इस विषय पर आर्टिकल लिखने को मैंने इसलिए चुना क्योंकि 29 जनवरी 2025 को भारतीय समाचार पत्र दिवस है,तो वहीं 1 फ़रवरी 2025 को भारत की वित्त मंत्री बजट पेश करेंगी इसलिए इसे एक-दो दिन पहले प्रकाशित करना जरूरी है,ताकि इस आर्टिकल के माध्यम से मैं निवेदन माननीय वित्तमंत्री तक पहुंचेकि प्रिंट मीडिया के लिए कुछ आर्थिक पैकेज की घोषणा के लिए फंड का एलोकेशन किया जाए। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारीके सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, बजट 2025 से प्रिंट मीडिया को संजीवनी रूपी पैकेज का बेसब्री से इंतजार!
साथियों बात अगर हम 29 जनवरी 2025 को भारतीय समाचार पत्र दिवस की करें तो, हर साल हम देश के पहले मुद्रित समाचार पत्र के जन्म की याद में भारतीय समाचार पत्र दिवस मनाते हैं ।यह अंग्रेजी साप्ताहिक हिकीज बंगाल गजट था, जिसे 29 जनवरी, 1780 को एक आयरिश व्यक्ति ने शुरू किया था। इस दिन का उद्देश्य समाचार पत्रों को बढ़ावा देना और लोगों को हर दिन समाचार पत्र उठाकर पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना है। हिकी का बंगाल गजट ब्रिटिश शासन के दौरान समाचार और राय लाने के लिए जाना जाता था। इसने तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के प्रशासन की कड़ी आलोचना की और यह भारत में अपनी पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई के लिए महत्वपूर्ण था। यह साप्ताहिक प्रकाशित समाचार पत्र आम आदमी को प्रशासन और सत्ता में बैठे लोगों के करीब लाने की दिशा में एक बड़ा कदम था।
साथियों बात अगर आम आनें वाले बजट 2025 की करें तो इसमें प्रिंट मीडिया के लिए कुछ शासकीय सहयोग की व्यवस्था का बजट करना अपेशित है, क्योंकि कोरोना काल से ही पत्रकारों, संस्थान से जुड़े कर्मचारियों को वित्तीय समस्या की भारी परेशानी का सामना करना पड़ा है और शासन प्रशासन द्वारा मामूली राहत की घोषणा पत्रकारों के लिए की गई थी परंतु कोई इंसेंटिव या पैकेज नहीं दिया इसपर भी शासन से निवेदन है कि प्रिंट मीडिया कर्मचारियों के लिए बजट में एलोकेशन कर कोई राहत पैकेज और प्रिंट मीडिया संस्थानों को भी वित्तीय सहायता राहतकोष का निर्माण करना होगा,क्योंकि हम अगर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र का बारीकी से विश्लेषण करेंगे तो हजारों मीडिया संस्थान जिसमें मासिक, साप्ताहिक और दैनिक समाचार पत्र शामिल है, बंद पड़े हैं! क्योंकि आज के डिजिटल युग में वह घाटे में चल रहे थे, विज्ञापन आना बंद हो गए हैं, आय का दूसरा कोई साधन, स्त्रोत नहीं है ऊपर से कर्मचारियों पत्रकारों, ऑपरेटरों का वेतन और ऑफिस किराया, बिजली बिल, नगर पालिका, महानगर पालिका कर सहित अनेकों करो का बोझ।लॉकडाउन से ही प्रिंट मीडिया की हालत और भी खराब हुई है जिसका शासन प्रशासन को गंभीरता से रेखांकित कर प्रिंट मीडिया को विलुप्तता से बचाने, किसी वित्तीय, राहत कोष बनाने का रणनीतिक रोडमैप बनाने की जरूरत है, जिसकी जरूरत अभी आने वाले 1 फरवरी 2025 को बजट में करने की अपेक्षा है जिसका निवेदन मैं इस आलेख के माध्यम से कर रहा हूं।
साथियों बात अगर हम प्रिंट मीडिया की करें तो इसको हमें मिलकर विलुप्तता से हमें बचाना है, क्योंकि आज हम सब जानते हैं कि प्रिंट मीडिया की वित्तीय हालत नाजुक बनी हुई है। मेरा मानना है कि कुछ ही संस्थान को छोड़कर अधिकतम प्रिंट मीडिया संस्थान वित्तीय समस्याओं से जूझ रहे हैं क्योंकि वर्तमान डिजिटल युग में हालांकि पीडीएफ फाइल के सहारे प्रिंट मीडिया का विस्तार, प्रसार बड़ा है परंतु उससे वित्तीय समस्याओं का समाधान नहीं निकलता है बल्कि बढ़ जाता है क्योंकि, आजकल करीब करीब सभी लोगों के पास डिजिटल मोबाइल है और पीडीएफ देख पढ़ लेते हैं यदि कोई खरीदते भी हैं तो 2 से 5 रुपए उसकी कीमत है सिर्फ!
उसके ऊपर भी सोशल मीडिया के कारण विज्ञापनों में भारी कमी आई है और सरकारें,राजनीतिज्ञ राजनीतिक पार्टी सामान्य,और निजी विज्ञापनों में भी काफी गिरावट आई है जिसके कारण प्रिंट मीडिया की आर्थिक समस्या बढ़ गई है जिसका शासन प्रशासन को स्वतः संज्ञान लेने की ज़रूरत है और प्रिंट मीडिया को विलुप्तता से बचाने की महत्वपूर्ण ज़वाबदारी भी है क्योंकि यह भी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है।
साथियों बात अगर हम आदि अनादि काल से इस साहित्य को लिखने वालों की करें और वर्तमान पीढ़ी में नए साहित्यकारों की करें तो साहित्यकार, लेखक, विचारक राष्ट्र की बौद्धिक निधि होते हैं उनका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है और उनका सम्मान हमारे हृदय में है भी, परंतु अगर हम गहराई में जाएं तो साहित्यकारों लेखकों विचारकों के विचार, साहित्य, पाठकों तक पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका आज प्रिंट मीडिया की है क्योंकि प्रिंट मीडिया बौद्धिक निधि के विचारों को प्रकाशित कर उन विचारों को जीवंतता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है जो सराहनीय कार्य है। साथियों बात अगर हम माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो राष्ट्रपति सचिवालय की पीआईबी के अनुसार उन्होंने भी, इस अवसर पर लेखकों और विचारकों को राष्ट्र की बौद्धिक पूंजी बताया जो इसे अपने सृजनात्मक विचारों और साहित्य से समृद्ध करते हैं। शब्द और भाषा को मानव इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार बताते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य समाज की विचार-परंपरा का जीवंत वाहक है। उन्होंने कहा, कोई समाज जितना सुसंस्कृत होगा, उसकी भाषा उतनी ही परिष्कृत होगी। समाज जितना जागृत होगा, उसका साहित्य उतना ही व्यापक होगा।
साथियों बात अगर हम समाचार पत्रों के भारत में प्रारंभ होने के ऐतिहासिक करें तो, भारत में समाचार पत्रों का इतिहास भारत का पहला समाचार पत्र बंगाल गजट था जिसे जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने शुरू किया था। इस समाचार पत्र को 1780 में कलकत्ता जनरल एडवर टाइजर के नाम से भी जाना जाता था। साम्राज्य की आलोचना करने के कारण 1782 में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा जब्त किए जाने से पहले यह पत्र भारत में सिर्फ दो साल तक चला।द बंगाल जर्नल, कलकत्ता क्रॉनिकल, मद्रास कूरियर और बॉम्बे हेराल्ड सहित कई अन्य समाचार पत्र बाद में शुरू किए गए, लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा लगाए गए सेंसरशिप उपायों से उन्हें रोक दिया गया। ब्रिटिश शासन के दौरान विधायी विनियमन 1835 का प्रेस अधिनियम था, जिसे मेटकाफ अधिनियम के रूप में जाना जाता है। यह 1857 केविद्रोह तक चला जिसके बाद एक विदेशी प्रशासन ने लाइसेंसिंग अधिनियम पेश किया,भारत में प्रेस की स्वतंत्रता परसबसे महत्वपूर्ण विनियमों में से एक वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट था, जिसे 1878 में लाया गया था। इसे तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिटन ने पेश किया था, जिसने सरकार को वर्नाक्यूलर प्रेस में रिपोर्ट और संपादकीय को सेंसर करने का अधिकार दिया था। भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, संविधान सभा द्वारा तैयार किए गए मौलिक अधिकारों के आलोक में प्रेस कानूनों की जांच करने के लिए एक प्रेस जांच समिति का गठन किया गया था। उसी के बाद, देश में समाचार पत्रों के प्रचलन की जांच करने के लिए 1954 में न्यायमूर्ति राजाध्यक्ष के अधीन एक और प्रेस आयोग का गठन किया गया। समिति की एक प्रमुख सिफारिश अखिल भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना थी। इसकी औपचारिक स्थापना 4 जुलाई 1966 को हुई थी।यह एक स्वायत्त,वैधानिक,अर्ध-न्यायिक निकाय था, जिसकी स्थापना सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेआर मुधोलकर की अध्यक्षता में की गई थी।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय समाचार पत्र दिवस 28 जनवरी 2025-विलुप्त होती प्रिंट मीडिया को 1 फरवरी 2025 को पेश होने वाले बजट में पैकेज का बेसब्री से इंतजार।साहित्यकार, लेखक, विचारक राष्ट्र की बौद्धिक निधि होती है – विचारों को पाठकों तक पहुंचाने में प्रिंट मीडिया का बहुमूल्य योगदान।वित्तमंत्री ने प्रिंट मीडिया को भारतीय समाचार पत्र दिवस का तोहफा 1 फरवरी 2025 को बज़ट में किसी पैकेज के रूप में देना समय की मांग हैं।
*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र*