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बर्निंग केस में फौरन इलाज जरुरी : माहिरों के मुताबिक बर्निंग-केस में मरीज के इलाज में देरी घातक साबित होती है। वैसे भी ऐसे मरीज जलन होने से बहुत तड़पते हैं। फिर रेफर करने की स्थिति में मूवस्किन इंफेक्शन का खतरा भी बढ़ जाता है। मौजूदा हालात में बर्न वार्ड सिर्फ नामभर के लिए रह गया। स्टाफ की मानें तो कुछ कमियों की वजह से यह वार्ड चालू नहीं किया गया। जबकि जानकारों की मानें तो बर्न वार्ड चालू करने के लिए सिर्फ तीन से चार एसी लगाने होते हैं। बाकी इलाज के लिए सर्जन डॉक्टर की जरूरत होती है। सरकारी अस्पताल में चार से पांच सर्जन डॉक्टर मौजूद रहते ही हैं। यह सब उस समय ट्रॉमा सेंटर में लगाए गए थे। सबसे अहम सवाल यह है कि जब यहां बर्न वार्ड बनाया गया था तो उसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया। आखिर झुलसे मरीजों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है।