आरएसएस में रहते नामी नेताओं के साथ जेल काटी, फिर कांग्रेस में आए तो वहां भी खास पहचान बनाई
पुनीत महाजन
चंडीगढ़ 30 मार्च। हिमाचल प्रदेश की राजनीति व समाजसेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले रामेश्वरी लाल शर्मा ने ‘जीवन के सफर का शतक’ पूरा कर लिया। उनका 100वां जन्मदिन प्रशंसकों ने उत्साह से मनाया।
रामेश्वरी लाल शर्मा का जन्म 30 मार्च, 1926 को कांगड़ा जिले के हरिपुर में हुआ था। रविवार को वह सौ साल के हो गए और इस अवसर पर देहरा के एक होटल में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। वरिष्ठ समाजसेवी रामेश्वरी लाल शर्मा के पिता लोहरी राम थे। उन्होंने दसवीं और प्रभाकर तक शिक्षा प्राप्त की और अध्यापक एवं संपादक के रूप में कार्य किया। सन 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगने के कारण उन पर तीन बार आरोप लगे और उन्हें धर्मशाला जेल में रखा गया। तीसरी बार, कांग्रेस सरकार को संदेह था कि वे आरएसएस के मुख्य संरक्षक होने के नाते कोई बड़ा आंदोलन ना करें, इसलिए उन्हें पूर्व विधायक कंवर दुर्गा दास, पूर्व सांसद यज्ञ दत्त, पूर्व पंजाब मंत्री डॉ. बलदेव राज, और बलराम दास टंडन के साथ योल जेल में रखा गया।
साल 1952 में लाला जगत नारायण और पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष पंडित अमरनाथ ने उन्हें कांग्रेस की सदस्यता दिलाई। इसके बाद, उन्होंने हिमाचल प्रदेश में 22 स्कूलों की स्थापना में सहयोग दिया और नगरोटा सूरियां स्कूल के संचालन का दायित्व संभाला। उन्होंने घर-घर जाकर लड़कियों की शिक्षा के लिए जागरूकता अभियान चलाया।1943 में हरीपुर कन्या विद्यालय की स्थापना की, जिसे 1952 में सरकार को सौंप दिया। साल 1953 में उन्हें ब्लॉक कांग्रेस मंगवाल का अध्यक्ष बनाया गया और बाद में जिला कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने। 1963 में वे प्रदेश कांग्रेस महासचिव नियुक्त हुए। इसके अलावा, उन्होंने जिला मजदूर और चौकीदार यूनियन के अध्यक्ष, जिला युवा कांग्रेस कांगड़ा के अध्यक्ष, हरीपुर पंचायत के प्रधान और बीडीसी सदस्य के रूप में भी कार्य किया।
1966 में, जब हिमाचल प्रदेश का पुनर्गठन हुआ तो वग पुनर्गठन समिति के महासचिव बने। उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी से मिलकर कांगड़ा को हिमाचल प्रदेश में शामिल करने का प्रस्ताव रखा।
1967 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार ने उन्हें गुलेर विधानसभा सीट से कांग्रेस का टिकट दिया। हालांकि कुछ नेताओं की साजिश से वह चुनाव हार गए। इसके बावजूद, उन्हें कांगड़ा जिले में कांग्रेस टिकट वितरण स्क्रीनिंग कमेटी का प्रभारी बनाया गया और वे पोंग डैम विस्थापितों की कमेटी के महासचिव भी रहे।
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