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होट सीट उचाना,त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे दिग्गज, कांग्रेस-बीजेपी-जेजेपी के निर्दलीयों ने बिगाड़े समीकरण

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हरियाना /यूटर्न/3 अक्तूबर: हरियाणा विधानसभा चुनाव में जींद जिले की उचाना सीट पर कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। कांग्रेस ने यहां से हिसार के पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह, जेजेपी- एएसपी गठबंधन से पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला मैदान में हैं। वहीं, बीएसपी-आईएनडीएल ने विनोद पाल सिंह और भाजपा ने देवेंद्र अत्री को टिकट दिया है। 2019 में दुष्यंत यहां से साढ़े 47 हजार वोटों से जीते थे। कांग्रेस से बागी वीरेंद्र घोघडिय़ां और दिलबाग संडील आजाद लड़ रहे हैं। इस सीट पर 2.17 लाख वोटर हैं, जिनमें से 1.7 लाख जाट हैं। बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र और दुष्यंत जाट समाज से हैं। दोनों परिवारों की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर है। किसान आंदोलन के कारण बीजेपी के अलावा दुष्यंत को भी किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। बृजेंद्र को कांग्रेस वेव और किसानों का लाभ मिल सकता है। निर्दलीय वीरेंद्र घोघडिय़ां उनकी दिक्कतें बढ़ा रहे हैं। वे भी जाट हैं। उचाना में 28 हजार ब्राह्मण, 23 हजार ओबीसी-एससी के 26 हजार और वैश्य वोटर करीब 7 हजार हैं। विकास काला भी निर्दलीय हैं। अगर जाट वोट बृजेंद्र, दुष्यंत, वीरेंद्र और विकास काला में बंटे तो बीजेपी को फायदा मिलेगा। अगर जाट एकजुट रहे तो बीजेपी की राह आसान नहीं होगी। भाजपा को गैर जाट वोटों से उंमीदें हैं। ओबीसी-एससी यहां निर्णायक साबित हो सकते हैं। एससी वोटर निर्दलीय वीरेंद्र घोघडिय़ां के साथ जा सकते हैं। उचाना सीट पर किसानों के लगभग सवा लाख वोट हैं। पिछले चुनाव में ये जजपा को मिले थे। लेकिन इस बार कांग्रेस की तरफ शिफट हो सकते हैं।
पहली बार बीरेंद्र सिंह जीते थे यहां से
उचाना सीट 1977 में बनी थी। पहला चुनाव बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर जीता। बृजेंद्र के पिता बीरेंद्र सिंह इस सीट से 5 बार विधायक बन चुके हैं। जो कई बार मंत्री रहे हैं। 2009 में वे सिर्फ 621 वोटों से ओमप्रकाश चौटाला से हारे थे। जिसके बाद कभी चुनाव नहीं लड़ा। ये अब तक की सबसे छोटी हार है। 2014 में बीरेंद्र परिवार बीजेपी में चला गया। 2014 में उनकी पत्नी प्रेमलता यहां से विधायक बनीं। 2019 में प्रेमलता को साढ़े 47 हजार वोटों से दुष्यंत ने हराया। ये अब तक की सबसे बड़ी जीत है। बृजेंद्र आईएएस अफसर रहे हैं। 2019 में वीआरएस लेकर बीजेपी के टिकट पर हिसार लोकसभा से चुनाव लड़ा और जीतकर सांसद बने। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए। लेकिन कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। इसके बजाय पार्टी ने जयप्रकाश को टिकट दिया। अब बृजेंद्र जनता के बीच जाकर रोजगार, पेंशन आदि के नाम पर वोट मांग रहे हैं। बीजेपी कैंडिडेट देवेंद्र अत्री के पिता चतुभुर्ज अत्री यहां के बड़े समाजसेवी रहे हैं। देवेंद्र काफी समय से इस सीट पर सक्रिय हैं, जो अपना पहला चुनाव लड़ रहे हैं। जनता के बीच जाकर बीजेपी सरकार के कार्यकाल में हुए कामों के आधार पर वे वोट मांग रहे हैं। वहीं, दुष्यंत चौटाला अपने डिप्टी सीएम रहते हुए कामों को जनता के बीच रख रहे हैं।
वीरेंद्र ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किलें
दुष्यंत 2014 में हिसार से सांसद बने थे। जिनको 2019 में बृजेंद्र ने हरा दिया। बाद में दुष्यंत ने उचाना से विधानसभा चुनाव लड़ा और बृजेंद्र की मां को हरा दिया। इसके बाद उन्होंने ऐलान किया था कि अगला यानी 2024 का चुनाव भी उचाना सीट से लड़ेंगे। निर्दलीय वीरेंद्र सिंह घोघडिय़ां गांव के हैं। वे हुड्डा के करीबी रहे हैं। बीरेंद्र परिवार के बीजेपी में जाने के बाद वे यहां एक्टिव थे। लेकिन बीरेंद्र वापस कांग्रेस में आ गए। जिसके बाद अब वीरेंद्र निर्दलीय लड़ रहे हैं। उनको घोघडिय़ां, भौंसला, कालता, रोजखेड़ा और छापड़ा के लोगों का भी साथ मिल रहा है। माना जा रहा है कि यहां के 12 हजार वोटर खेल कर सकते हैं। देखने वाली बात होगी कि जनता इस बार किसको अपना विधायक चुनती है?
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