पंजाब में निगम, एलआईटी और ग्लाडा के अफसरों की नॉलेज और कोऑर्डिनेशन में कमी, आम जनता हो रही परेशान

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लुधियाना 3 अक्टूबर। पंजाब में लोकल बॉडी विभाग के अधीन आते नगर निगम, लुधियाना इंप्रूवमेंट ट्रस्ट और ग्लाडा में उच्च अफसरों की नॉलेज व आपसी कोऑर्डिनेशन की कमी के कारण आम जनता परेशान हो रही है। यह हालात अकेले लुधियाना नहीं बल्कि लोकल बॉडी विभाग से संबंधित पंजाब के सभी विभागों के हैं। दरअसल, पंजाब सरकार की और से नए भर्ती किए जा रहे यंग अफसरों को बड़े जिलों में तैनात तो कर दिया जाता है, लेकिन उन्हें संबंधित विभागों की पूरी जानकारी न होने के कारण वह लोगों के मामलों को सही से डील नहीं कर पाते। तजुर्बा न होने की वजह से उन्हें अपने जुनियर कोर्डिनेटर से सलाह कर काम करने पड़ रहे है। आगे से कोर्डिनेटर को जितनी जानकारी होती है, वह उतना बता देते हैं। नगर निगम, इंप्रूवमेंट ट्रस्ट और ग्लाडा जैसे प्रमुख विभागों के अफसर अपने कोर्डिनेटर की बातों पर यकीन कर उसी मुताबिक काम कर रहे हैं। जिस कारण एक के बाद एक गलतियां की जा रही है। किस बिल्डिंग को सीएलयू देना है और किस एरिया में बिल्डिंग को कमर्शियल तौर पर बनाया जा सकता है, अधिकारियों को इसका पता ही नहीं है। अफसरों की खुद की कमियों का नतीजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। विभागों की और से उपभोक्ता से करोड़ों रुपए टैक्स, सीएलयू फीस समेत अन्य चार्ज भी वसूल लिए जाते हैं। जिसके बाद भी उपभोक्ता को आरोपी बना दिया जाता है। लोगों में चर्चा है कि अधिकारियों को संबंधित विभागों की नॉलेज न होने और अधिकारियों की आपस में कोऑर्डिनेशन न होना इसका अहम कारण है।

अफसरों की गाइडेंस, जनता कहला रही चोर
जानकारी के अनुसार नगर निगम, इंप्रूवमेंट ट्रस्ट और ग्लाडा जैसे अहम विभागों के अफसरों की गाइडेंस के मुताबिक लोगों द्वारा कीमती जमीनें खरीदकर वहां पर काम शुरु किया जाता है। सीएलयू समेत सभी टैक्स व चार्ज दिए जाते हैं। लेकिन उसके बावजूद भी कुछ समय बाद उन लोगों को गलत ठहराते हुए आरोपी बना दिया जाता है। अधिकारियों द्वारा बताए नियमों के मुताबिक चलने पर भी जनता चोर कहला रही है।

पूरे पंजाब में 1000 इमारतों को हो चुका सीएलयू
जानकारी के अनुसार पंजाब भर में 1994 से लेकर 2006 तक रिहायशी इलाकों में कमर्शियल बिल्डिगें बनाई गई और कई सड़कें कमर्शियल बना दी गई। लोगों द्वारा अपने हिसाब से यह इमारतें बनाई गई। पंजाब सरकार की और से 2013 में इन सभी की नोटीफिकेशन कर दी गई। जिसके बाद पूरे पंजाब में अब तक ऐसी एक हजार इमारतें हैं, जिनका सीएलयू किया जा चुका है। पंजाब सरकार द्वारा खुद नोटीफिकेशन जारी कर सीएलयू कराए गए थे।

हाईकोर्ट डबल बैंच नोटीफिकेशन संबंधी दे चुकी ऑर्डर
वहीं पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में साल 2002 में निगम के पूर्व मुलाजिम द्वारा नगर निगम लुधियाना खिलाफ याचिका दायर की थी। इस केस में हाईकोर्ट की डबल बैंच द्वारा 2014 में ऑर्डर पास किया गया था। जिसमें कोर्ट द्वारा साफ लिखा गया था कि किसी भी स्कीम में अगर मोर्डीफिकेशन की गई है तो उसमें नोटीफिकेशन की जरुरत नहीं है। अगर हाईकोर्ट द्वारा नोटीफिकेशन की जरुरत न होने संबंधी कहा जा चुका है, तो आखिर लुधियाना नगर निगम द्वारा क्यों नोटीफिकेशन को आधार बनाकर उपभोक्ता को खराब किया जा रहा है।

भारतीय संविधान मुताबिक भी नोटीफिकेशन की जरुरत नहीं
वहीं भारतीय संविधान के जनरल एक्ट 1897 के 20वें प्वाइंट के मुताबिक कोई भी स्कीम सेशन होने नोटीफिकेशन ऑर्डर, फॉर्म हो या बाय लॉज हो सभी का एक महत्व है। यानि कि कोई नई स्कीम बनाई गई हो, कानून के मुताबिक उस पर जनरल एक्ट लागू होगा। नई स्कीम की कोई नोटीफिकेशन हो, फॉर्म हो या गजट हो, सभी का महत्वपूर्ण है, यभी एक सम्मान समझे जा सकेगें।

लुधियाना में भी सामने आया मामला
ताजा मामला लुधियाना के मॉडल टाउन की गुजरखां रोड पर बन रही कमर्शियल इमारत का सामने आया है। जहां पर नगर निगम अफसरों द्वारा परमिशनें देने के बाद रिहायशी इलाके में कमर्शियल इमारत बनाई गई। नगर निगम के पूर्व कमिश्नर संदीप रिषी द्वारा उस समय इस संबंधी पत्र भी जारी किया था। जिसमें बकायदा कहा गया था कि गुजरखां रोड को नोटीफिकेशन की जरुरत नहीं है। जबकि कुछ दिन पहले लुधियाना में निगम कमिश्नर नियुक्त हुए आदित्य डेचलवाल की और से हाईकोर्ट में कहा गया कि नोटीफिकेशन की जरुरत है। यानि कि पोस्ट एक और एक ही पोस्ट पर अलग अलग समय मौजूद रहे अफसरों के बयान अलग अलग हैं। हालाकि अफसरों की कम नॉलेज के कारण आज उक्त बिल्डिंग का काम रुका हुआ। सीएलयू की करोड़ों रुपए फीस जमा कराने के बावजूद आज उक्त बिल्डिंग मालिक गुनहगार बना हुआ है।

अफसरों को ट्रेनिंग देने की जरुरत
लोगों में चर्चा है कि पंजाब में यंग अधिकारियों को बड़े पद्दों की कमान तो सौंप दी जा रही है, लेकिन उन्हें संबंधित विभागों की पूरी जानकारी न होने की खमियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। काम के ज्यादा प्रैशर के कारण अधिकारी कानूनी किताबें नहीं पढ़ पाते और जुनियर अफसरों से सलाह कर काम करने पड़ रहे हैं। सरकार को चाहिए कि अधिकारियों को पहले पूरी ट्रेनिंग देकर ही फिल्ड में उतारा जाए, ताकि व्यापारियों को इसका नुकसान न झेलना पड़े। अब अधिकारियों की कम नॉलेज के कारण लोगों के हुए करोड़ों रुपए के नुकसान की क्या सरकार भरपाई करेगी या नहीं, यह सवाल खड़े हो रहे हैं।

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