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मैं हारकर भी जीत गया.

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मैं हारकर भी जीत गया.

 

मैं हार जाता हूँ,

ऐसे दोहरे चरित्र लिए

घूमते व्यक्तियों से.

जो हार में भी जीत

और जीत में कुटिल

भावाभिव्यक्त होते हैं.

हो भला तकनीक का,

आभारी हूँ तसदिक का

जिसने अपनों को भी,

सत्य का आईना दिखाया.

अभिलेखन (रिकॉर्डिंग)

से खूब दिया परिचय.

स्वयं को चट्टान की तरह

अडिग व मज़बूत बताया.

ख़ुशी मिली थी क्षणिक,

डिगा नहीं था तनिक.

जो वक़्त था वो बीत गया,

आज ऐसा महसूस हुआ,

मैं हारकर भी जीत गया.

 

संजय एम. तराणेकर

(कवि, लेखक व समीक्षक)

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