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खन्ना : सरकारी अस्पताल में ‘अव्यवस्था की जलन’ से झुलसे मरीज हो जाते हैं पहले से दोगुने गंभीर

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ट्रॉमा सेंटर में बनी बर्न-वार्ड सिर्फ नाम के लिए झुलसे मरीजों को बस कर दिया जाता है रेफर

खन्ना 15 जुलाई। यहां सिविल अस्पताल में अकाली-भाजपा की सरकार के कार्यकाल में ट्रॉमा सेंटर बना था। तभी झुलसे मरीजों की ज्यादा आमद को देखते हुए उसे बर्न वार्ड भी बनाया गया था। जबकि तत्कालीन सेहत मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांत चावला ने इस ट्रॉमा सेंटर का उद्घाटन 2010 में किया था। इस ट्रॉमा सेंटर में बर्न-वार्ड बनाने का एक खास मकसद था। दरअसल उस दौरान खन्ना के सरकारी अस्पताल में झुलसे हुए मरीजों के केस ज्यादा आने लगे थे। लिहाजा उन मरीजों को ट्रॉमा सेंटर में ही स्थापित बर्न वार्ड में रखा जाता था। ताकि मरीजों को रेफर करने की बजाए उनका यहीं पर इलाज हो सके।

बर्निंग केस में फौरन इलाज जरुरी : माहिरों के मुताबिक बर्निंग-केस में मरीज के इलाज में देरी घातक साबित होती है। वैसे भी ऐसे मरीज जलन होने से बहुत तड़पते हैं। फिर रेफर करने की स्थिति में मूवस्किन इंफेक्शन का खतरा भी बढ़ जाता है। मौजूदा हालात में बर्न वार्ड सिर्फ नामभर के लिए रह गया। स्टाफ की मानें तो कुछ कमियों की वजह से यह वार्ड चालू नहीं किया गया। जबकि जानकारों की मानें तो बर्न वार्ड चालू करने के लिए सिर्फ तीन से चार एसी लगाने होते हैं। बाकी इलाज के लिए सर्जन डॉक्टर की जरूरत होती है। सरकारी अस्पताल में चार से पांच सर्जन डॉक्टर मौजूद रहते ही हैं। यह सब उस समय ट्रॉमा सेंटर में लगाए गए थे। सबसे अहम सवाल यह है कि जब यहां बर्न वार्ड बनाया गया था तो उसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया। आखिर झुलसे मरीजों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है।

बर्न वार्ड में खोला एसएमओ आफिस : सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि बेकार पड़े बर्न वार्ड को सुधारा नहीं गया। इतना जरुर किया कि उसका इस्तेमाल एसएमओ आफिस के तौर किया जाने लगा। यहां बता दें कि जब सरकारी अस्पताल में बेड की कमी होने लगी थी तो एक नई बिल्डिंग बनाई भी गई थी। उस बिल्डिंग में एसएमओ के एक नहीं, बल्कि दो ऑफिस बने हैं। फिर तीसरा एसएमओ आफिस खोलने की जरुरत क्यों पड़ी, यह पहलू भी कतई समझ से परे है।

झुलसे बच्चे ने तोड़ा था दम : कुछ महीने पहले ही खन्ना के नजदीकी गांव में दो बच्चे आग में झुलस गए थे। पहले उन बच्चों को फतेहगढ़ साहिब के सरकारी अस्पताल ले जाया गया। वहां इलाज ना मिलने फिर मंडी गोबिंदगढ़ के सरकारी अस्पताल रैफर किया। वहां भी इलाज नहीं मिलने पर तपड़ते बच्चों को खन्ना के सरकारी अस्पताल भेजा। सही समय पर इलाज ना मिलने से एक बच्चे की मौत हो गई थी। जबकि दूसरे बच्चे को खन्ना से रेफर करना पड़ा था। गरीब परिवार का बच्चा अव्यवस्था की भेंट चढ़ गया था।

बचाव में कमजोर दलील : इस मुद्दे पर बीते दिनों मीडिया को एसएमओ डॉ. मनिंदर सिंह ने बचाव में बेहद कमजोर दलील दी। उनके मुताबिक बर्न वार्ड इसीलिए शुरू नहीं किया गया था, क्योंकि यहां पर प्लास्टिक सर्जरी के माहिर डॉक्टर नहीं हैं। सवाल यह है कि झुलसे मरीज का प्राथमिक उपचार को सामान्य सर्जन भी कर सकते हैं। आमतौर पर प्लास्टिक सर्जरी की नौबत तो मरीज की जान बचने यानि खतरे से बाहर आने पर ही होती है।

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