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लुधियाना सीट पर ‘विनर-फेस’ उतारती है कांग्रेस तो सबसे बड़े ‘सियासी कम खिलाड़ी’ होंगे परगट

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तगड़ा पेंच फंसा गया लोस सीट लुधियाना को लेकर

परगट सिंह के जरिए एक तीर से लगेंगे कई निशाने

नदीम अंसारी

लुधियाना/यूटर्न/28 अप्रैल। लोकसभा सीट लुधियाना को लेकर कांग्रेस के चुनावी-मैनेजर खूब माथापच्ची कर रहे हैं। हालांकि चर्चा यही है कि समाचार लिखे जाने तक परफेक्ट-कैंडिडेट को लेकर किंतु-परंतु जारी है। ऐसे हालात में निचले स्तर पर दावेदारी को लेकर जिले में जारी टांग-खिंचाई के नजरिए से पार्टी हाईकमान बीच का रास्ता निकालने पर विचार कर सकती हैं। मसलन, उम्मीदवार पंजाब से ही, लेकिन जिले से बाहर का हो और हर नजरिए से मजबूत-चर्चित चेहरा भी रहे। कुल मिलाकर ताजा हालात में स्क्रीनिंग कमेटी इस सीट पर टिकट के दावेदारों से हटकर भी सूबे के कुछ चर्चित नेताओं की ‘सियासी-कुंडली’ तेजी से खंगाल रही है।

सूत्र बताते हैं कि स्क्रीनिंग कमेटी की नजर एक ऐसे चेहरे पर काफी हद तक अटकी है, लिहाजा उसके बारे में गुपचुप तरीके से फीडबैक भी लिया जा रहा है। यह चर्चित चेहरा है,  जालंधर कैंट से मौजूदा विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री परगट सिंह का। उनके नाम पर चुनावी मैनेजर विचार कर रहे हैं। अब सवाल उठता है कि परगट सिंह ही क्यों तो इसके पीछे कई ठोस कारण माने जा रहे हैं। अगर उनका पॉल्टिकल-प्रोफाइल देखें तो वह अब कोई नए-नवेले राजनेता नहीं रहे। शासन में रहने का अनुभव भी रखते हैं।

परगट ही क्यों : माना जा रहा है कि परगट सिंह सिख चेहरा होने के नाते लुधियाना में भाजपा उम्मीदवार रवनीत सिंह बिट्‌टू को चुनौती दे सकते हैं। सबसे मजबूत पहलू वह विनर यानि आप की लहर में भी विधायक बने थे। वहीं, हॉकी के धुरंधर खिलाड़ी रहने की वजह से उनकी पंजाब ही नहीं, बल्कि देश-दुनिया में बड़ी फैन-फॉलोइंग रही है। अगर वह चुनाव मैदान संभालेंगे तो बाहरी उम्मीदवार होने की सूरत में जहां कुछ कांग्रेसी नेता खफा होंगे, वहीं परगट की निजी इमेज डैमेज कंट्रोल का काम कर सकती है। जाहिर है, लुधियाना जिले के स्टेडियमों में ही नियमित हॉकी खेलने वाले हजारों खिलाड़ियों का उनको नैतिक समर्थन मिलेगा। जिले के बहुत से खेल-प्रेमी एनआरआई भी उनको सपोर्ट करेंगे। रही बात, सियासी नजरिए से भी परगट सिंह बेदाग छवि रखते हैं। विरोधियों के लिए उनके तीखे तेवर भी कारगर साबित होंगे।

बाकी दावेदार क्यों कमजोर : यूं तो लुधियाना सीट से मजबूत दावेदारी पूर्व कैबिनेट मंत्री भारत भूषण आशु की ही है। हालांकि उनके मिजाज के चलते उनके सियासी दोस्तों से ज्यादा लंबी फहरिस्त सियासी-दुश्मनों की गिनवाई जाती है। फिर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे होने की वजह से उम्मीदवार बनने पर विपक्षी उम्मीदवारों को इसे मुद्दा बनाने का आसान मौका मिल सकता है। आप की लहर में वह भी अपना मजबूत सियासी गढ़ बचाने में नाकाम रह पिछला विधानसभा चुनाव हार गए थे। इसी तरह रही बात पूर्व मंत्री गुरकीरत सिंह कोटली की तो वह भी आप की लहर में पिछले विस चुनाव में हारे थे। उनके हक में यह दलील है कि वह बीजेपी प्रत्याशी बिट्‌टू के भाई हैं। जबकि सियासी जानकार मानते हैं कि उनका यही प्लस प्वाइंट कांग्रेस के लिए नैगेटिव भी बन सकता है। आप व अकाली उम्मीदवार इसे बीजेपी-कांग्रेस के उम्मीदवारों की अंदरखाते मिलीभगत बता दुष्प्रचार करने से नहीं चूकेंगे। जहां तक सवाल पूर्व विधायक सिमरजीत सिंह बैंस का है तो उनकी दावेदारी कॉस्मेटिक-कैटेगिरी में मानी जा रही है यानि शरारती दिमागों की उपज कही जाती है। कांग्रेस हाईकमान उन पर लगे सियासी-दागों से अंजान नहीं है। कुल मिलाकर दूसरी पार्टियों पर खफा बैठे नेताओं में भी कोई दमदार चेहरा कांग्रेस के चुनावी-मैनेजरों को नजर नहीं आता दिख रहा। जबकि सियासी-काबलियत और खेल वाले हुनर के साथ ही परगट सिंह का चेहरे-इमेज से आम से लेकर खास आदमी प्रभावित हो सकते हैं।

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