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किसके हाथ होगी देश की बागडोर ?

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संजय सिन्हा

 

लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व के समापन के बाद अब सभी को इंतजार है नतीजों का।नतीजे आने ही वाले हैं और जनता क्या चाहती है,ये भी पता चल जाएगा।वोटों की गिनती की तैयारी पूरी हो गई है , 80 दिन की प्रक्रिया के बाद 51 पार्टियों के 8360 उम्मीदवारों की किस्मत का फ़ैसला होगा । लोकसभा चुनावों के 7 चरणों में 543 सीटों पर हुए मतदान के बाद अब साफ हो जाएगा कि देश के सिंहासन पर कौन काबिज हो रहे हैं।एक तरफ एनडीए है तो दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन, हालांकि एग्जिट पोल्स ने एक बार फिर मोदी सरकार के वापस आने का बात कही है। चुनाव आयोग वोटों की गिनती 8 बजे से शुरू करेगा। सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती होगी और उसके बाद ईवीएम के वोट गिने जाएंगे।लोकसभा चुनाव के साथ-साथ आंध्र प्रदेश और ओडिशा विधानसभा चुनाव के नतीजे भी घोषित होंगे। एग्जिट पोल्स के मुताबिक एक बार फिर से मोदी सरकार आ रही है, लेकिन एनडीए 400 पार जाती नहीं दिख रही है। लोकसभा की कुल 543 सीटें हैं। बहुमत के लिए 272 सीटें जरूरी हैं। एनडीटीवी पोल आफ पोल्स के आकलन के मुताबिक एनडीए को 365 सीटें, इंडिया गठबंधन को 146 सीटें और अन्य को 32 सीटें मिलने की संभावना है।

चुनाव में राजनीतिक दलों के बीच जिस स्तर की खींचतान रही, उत्तेजना का माहौल रहा, उसमें उम्मीद यही थी कि इस बार मतदान का प्रतिशत शायद ऊंचा रहे, लेकिन मौसम और कुछ अन्य वजहों से बड़े पैमाने पर लोग मतदान केंद्रों पर नहीं पहुंचे।इसके बावजूद मतदान के संतोषजनक आंकड़ों से यही पता चलता है कि लोगों ने नई सरकार का चुनाव करने के लिए यथासंभव योगदान दिया। कमोबेश शांति से गुजर गए मतदान के बाद अब यह परिणाम पर निर्भर रहेगा कि आने वाले वक्त में देश की बागडोर किसके हाथ में होगी और आगे की दिशा क्या होगी।यह परिणाम देश की दशा और दिशा तय करेगा।

आपको बता दूं कि इस चुनाव में राजनीतिक दलों के मुख्य रूप से दो ध्रुव बन गए। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और इसमें शामिल दलों का नेतृत्व जहां भाजपा कर रही है, वहीं विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ और उसमें शामिल दलों का नेतृत्व कांग्रेस कर रही है। राजग की कमान थामे भाजपा चूंकि बीते दो कार्यकाल से सत्ता में रही, तो माना जा रहा था कि इस चुनाव में उसके शासन को लेकर अगर कोई असंतोष होगा तो वह मतदान में फूटेगा।

अगर ऐसा होता है तो इसका स्वाभाविक लाभ विपक्षी गठबंधन को मिलेगा और वह सरकार बनाएगी। मगर चुनाव का अध्ययन करने वाले समूहों ने जिस तरह भाजपा के मैदान में कायम होने की उम्मीद जाहिर की, उससे यही लगता है कि लड़ाई फिलहाल कांटे की है और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले तमाम लोग अब बस इंतजार करेंगे कि देश की बागडोर किसके हाथों में जाएगी। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि चुनाव में सत्तापक्ष और विपक्ष की ओर से जितनी कड़वी बातें बोली जाती हैं, वे सब नतीजों से धुल जाती हैं। जनता अपने विवेक के साथ उनमें से किसी को सत्ता इसलिए सौंपती है कि उसका भविष्य बेहतर हो।

विभिन्न संगठनों और मतदान एजेंसियों द्वारा लगाए गए एग्जिट पोल के नतीजों का विश्लेषण विपक्ष की प्रमुख रणनीतिक विफलताएं बताता है। दरअसल इंडिया गठबंधन ने राज्य-दर-राज्य स्थानीय असंतोष पर अभियान चलाया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बड़े लेवल पर टकराव को टाल दिया। कई प्रमुख राज्यों में पार्टी विपक्षी गठबंधन आर्थिक और किसानों के बीच असंतोष को सामने लाया लेकिन यह स्थानीय अंकगणित पर अधिक निर्भर था न कि राष्ट्रव्यापी लेवल पर। पार्टी के पास पीएम मोदी के मजबूत चेहरे के विकल्प के रूप में कोई ठोस चेहरा नहीं था। कांग्रेस के घोषणापत्र में वादे तो थे लेकिन वह चेहरा कौन था जो उस वादे को पूरा करेगा? अगर चुनाव से पहले उसके पास कोई पीएम उम्मीदवार होता तो उसे नुकसान होता और अगर नहीं होता तो भी उसे नुकसान उठाना पड़ा है।इन तमाम कारणों से विपक्ष कमजोर रहा और इसका परिणाम चुनावी नतीजों में भी दिखेगा।

 



(विभूति फीचर्स)

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