नागरिक संशोधन विधेयक लागू होने से भारत के मुस्लिमों पर क्या असर होगा?

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(कुलवंत सिंह)

लुधियाना 12 मार्च :  दिसंबर 2019 में ही देश की संसद से पारित सीएए को अब पूरे देश में लागू कर दिया गया है, लेकिन सवाल है कि सीएए के लागू होने से भारत के आम आदमी पर क्या असर होगा। क्या सीएए की वजह से भारत के किसी हिंदू को किसी तरह की सुविधा मिल जाएगी, क्या सीएए की वजह से भारत के किसी भी मुस्लिम को किसी तरह का कोई खतरा है?आखिर सीएए में ऐसा क्या है, जिसकी वजह से मुस्लिम इसका विरोध कर रहे हैं और क्या ये विरोध सीएए का नहीं एनआरसी का है, जिसे लागू करने के लिए ही सीएए को लाया गया है। आखिर 11 मार्च 2024 को लागू हुए सीएए से देश में क्या बदल गया है। अगर सीएए के असर को एक लाइन में बताया जाए तो भारत में किसी भी धर्म को मानने वाले किसी भी शखस पर इस सीएए का कोई असर नहीं होगा। भारत के हिंदू हों चाहे मुसलमान, सिख हों चाहे ईसाई, पारसी, जैन, बौद्ध या फिर कोई और धर्म के लोग, उनका इस सीएए से कोई लेना-देना नहीं है और उनके रोजमर्रा के जीवन पर इसका कोई असर नहीं होना है, तो सवाल है कि फिर असर किस पर होगा? ये असर होगा अपने मुल्क के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए उन शरणार्थियों पर जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे। अब उन्हें सीएए के जरिए भारत की नागरिकता मिल जाएगी, लेकिन इसमें एक पेच है और पेच ये है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए मुस्लिमों को ये नागरिकता नहीं मिलेगी, बल्कि इन तीन देशों से जो गैर मुस्लिम यानी कि हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई भारत आए हैं, उन्हें ही इस देश की नागरिकता मिलेगी। तो मतलब साफ है कि सीएए का असर न मुझपर होगा और न ही आपपर क्योंकि हम और आप और हमारे पूर्वज सदियों से इस देश में ही रहते आए हैं और हम यहीं के नागरिक हैं। तो हमारे ऊपर इसका कोई असर नहीं है, हां, होगा बस इतना कि इस देश की आबादी में थोड़ा और इजाफा हो जाएगा क्योंकि इन पड़ोसी देशों से जो शरणार्थी आए हैं। अब वो भी इस देश के नागरिक हो जाएंगे और इस देश की जनसंखया में उनकी भी गिनती की जाएगी।

अब रही बात विरोध की, तो इसका विरोध मुस्लिम समुदाय और उसमें भी कुछ चुनिंदा समूह की ओर से ही हो रहा है और वो ये चाहते हैं कि अगर बांग्लादेश, पाकिस्तान या फिर अफगानिस्तान से मुस्लिम भी भारत आकर यहां की नागरिकता चाहते हैं तो उन्हें भी नागरिकता दी जाए, लेकिन सरकार इसके लिए राजी नहीं है। विरोध की सबसे बड़ी वजह यही है, लेकिन ये वजह ऊपरी तौर पर दिख रही है। असली वजह कुछ और है और वो वजह है एनआरसी, यानी कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस, जो अभी लागू नहीं हुआ है।

विपक्षी दलों का क्या है मानना

विपक्षी दलों के साथ ही कुछ मुस्लिमों का मानना है कि सीएए, एनआरसी लागू करने का पहला चरण है। यानी कि सीएए आ गया है, तो एनआरसी भी आएगा ही आएगा। एनआरसी से पहले आएगा एनपीआर, यानी कि नेशनल पापुलेशन रजिस्टर, ये सरकार का एक दस्तावेज है, जिसमें देश के सभी लोगों का नाम शामिल होता है। यह बताता है कि किस गांव में, किस जिले में, किस राज्य में और इस पूरे देश में कितने लोग हैं। नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में उन लोगों का नाम शामिल किया जाता है, जो किसी जगह पर पिछले छह महीने या उससे ज्यादा वक्त से से रह रहे हैं। इसके अलावा उन लोगों का भी नाम शामिल किया जाता है, जो उस क्षेत्र में अगले छह महीने या उससे ज्यादा वक्त तक रहने वाले हैं। इसमें अपने देश के नागरिकों के साथ ही उन विदेशी लोगों का भी नाम शामिल होता है, जो किसी गांव, कस्बे या शहर में पिछले छह महीने से रह रहे हैं या फिर अगले छह महीने तक वहां रहने वाले हैं। इसकी शुरुआत हुई थी 2010 में. 2011 की होने वाली जनगणना के साथ-साथ इस रजिस्टर को भी बनाया गया था। इसके लिए अप्रैल 2010 से सितंबर 2010 के बीच सरकारी कर्मचारी लोगों के घर-घर गए और सूची तैयार करके एक डाटाबेस बनाया। अपने देश में हर 10 साल में जनगणना होती है। आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी, कोरोना की वजह से 2021 में होने वाली जनगणना हुई ही नहीं, तो अगली जनगणना से पहले नेशनल पापुलेशन रजिस्टर को अपडेट किया जाएगा। तब आएगा एनआरसी, यानी कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस। अभी तक ये असम में लागू है और असम का एनआरसी कहता है कि आपको असम का नागरिक होने के लिए इन 14 में से कोई एक दस्तावेज होना चाहिए।

1951 की एनआरसी लिस्ट में नाम

24 मार्च, 1971 की वोटर लिस्ट में नाम

जमीन और किराएदारी का कागज

नागरिकता सर्टिफिकेट

स्थाई निवास सा सर्टिफिकेट

रिफयूजी रजिस्ट्रेशन का सर्टिफिकेट

पासपोर्ट

एलआईसी की कोई पॉलिसी

सरकार की ओर से जारी कोई लाइसेंस या सर्टिफिकेट

सरकारी नौकरी या फिर नौकरी का सर्टिफिकेट

बैंक या पोस्ट ऑफिस का सर्टिफिकेट

जन्म प्रमाण पत्र

बोर्ड या यूनिवर्सिटी में की गई पढ़ाई का सर्टिफिकेट

कोई अदालती रिकॉर्ड या फिर उसका कार्यवाही का कागज

इन 14 में से किसी भी एक दस्तावेज पर अपना या अपने किसी पुरखे का नाम होना चाहिए था और जो भी दस्तावेज पेश किए गए हैं, वो 14 मार्च, 1971 से पहले का होना चाहिए था। अगर इन 14 कागजात में से किसी एक पर भी आपका नाम था, तो उसे एनआरसी में शामिल कर लिया गया, लेकिन अगर किसी भी दस्तावेज में पुरखे जैसे पिता, बाबा, दादा या उससे पुरानी पीढ़ी का नाम था और अप्लाई करने वाले का नाम नहीं था, तो उसे कुछ सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट्स जमा करने थे, इनकी भी लिस्ट एनआरसी की ऑफिशियल वेबसाइट पर मौजूद है. इसमें शामिल है-

बर्थ सर्टिफिकेट

जमीन का कागज

बोर्ड या यूनिवर्सिटी का सर्टिफिकेट

बैंक, एलआईसी या पोस्ट ऑफिस का रिकॉर्ड

शादीशुदा महिला के लिए सर्किल ऑफिसर या जीपी सेक्रेटरी का सर्टिफिकेट

मतदाता सूची में नाम

राशन कार्ड

कानूनी रूप से वैध कोई और दस्तावेज

अब इन कागजात के आधार पर तो कोई भी खुद की नागरिकता साबित कर सकता है, बशर्ते असम वाला कानून ही पूरे देश पर लागू किया जाए। इसमें सबसे ज्यादा दिक्कत मुस्लिम समुदाय को होने वाली है क्योंकि जिन गैर मुस्लिम के पास कोई कागज नहीं होगा, वो तो सीएए के जरिए इस देश के नागरिक बन जाएंगे, लेकिन मुस्लिमों को सीएए में शामिल किया नहीं किया गया है। ऐसे में उन्हें खुद से ही अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। इसे और बेहतर तरीके से समझने के लिए असम का ही उदाहरण लेते हैं। असम में 31 अगस्त, 2019 को एनआरसी की फाइनल लिस्ट आई थी। इसमें करीब 19 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं थे यानि कि वो अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए थे। तो उन्हें फॉरेन ट्रिब्यूनल, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का चक्कर काटना पड़ रहा है ताकि वो अपनी नागरिकता साबित कर पाएं। अभी इसकी प्रक्रिया चल रही है। प्रकिया पूरी हो जाएगी, तो हो सकता है कि कुछ लोग अपनी नागरिकता साबित कर पाएं, जिनमें हर धर्म के लोग होंगे। जो गैर मुस्लिम नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे, उन्हें सीएए के जरिए नागरिकता दे दी जाएगी। मुस्लिमों का क्या होगा, तो ये अभी साफ नहीं है, हालांकि, असम में बने डिटेंशन सेंटर इसी ओर इशारा करते हैं कि जो भी खुद को इस देश का नागरिक साबित नहीं कर पाएगा, उसकी जगह वही डिटेंशन सेंटर ही होंगे। लिहाजा असम के उदाहरण को देखते हुए पूरे देश के मुस्लिम डरे हुए हैं क्योंकि उन्हें अपनी नागरिकता साबित करनी है, 1600 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी जब सरकार असम के 3.29 करोड़ लोगों का ठीक-ठीक वेरिफिकेशन नहीं करवा पाई, तो देश के करीब 140 करोड़ लोगों का वेरिफिकेशन कैसे सही होगा, ये अपने आप में बड़ा सवाल है।

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