कॉर्पोरेट अस्पतालों के टारगेट कर रहे हैं आम आदमी की जेब में छेद
बनवा रहे हैं अपनी दवाइयां, मरीज बन रहे हैं बलि का बकरा
लुधियाना 1 मार्च : दिन प्रतिदिन महंगे होते जा रहे उपचार के चलते आम आदमी के मुश्किले में बढ़ रही है क्योंकि अस्पतालों में इलाज लंबा होने लगा है ओपीडी में जाने वाले मरीजों में से बड़ी संख्या को अस्पतालों में दाखिल होने का मशवरा दिया जाता है 2016 से लेकर 2025 तक हालत पहले से बढ़कर हो गए हैं जबकि 2016 में आई है की रिपोर्ट के अनुसार 44% सर्जरी फेक होती है जिनकी कोई आवश्यकता नहीं होती इनमें से 55 प्रतिशत होता सर्जरी 48% युटेरस सर्जरी 47% कैंसर 48% घुटना प्रतिरोपण तथा 45% से अधिक सिजेरियन सेक्शन सर्जरी बताई जाती है विशेषज्ञों का कहना है कि पार्लियामेंट्री कमेटी इस बात को मान चुकी है कि अपने टारगेट और प्रॉफिट दिखाने के चक्कर में कॉर्पोरेट अस्पताल फेक सर्जरी करते हैं और उनके साथ देने वाले डॉक्टरों की सैलरी लाखों रुपए में होती है जो डॉक्टर अपने टारगेट पूरे नहीं करता उसे कॉर्पोरेट अस्पताल से चलता कर दिया जाता है पद्म विभूषण डॉक्टर बीएम हेगडे भी अपने संबोधनों में आधुनिक मेडिकल चिकित्सा पर कई तरह के प्रश्न चिन्ह लगाते आ रहे हैं परंतु सरकार ने महंगे होते जा रहे उपचार की कीमत को कम करने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किये जिसके चलते मरीजों का उपचार धंधा बन गया है
ईमानदारी से काम करने वाले डॉक्टर हुए कम
ऐसा नहीं की चिकित्सा पैसे से जुड़े सभी डॉक्टर पैसे कमाने के लिए मरीजों का खून चूसते हैं बल्कि बहुत से ऐसे डॉक्टर है जो आज भी इमानदारी से अपना काम कर रहे हैं और पैसे की बजाय मरीज को ठीक करने में अधिक ध्यान देते हैं
विशेषज्ञ बताते हैं कि कॉर्पोरेट अस्पतालों ने हीं उपचार महंगा नहीं किया बल्कि कई छोटे अस्पताल और नर्सिंग होम भी मरीजो को लूटने में पीछे नहीं रहे थे इनमें से अधिकतर अस्पतालों के अपने ड्रग स्टोर है और उससे भी आगे बात करें तो कईयो ने दवाइयां भी अपने मुताबिक बनवा ली है और उसके प्रिंट रेट भी मन माफिक निर्धारित किए हैं यानी की दवाइयां में उनके मुताबिक मिल रही है और दाम भी वही निर्धारित करते हैं ऐसी छोटी-छोटी दवा कंपनियां है जो अस्पतालों की मांग पर उन्हें दवाइयां बनाकर दे रही है और उसके दामों को मरीजों से वसूला जाता है दिखावे के दौर पर कभी कभार डॉक्टर दवाइयां से 5-10 प्रतिशत डिस्काउंट दे देते हैं ताकि मरीज भी खुश रहे और उनका काम भी चला रहे जबकि बाजार में वही दवाइयां काफी कम दामों पर उपलब्ध है चिकित्सा से जुड़े सूत्रों का कहना कि अब बड़े अस्पताल भी इसी पैटर्न पर दवाइयां मंगवा कर मरीजों को दे रहे हैं और दामों में कई गुना वृद्धि करके उसमें थोड़ा बहुत डिस्काउंट भी दे रहे हैं यानी कि चारों ओर मरीजों की खाल नोचने में कसर नहीं छोड़ी जा रही और सरकार इसमें मुक दर्शक बनी हुई है
ड्रग विभाग बना अस्पताल माफिया का सलाहकार बताता है कानूनी दावपेच
चिकित्सा पैसे से जुड़े कई लोगों का कहना है कि ड्रग विभाग जने कार्रवाई करनी है वहीं अस्पताल माफिया का सलाहकार बनकर बैठा है और उन्हें कानूनी दावपेचो से बचने के लिए जागरूक करता रहता है और ऐसे लोगों से ड्रग विभाग के काफी अच्छे संबंध बताए जाते हैं अगर कोई उनसे प्रश्न भी कर तो वह बताते हैं कि करोड़ में क्या प्रभाव प्रावधान है और क्या नहीं और ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने में लाचारी दर्शाते दिखाई देते हैं आज तक ऐसे धंधों को रोकने के लिए ड्रग विभाग ने कहीं पर रेड नहीं की और ना ही कोई विभागीय कार्रवाई की है यहां तक की आयुर्वेद की प्रेक्टिस करके कोई एलोपैथी दवाइयां मरीजों को दे रहा है ड्रग विभाग वहां पर भी कोई कार्रवाई करने नहीं जाता और जहां जाता है वहां सुविधा शुल्क लेकर वापस आ जाता है
पंजाब के आसपास राज्यों में पकड़ी जा चुकी है नकली दवाइयां पर राज्य में ड्रग माफिया को छूट
लेकिन नहीं है क्या पिछले कुछ समय में पंजाब के आसपास इलाकों में कई बार नकली या घटिया क्वालिटी की दवाइयां पकड़ी जा चुकी है परंतु पंजाब में विशेष कर लुधियाना में जहां एशिया की सबसे बड़ी होलसेल दवा मार्केट है ड्रग विभाग निगरानी के लिए वहां पर छापेमारी नहीं करता जबकि वहां पर व्यापक रूप से जांच करने की आवश्यकता है परंतु दिखावे के तौर पर कभी कबार कोई छोटी-मोटी कार्रवाई की जाती है ताकि उच्च अधिकारियों की दिखाने के लिए कुछ कारवाइयां तो उनके पास कागजों पर हो लोगों का कहना है कि जिले के ड्रग विभाग द्वारा कभी भी कोई नकली दवा नहीं पकड़ी गई दवा बाजार के लोगों का कहना है कि आसपास के राज्यों से भारी संख्या में दवाइयां राज्य के हर शहर में आ रही है परंतु इसे पकड़ने के लिए ड्रग विभाग में इच्छा शक्ति की कमी है जिसके चलते वह दावा बाजार से जुड़े संगठनों के संपर्क में रहते हैं और कार्रवाई भी उनके अनुसार ही करते हैं जबकि लोगों की सेहत के हितों के मध्य नजर ड्रग विभाग कार्रवाई करना भूल चुका है
लोगों ने की कार्रवाई के लिए सरकार से मांग
शहर के प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा आम आदमी क्लिनिक खोलकर लोगों को निशुल्क उपचार उपलब्ध कराया जा रहा है जॉन की इच्छा शक्ति को दर्शाता है परंतु दावा बाजार पर सरकार का कोई कंट्रोल नहीं है भले ही ड्रग विभाग के अधिकारी यह कहते रहे की दवाइयां से जुड़ा मामला ड्रग कंट्रोलर ने देखना होता है परंतु राज्य सरकार अपने स्तर पर ड्रग विभाग को सतर्कता बढ़ाने के लिए कह सकती है जिसमें जांच और सैंपलिंग व्यापक स्तर पर की जानी चाहिए इसके अलावा जो डॉक्टर व अस्पताल दवा कंपनियों से अपने लिए दवाइयां बनवाकर और उनके दाम भी अपनी मनमर्जी के मुताबिक प्रिंट करवा रहे हैं ऐसे माफिया पर रोक लगाई जानी चाहिए और ऐसी दवाइयां के सैंपल लेकर बार-बार जांच के लिए भेजे जाने चाहिए ताकि उनकी गुणवत्ता की भी जांच हो सके और उनके दामों के अंतर पर भी डॉक्टरों की जवाबदेही निर्धारित की जानी चाहिए की जो दवाइयां बाजार में कम कीमत पर उपलब्ध है वह वही दवाइयां किसी और नाम से बनवाकर मन माने दामों पर क्यों बेच रहा है