सैटालाइट-फोन से ट्रैक हो गया मोस्ट-वांटेड आतंकी
चंडीगढ़, 29 जुलाई। आसिफ और जुनैद भट्ट, वे दो नाम हैं, जिनकी तलाश भारतीय सुरक्षा बल कश्मीर के पहलगाम हमलों के बाद से कर रहे थे। आखिरकार दोनों को मार गिराया गया है।
कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ भारतीय सेना ने ऑपरेशन महादेव शुरू किया। जिसमें पहलगाम हमले ज़िम्मेदार हाई-प्रोफाइल आतंकवादी समूह को निशाना बनाया गया। इस सुरक्षा गाथा में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिसकी शुरुआत एक दुर्लभ सैटेलाइट फोन सिग्नल से हुई, यही सुराग महत्वपूर्ण साबित हुआ। कश्मीर में अक्सर खुफिया अभियानों पर छाए आतंकवाद के घने कोहरे में, रडार पर एक असामान्य झलक है। वहीं सैटेलाइट फोन, जो निगरानी ग्रिड पर इस क्षेत्र में शायद ही कभी इस्तेमाल किए जाते हैं। हालांकि इस बार, एन्क्रिप्टेड संचार ने भारतीय खुफिया स्क्रीन को रात में किसी चमकती हुई लौ की तरह चमकाया। इंटरसेप्ट पर कार्रवाई करते हुए आतंकवाद-रोधी इकाइयों ने घाटी में तैनात विशेष बलों के साथ तुरंत समन्वय स्थापित किया। संचार का स्रोत एक सुनसान ठिकाने पर ट्रैक किया गया, जिसके बारे में माना जा रहा है कि वह आसिफ का अस्थायी ठिकाना था। आसिफ को उसके उपनाम सुलेमान शाह के नाम से भी जाना जाता है। वह लश्कर-ए-तैयबा वरिष्ठ कमांडर था। वही, पहलगाम में हमले का संदिग्ध मास्टरमाइंड था, जिसमें कई सुरक्षाकर्मी घायल हो गए थे।
आसिफ का नाम महीनों से खुफिया तंत्र में चर्चा का विषय बना था। कथित तौर पर 2024 में पीर पंजाल की दुर्गम पहाड़ियों से कश्मीर घाटी में आने के बाद वह के बावजूद पकड़ा नहीं जा सका था। सूत्रों के मुताबिक आसिफ निगरानी से बचने को पहाड़ी इलाकों और स्थानीय नेटवर्क का फायदा उठा रहा था। ऑपरेशन महादेव में विशेष बल ने निर्धारित स्थान के पास पहुच भीषण गोलीबारी शुरू की। मृतकों में जुनैद अहमद भट भी शामिल था, जो लश्कर का एक जाना-माना आतंकवादी था। हालांकि शुरुआती रिपोर्टों से पता चला था कि आसिफ घेराबंदी से बच निकला था, बाद में हुई ताज़ा पुष्टि में मारे गए आतंकवादियों में से एक की पहचान आसिफ के रूप में हुई। कथित तौर पर डीएनए विश्लेषण और इलेक्ट्रॉनिक फोरेंसिक ने पहचान की पुष्टि में भूमिका निभाई। इस अभियान का नाम ऑपरेशन महादेव रखने का सेना का फैसला प्रतीकात्मक है।
इस सफलता के बावजूद, सुरक्षा तंत्र हाई अलर्ट पर है। खुफिया जानकारी दूरदराज के इलाकों, खासकर घाटी के ऊपरी इलाकों और नियंत्रण रेखा के पार संभावित घुसपैठ मार्गों पर संभावित जवाबी हमलों का शक कर रही है। कथित तौर पर निगरानी और ड्रोन गश्त बढ़ा दी गई है और कुछ संवेदनशील इलाकों में मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। हालांकि सवाल उठाता है कि ऐसे उच्च-स्तरीय आतंकवादियों को घाटी में सुरक्षित रास्ता और समर्थन कैसे मिलता रहता है। विश्लेषकों का कहना है कि दीर्घकालिक समाधान के लिए गतिशील अभियानों को कट्टरपंथ से मुक्ति और स्थानीय स्तर पर सक्रियता के प्रयासों के साथ मिलाना होगा।
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