राजनीति में अब चापलूसों की चौकड़ी में रहने के दिन लद गए- चौकन्नी हुई जनता-विधायक सांसद व मंत्री को अब टैलेंट चौकड़ी में दिखना बेहतर रहेगा
चापलूसी अस्त्र बनाम हुनर व योग्यता का अस्त्र- अगर पल भर को भी मैं, बे-ज़मीर बन जाता, यकीन मानिए मैं कब का अमीर बन जाता
आधुनिक युग में राजनीतिक सामाजिक आध्यात्मिकक्षेत्रों में चापलूसों को हटाकर काबिल व टैलेंट साथियों की सेवाएं लेना समय की मांग है-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर राजनीतिक क्षेत्र में बहुत तेजी के साथ बदलाव होते दिख रहे हैं। एक जमाना था जब पंचायत समिति मेंबर से लेकर मंत्री तक चापलूसों से घिरे रहकर,जी हुजूरी का जीवन जीते थे,मगर आज ऐसादिखा तो हाई कमान बाहर का रास्ता दिखा देते हैं।अपने अन्य नेताओं की चापलूसी के अनेक किस्से हम इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया पर देख चुके हैं परंतु,अब ऐसा युग शुरू हो गया है कि, नेतागण जनता के साथ ईमानदार कर्मठ योग्यता के धनी कर्तव्यनिष्ठ निष्पक्ष व्यक्तियों के सानिध्य में रहना जरूरी है। 2 वर्ष पूर्व हमने देखे कि तीन-चार राज्यों के ऐसे व्यक्तियों को मुख्यमंत्री बनाया गया जो चौथी कतार में बैठे थे, सबसे बड़ी बात वर्तमान राष्ट्रपति महोदय को भी हम दूर-दूर तक नहीं जानते थे। आज जनता ऐसा बदलाव चाहती है, ताकि भारत का सर्वांगीण हिस्सा विकास हो। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र, इस चापलूसी पर पैनी नज़र रखता हूं, व देखता हूं कि हमारी राइस सिटी गोंदिया में दो थाना क्षेत्र है, वहां जब भी नए थानेदार से लेकर एसपी तक वह एसडीओ से लेकर कलेक्टर तक पदभार संभालते हैं, तो एक समाज ग्रुप उनका जबरदस्त स्वागत करता है, व उनके फोटो निकालकर पूरे प्रिंट इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया पर प्रचारित करते हैं,यानें असल में वे यह दिखाना चाहते हैं कि देखो हमारी इतनी पहचान व रुतबा है। मेरा मानना है कि यह ट्रांसफर पोस्टिंग तो होती रहती है, उन्हें अपनी जिम्मेदारी निभानी ही है, परंतु उन अधिकारियों को संज्ञान देना चाहिए कि कहीं इनका कोई हित, स्वार्थ, चापलूसी या कोई गैर कानूनी व्यवसाय व्यापार या दलाली तो नहीं?यह पता करना उनका कर्तव्य है। ठीक वैसा ही आज समाज व आध्यात्मिक क्षेत्र में भी संज्ञान लेने की जरूरत है, ताकि इन चापलूसों को जड़ से उखाड़ फेंका जा सके,जो अपने निजी स्वार्थ के लिए नेताओं, आध्यात्मिकता व सामाजिक कर्तव्यबध व्यक्तियों के अपने मतलब के लिए आगे पीछे घूमते हैं।चूँकि आज आधुनिक युग में राजनीतिक सामाजिक आध्यात्मिक क्षेत्र में चापलूसों को हटाकर काबिल व टैलेंटेड साथियों को सेवाएं देना समय की मांग है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, राजनीति में अब चापलूसों की चौकड़ी में रहने के दिन लद गए,चौकन्नी हुई जनता, विधायक सांसद व मंत्री को टैलेंट की चौकड़ी में रहने की जरूरत है।
साथियों बात अगर हम चापलूसी की करें तो,भारत में हम दैनिक दिनचर्या में राजनीतिक सामाजिक इत्यादि अनेक क्षेत्रों में चापलूस शब्द अक्सर सुनते रहते हैं। अधिकतम बयानबाज़ी में चापलूस शब्द का उल्लेख किया जाता है। अक्सर हम देखते हैं कि किसी भी पार्टी या सामाजिक संस्था में से अलग होने वाला नेता समाजसेवी सेवक कार्यकर्ता ऐसा जरूर बयान देता है कि पार्टि, संस्था अब चापलूसों से घिर गई है मेरा उसमें काम करना कठिन हो गया था, या फलाना हमारा लीडर चापलूस लोगों की ही सुनता है! स्वाभिमानी इंसान का वहां मूल्य नहीं! चापलूसी को झूठी प्रशंसा चाटुकारिता, मक्खनबाजी, खुशामद,बढ़ई दिखावी आवभगत, चने के झाड़ पर चढ़ाना इत्यादि अनेक शब्दों का एक जुमला प्रसंग के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। अगर हम किसी व्यक्ति की तारीफ में यही उपरोक्त शब्दों को एकीकृत कर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं तो हमें अप्रत्यक्ष रूप से चापलूस बाज कहा जा सकता है। जबकि पूरी पारदर्शिता, सौ बात की एक बात, कड़वी सच्चाई, मुंह पर बोलना, बिना लाग लपेट के बोलना इत्यादि गुणों वाले व्यक्ति को स्वाभिमानी की संज्ञा दी जाती है और यह व्यक्तित्व चाटुकारिता पर सेर पर सवा सेर साबित होता है क्योंकि बड़े बुजुर्गों ने भी कहा है सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से! हालांकि कुछ अपवाद छोड़ दें तो वर्तमान परिस्थितियों में खासकर कुछएक खास क्षेत्रों में चापलूसी करना अधिक फायदेमंद होती जा रही है क्योंकि आज पारदर्शी व्यक्तित्व कड़वी सच्चाई आदि गुणों वाले व्यक्तित्व को उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत ने घेर लिया जाता है याने चापलूसी उस पारदर्शी व्यक्तित्व को चापलूस बताने में आगे होते हैं ऐसा मेरा मानना है।
साथियों बात अगर हम चापलूसी और स्वाभिमानी की करें तो, वर्तमान दौर में चाहे वह क्लब हो या दफ्तर हो और तो और घर क्यों न हो सब जगह चाटुकारिता संस्कृति ने अपना शिकंजा कसा हुआ है।लोग इंसानियत भूलकर चाटुकारिता को अपना रहे हैं। वैसे भी देखा जाये तो चापलूसी भी एक प्रकार का कला है जो स्वाभिमानी इंसान कभी भी सीख नहीं सकेगा और न ही सीखने की कोशिश करेगा इसके विपरीत स्वाभिमानी होना बहुत बड़ी कला है जो चापलूस इंसान कभी बन ही नहीं सकता चाहे लाख कोशिश भी कर ले क्योकि उसके रगों में स्वाभिमानी व्यक्ति का खून दौड़ रहा होता है। आज हर क्षेत्र में चापलूसों का बोलबाला है। चाहे वह क्लब हो या अन्य दफ्तर हो या यूनियन हो सभी जगह इनके जैसे लोगों का बोलबाला दिखता है। ये चापलूस ऐसे जीव हैं जो आत्मग्लानि का बोध करा देते हैं, झूठी प्रशंसा का पहाड़ खड़ा कर, फिर उस में मोटेमोटे छेद कर देते हैं, अब झेलते रहें हम मिट्टी को। सत्ता बदलते ही चापलूसों का दल बदल जाता है। यानी जिसकी लाठी उस की भैंस,चापलूस उसी के पीछे जा कर खड़ा होगा जिस की हैसियत होगी। सम्मान जताने के लिए चापलूसों के हाथ हमेशा जुड़े रहते हैं और कमर झुकने को यों आतुर रहती है मानो रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया है। शर्म को तो सुबहशाम ये गोलगप्पे के पानी में घोल कर पी जाते हैं,जब ये चलते हैं तो अपने हाथ में पकड़े झोले में दोचार जुमले डालना नहीं भूलते।
साथियों बिना किसी डिग्री और ट्रेनिंग के चापलूसी की कला में महारत हासिल करने के लिए सिर्फ थोड़ी बेशर्मी भरी हंसी और काम के आदमी के सामने जीभ लपलपा देना काफी है, फिर देखिए, सामने वाला कैसे हथियार डालता है हमारे सामने, आखिर नेता, अभिनेता से ले कर आम इंसान तक, चापलूसी किसे नहीं भाती भाई, बिना किसी डिगरी और ट्रेनिंग के चापलूसी की कला में महारत हासिल करने के लिए सिर्फ थोड़ी बेशर्मी भरी हंसी और काम के आदमी के सामने जीभ लपलपा देना काफी है, फिर देखिए, सामने वाला कैसे हथियार डालता है आप के सामने, आखिर नेता, अभिनेता से ले कर आम इंसान तक को, चापलूसी किसे नहीं भाती।
साथियों बात अगर हम स्वाभिमानी व्यक्तियों की करें तो, आत्म-सम्मान के स्वस्थ स्तर वाले लोग।कुछ मूल्यों और सिद्धांतों में दृढ़ता से विश्वास करते हैं, और विरोध मिलने पर भी उनका बचाव करने के लिए तैयार हैं, अनुभव के आलोक में उन्हें संशोधित करने के लिए पर्याप्त सुरक्षित महसूस करते हैं। जो उन्हें सबसे अच्छा विकल्प लगता है, उसके अनुसार कार्य करने में सक्षम हैं, अपने स्वयं के निर्णय पर भरोसा करते हैं, और जब दूसरों को उनकी पसंद पसंद नहीं है तो दोषी महसूस नहीं करते हैं।अतीत में क्या हुआ, और भविष्य में क्या हो सकता है, इस बारे में अत्यधिक चिंता करने में समय न गँवाएँ। वे अतीत से सीखते हैं और भविष्य की योजना बनाते हैं, लेकिन वर्तमान में तीव्रता से जीते हैं।असफलताओं और कठिनाइयों के बाद झिझकते नहीं,समस्याओं को हल करने की उनकी क्षमता पर पूरा भरोसा है। जरूरत पड़ने पर वे दूसरों से मदद मांगते हैं।कुछ प्रतिभाओं, व्यक्तिगत प्रतिष्ठा या वित्तीय स्थिति में अंतर को स्वीकार करते हुए, खुद को हीन या श्रेष्ठ के बजाय दूसरों के लिए समान समझें।समझें कि वे दूसरों के लिए एक दिलचस्प और मूल्यवान व्यक्ति कैसे हैं, कम से कम उनके लिए जिनके साथ उनकी दोस्ती है।हेरफेर का विरोध करें, दूसरों के साथ तभी सहयोग करें जब यह उचित और सुविधाजनक लगे।विभिन्न आंतरिक भावनाओं और ड्राइव को स्वीकार करें और स्वीकार करें, या तो सकारात्मक या नकारात्मक, उन ड्राइव को दूसरों के सामने तभी प्रकट करें जब वे चुनते हैं।विभिन्न प्रकार की गतिविधियों का आनंद लेने में सक्षम हैं। दूसरों की भावनाओं और जरूरतों के प्रति संवेदनशील हैं, आम तौर पर स्वीकृत सामाजिक नियमों का सम्मान करते हैं, और दूसरों के खर्च पर समृद्ध होने के अधिकार या इच्छा का दावा नहीं करते हैं।चुनौतियों के आने पर खुद को या दूसरों को नीचा दिखाए बिना समाधान खोजने और असंतोष की आवाज उठाने की दिशा में काम कर सकते हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि राजनीति में अब चापलूसों की चौकड़ी में रहने के दिन लद गए- चौकन्नी हुई जनता-विधायक सांसद व मंत्री को अब टैलेंट चौकड़ी में दिखना बेहतर रहेगा।चापलूसी अस्त्र बनाम हुनर व योग्यता का अस्त्र-अगर पल भर को भी मैं, बे-ज़मीर बन जाता, यकीन मानिए मैं कब का अमीर बन जाताआधुनिक युग में राजनीतिक सामाजिक आध्यात्मिक क्षेत्रों में चापलूसों को हटाकर काबिल व टैलेंट साथियों की सेवाएं लेना समय की मांग है।
*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9359653465*