सुभाष आनंद
पंजाब में जिस प्रकार मरीजों को एंटीबायोटिक दवाएं दी जा रहे हैं यह बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है। डॉक्टर लोग ही कहने लगे हैं कि एंटीबायोटिक का प्रयोग से ज्यादा दुरूपयोग होना शुरू हो गया है क्योंकि बहुत से मामलों में बिना एंटीबायोटिक्स दिए ही सही इलाज किया जा सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कई डॉक्टर अपने कमीशन के लिए एंटीबायोटिक का जमकर प्रयोग कर रहे हैं। इनका अधिक उपयोग सर्जरी और पेट की बीमारियों को लेकर किया जा रहा है। पिछले दिनों ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट में एक गोष्ठी आयोजित की गई , जिसमें एंटीबायोटिकस के चयन और उसके प्रयोग पर बहस हुई । बहस में हिस्सा लेते हुए एम्स के अधिकतर प्रोफेसर्स का मत था कि एंटीबायोटिकस दवाओं के चयन के बारे में ना तो डॉक्टर गंभीर दिखाई देते हैं और ना ही दवाएं खाने वाले मरीज।
उन्होंने कहा कि गंभीर सर्जरी और इमरजेंसी की स्थिति में एंटीबायोटिक्स का चयन करना भी एक चुनौती होती है ,जो डॉक्टर ठीक एंटीबायोटिक्स का चुनाव करने में सफल होता है उसकी कुशलता पर गर्व करना चाहिए। ऐसी स्थिति में मरीज को तुरंत दवा देने की आवश्कता होती है। समय की नजाकत को देखते हुए जरूरी टेस्ट करने का समय नहीं होता और डॉक्टरों का फर्ज बनता है कि पूरी सोच समझकर कोई दवाई दे।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि 20 में से एक मरीज में एंटीबायोटिकस दवाई के रिएक्शन करने का खतरा बना रहता है, इन रिएक्शन में चमड़ी पर चकते हो जाना, हाजमा गड़बड़ा जाना और चक्कर आना शामिल है। कुछ केस में तो रिएक्शन इतना सीरियस होता है कि मरीज की कई बार मौत भी हो जाती है। एंटीबायोटिक्स लेते हुए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। प्रथम सही दवा का चयन, दूसरा मरीज की आयु, बीमारी और रोग प्रतिरोधी क्षमता देखते हुए दवाई की मात्रा निर्धारित करनी चाहिए। यह भी देखना जरूरी है कि दवा कौन से रूट से दी जाए। सीरियस स्थिति में मुंह के जरिए दवा खाने से बचना चाहिए। सीनियर डॉक्टरों का मानना है कि पंजाब में एंटीबायोटिक्स दवाओं का हद से ज्यादा दुरूपयोग हो रहा है । देखा जा रहा है कि कुछ झोलाछाप डॉक्टर साधारण बुखार और दस्तों में भी एंटीबायोटिक्स दवाएं देने से परहेज नहीं करते ,जबकि ऐसी बीमारियों को मामूली दवाओं से ठीक किया जा सकता है। यह सामान्य बात है कि जख्म पर कोई भी साधारण संक्रमण रोधी दवा लगाकर उसे ठीक किया जा सकता है, लेकिन इसको ठीक करने पर बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक का इस्तेमाल किया जा जाता है। फिरोजपुर के वरिष्ठ डॉक्टर एवं जाने माने सर्जन रोशन लाल तनेजा का कहना है कि कई बार डॉक्टर ऐसी स्थिति में होते हैं कि उन्हें ऐसे मरीजों को तुरंत दवा देनी होती है। जिनकी जान को खतरा होता है ,ऐसे में डॉक्टरों को सभी टेस्ट रिपोर्ट को देख कर सही एंटीबायोटिक का चयन करना होता है यही उनकी कुशलता का परिचायक होता है।
उनका कहना है कि नई तकनीक से डॉक्टरों का काम काफी आसान हो गया है। टैस्ट एवं रिपोर्ट बड़ी जल्दी उपलब्ध हो जाती हैं, लेकिन एंटीबायोटिक दवाओं की विभिन्नता देखते हुए उन्हें अधिक से अधिक दवाओं की जानकारी होनी चाहिए ताकि मरीज को इमरजेंसी में गलत दवाई ना दी जाए ,डॉक्टर की कुशलता दवाओं के चयन में छिपी हुई है। डॉक्टर का दवाएं चुनने का सही निर्णय मरीज के लिए वरदान साबित होता है। वहीं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एकांत आनंद ने प्रसव रोगों में एंटीबायोटिक दवाओं के गैर जरूरी उपयोग पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे मरीजों का खुलेआम शोषण किया जाता है। उन्होंने कहा कि बहुत से केसों में एंटीबायोटिक देने की कोई जरूरत नहीं होती है लेकिन डॉक्टर इस बारे में सोचने की कोई कोशिश नहीं करते। डॉक्टर को कोशिश करनी चाहिए की नॉर्मल डिलीवरी की जाए, लेकिन प्राइवेट हॉस्पिटलों में सिजेरियन पर जोर दिया जाता है और सिजेरियन में एंटीबायोटिक का प्रयोग जमकर किया जाता है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकारी अस्पतालों में हड्डी रोग विशेषज्ञों और जनरल सर्जनों द्वारा किए गए ऑपरेशन में कुछ ऐसी कंपनियों के एंटीबायोटिक्स मरीजों को लिखे जाते हैं जिससे उनको अधिक से अधिक कमीशन प्राप्त होता है । यह एंटीबायोटिक सिविल अस्पताल के आसपास कैमिस्ट की दुकानों पर उपलब्ध होते हैं।
(विभूति फीचर्स)