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आईडीपीडी ने स्वास्थ्य पर बजट को जीडीपी के 1.35 से बढ़ा 3 फीसदी करने की मांग रखी

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आईडीपीडी ने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को इस बारे में मागंपत्र के साथ भेजे सुझाव

लुधियाना 10 जुलाई। केंद्रीय वित्त मंत्री से इंडियन डॉक्टर्स फॉर पीस एंड डेवलपमेंट (आईडीपीडी) ने अहम मांग रखी। आईडीपीडी ने आगामी बजट में स्वास्थ्य के लिए आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 3 फीसदी करने की मांग की है।

आईडीपीडी के अध्यक्ष डॉ.अरुण मित्रा ने कहा कि भारत का वर्तमान सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय उसके सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.35% है, जो दुनिया में सबसे कम में है। इससे एक बड़ी आबादी को स्वास्थ्य सेवाओं पर अपनी जेब से अधिक खर्च करना पड़ता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मार्च 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, 17% से अधिक भारतीय परिवार हर साल विनाशकारी स्वास्थ्य व्यय का अनुभव करते हैं, जो लोगों को गरीबी में धकेल सकता है। विनाशकारी स्वास्थ्य खर्च को आउट-ऑफ-पॉकेट (ओओपी) भुगतान के रूप में परिभाषित किया गया है जो स्वास्थ्य देखभाल के लिए घर के संसाधनों के एक निश्चित प्रतिशत से अधिक है। रिपोर्ट का अनुमान है कि उच्च ओओपी स्वास्थ्य व्यय सालाना लगभग 5.5 करोड़ भारतीयों को गरीब बना देता है।

आईडीपीडी के महासचिव डॉ. शकील उर रहमान ने बताया कि भारत महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसमें संक्रामक रोगों का उच्च बोझ, बढ़ती गैर-संचारी रोग महामारी और अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढांचा शामिल है। कोविड  महामारी ने हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की कमजोरियों को और उजागर कर दिया है।

स्वास्थ्य बजट को सकल घरेलू उत्पाद के 3% तक बढ़ाने से स्वास्थ्य सेवाओं में सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को मजबूत करेगा। विशेष रूप से कमजोर आबादी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में सुधार होगा। स्वास्थ्य कार्यक्रमों और योजनाओं को बढ़ाने में सहायक होगा। साथ ही स्वास्थ्य अनुसंधान और विकास को बढ़ावा मिलेगा।

 

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