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मुद्दे की बात : बेटियां हैं तो हीन-भावना क्यों ?

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पेरिस पैरालंपिक में भी चमकीं भारत की बेटियां

 

बेटियां तो किसी भी मुल्क की हों, बेटों से किसी भी मामले में कमजोर नहीं होती हैं। संयोग से भारत की बेटियां तो यह बार-बार साबित कर देती हैं। मसलन, ओलंपिक गेम्स में भारत की बेटियों ने देश की शान बढ़ाई। अब पेरिस-पैरालंपिक में भी भारत का शानदार आगाज बेटियों के जरिए ही हो गया।

टोक्यो पैरालंपिक में भारत को एक स्वर्ण पदक समेत दो पदक दिलाने वाली पैरा-शूटर अवनि लेखरा ने पेरिस पैरालंपिक में भारत को एक और स्वर्ण पदक दिला दिया। उन्होंने दूसरे दिन ही 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच-1 स्पर्धा में स्वर्ण पदक दिलाया। जबकि इसी स्पर्धा में भारत की मोना अग्रवाल ने कांस्य पदक पर कब्जा जमाया। अवनि ने टोक्यो पैरालंपिक में 249.6 का स्कोर बना पैरालंपिक रिकॉर्ड बनाया था। इस बार उन्होंने 249.7 का स्कोर बनाया और अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया। वहीं, मोना ने 228.7 का स्कोर बना तीसरा स्थान हासिल किया। दक्षिण कोरिया की युनरी ली ने 246.8 का स्कोर बनाया और रजत पदक हासिल किया। एक वक्त मोना शीर्ष पर आ गई थीं, लेकिन इसके बाद कोरियाई निशानेबाज ने कुछ राउंड की अच्छी शूटिंग के बाद पहला स्थान हासिल किया। अवनि तीसरे पर लुढ़क गई थीं। हालांकि, उन्होंने जबरदस्त वापसी की। पैरालंपिक में भारत की अवनि लेखरा ने शूटिंग में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। उन्होंने महिलाओं की स्टैंडिंग 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा एसएच-1 में यह स्वर्ण पदक जीता। पेरिस पैरालंपिक में भारत का यह पहला पदक है और वह भी स्वर्ण के रूप में आया। आपको बता दें कि अवनि को यह जीत इतनी आसानी से नहीं मिली। इस मुकाम पर पहुंचने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा है।
वर्ष 2012 में महज 12 साल की उम्र में अवनि लेखरा की एक दुर्घटना के चलते पैरालिसिस का शिकार हो गई थीं। चलने के लिए व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ गया। अवनि ने हार नहीं मानी और आगे बढ़ने को ठान लिया। दुर्घटना के महज तीन साल बाद ही अवनी ने शूटिंग को अपनी जिंदगी बनाया और महज पांच साल के भीतर ही अवनी ने गोल्डन गर्ल का तमगा हासिल कर लिया। अब अपने लगातार दूसरे पैरालंपिक में उन्होंने स्वर्ण जीतकर इतिहास तो रचा ही, साथ ही भारत की सबसे कामयाब शूटर भी बन गईं। ओलंपिक हो या पैरालंपिक भारत की किसी महिला एथलीट ने दो स्वर्ण नहीं जीते हैं।

इसी तरह 37 वर्षीय पैरा-शूटर मोना अग्रवाल ने पेरिस पैरालंपिक में तीन पदक स्पर्धाओं में हिस्सा लिया है। अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में लगातार विजयी प्रदर्शनों के बाद क्वालिफाई करने वाली मोना ने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। अब वह मिश्रित 50 मीटर राइफल प्रोन आर6 स्पर्धा और महिलाओं की 50 मीटर राइफल 3 पोजीशन आर8 स्पर्धा में भाग लेंगी। मोना की कहानी खेल प्रेमियों को अधिक प्रेरित कर सकती है। राजस्थान के सीकर में जन्म लेने वाली मोना का जीवन संघर्षों भरा रहा है। पोलियो की बीमारी के कारण वह बचपन से ही चलने में असमर्थ हो गई थीं। इसके अलावा उन्हें लड़कियों के प्रति पूर्वाग्रह के कारण भी समाज के तानों का सामना करना पड़ा। मोना अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सकीं। पैरा-शूटर बनने के लिए वह जयपुर चली गईं। उनकी दादी ने उन्हें इसके लिए प्रेरित किया। व्हीलचेयर के जरिए चलने वाली मोना ने पैरा एथलेटिक्स की ओर रुख किया। उन्होंने शॉट पुट, डिस्कस, जेवलिन थ्रो और पावरलिफ्टिंग में हाथ आजमाया और राज्य स्तरीय टूर्नामेंट में पहुंचकर अपनी पहचान बनाई। हालांकि, उनका शरीर एथलेटिक्स की कठोरता को झेलने में असमर्थ था, तब उन्होंने 2021 में पैरा शूटिंग की ओर रुख किया। मोना का सपना तब सच हुआ जब उन्हें 2023 में क्रोएशिया के ओसिजेक में होने वाले डब्ल्यूएसपीएस विश्व कप के लिए चुना गया। इसमें उन्होंने पहले प्रयास में ही कांस्य पदक जीता था। उसके बाद उन्होंने 2022 एशियाई पैरा खेलों और लीमा में 2023 डब्ल्यूएसपीएस चैंपियनशिप के जरिए पेरिस 2024 पैरालंपिक के लिए क्वालिफाई करने का लक्ष्य रखा।

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