दिल्ली हाईकोर्ट ने राधा स्वामी सत्संग ब्यास प्रमुख बाबा गुरिन्द्र सिंह ढिल्लों को 14 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का निर्देश दिया है। बाबा ढिल्लों और उनके परिवार ने अदालत में दायर आवेदन में कहा था, कि उनकी आर.एच.सी. होल्डिंग, जिसके प्रोमोटर मालविंदर सिंह और शिविंदर सिंह हैं, पर कोई देनदारी नहीं है।
पूर्व आदेश और दलीलें
अदालत ने इससे पहले रैनबैक्सी के पूर्व प्रोमोटरों को जापानी फर्म डायची सक्यो को 3,500 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया था। बाबा ढिल्लों ने अदालत को बताया कि आर.एच.सी. होल्डिंग ने झूठे दावे किए हैं। इसके बाद अदालत ने 11 अक्टूबर के आदेश में बाबा ढिल्लों, उनकी पत्नी शबनम, बेटों गुरकीरत और गुरप्रीत, और पुत्रवधू नयन तारा को लेन-देन से संबंधित दस्तावेजों के साथ अदालत में पेश होने का निर्देश दिया।
विवाद का इतिहास
बाबा ढिल्लों का संबंध मालविंदर और शिविंदर सिंह से रिश्तेदारी में मामा-भतीजा का है। 1990 के दशक के अंत से दोनों भाई बाबा ढिल्लों के करीब आए और तब से वित्तीय लेन-देन का मामला उलझा हुआ है। माना जाता है कि डेरा ब्यास वर्तमान में देश का सबसे बड़ा आध्यात्मिक संस्थान है।
6,000 करोड़ का दावा
अदालत ने बाबा ढिल्लों, उनके परिवार और सहयोगियों सहित 55 लोगों और इकाइयों को 6,000 करोड़ रुपए से अधिक की रकम आर.एच.सी. होल्डिंग को जमा करने का आदेश दिया। यह रकम रैनबैक्सी के अधिग्रहण से जुड़े विवाद के समाधान के लिए है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मामला
सिंगापुर के आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल ने 2016 में सिंह बंधुओं को 2,562 करोड़ रुपए का भुगतान डायची सक्यो को करने का आदेश दिया था। इसके बाद विवाद भारत और सिंगापुर दोनों अदालतों में चला। दिल्ली हाईकोर्ट ने जनवरी 2018 में अवॉर्ड को वैध माना।
शिकायत और आरोप
मालविंदर सिंह ने फरवरी में दावा किया कि 2008 में रैनबैक्सी की बिक्री से प्राप्त 4.6 अरब डॉलर का बड़ा हिस्सा बाबा ढिल्लों और सहयोगियों द्वारा रियल एस्टेट में निवेश किया गया।