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दुःखी – दीन की सहायता करना, समाज में शुभ कर्मों की वृद्धि हो- संत अश्वनी बेदी

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लुधियाना 19 जनवरी : श्री राम शरणम् , श्री राम पार्क के प्रमुख संत अश्वनी बेदी जी ने आज विशाल सत्संग में कहा कि श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज कहते है कि

सेवा का भाव साधक के चरित्र को ऊँचा उठाता है । स्वार्थी को अपने लिये कार्य करने में आनन्द आता है। जन सेवा करना बहुत अच्छा है। सहानुभूति तथा सहायता से भला होता है। मानव जगत में अच्छे कार्यों में सहयोग देना चाहिये । उनके लिये हितकर कर्म करना चाहिये। जिनको शांति प्राप्त है, जिनके हृदय में राम-नाम खूब बस गया है, उनको अपने दैनिक कार्यों से समय निकालकर, जन-सेवा के लिये समय देना चाहिये।

संत बेदी जी ने कहा – जैसे मैं जबसे भजन करने लगा, मुझमें बड़ा परिवर्तन आ गया। बन्धुओं, पड़ोसी आदि से अच्छा बरतता हूँ । मुझे बड़ी शांति मिली है। यदि आप भी भजन सिमरन करें, तो आपको भी लाभ होगा। इस प्रकार दूसरों के ऊपर प्रभाव डालना चाहिये। दैनिक साधन से लोगों को एकाग्रता का लाभ हुआ ।

व्यक्ति समाज का सुधार करे। यदि साधक को एक या दो मास के लिये एकान्त साधना करने की आवश्यकता हो तो अच्छा है । परन्तु सारी उम्र एकांतवास रहना ठीक नहीं। क्योंकि साधना के साथ-साथ सेवा करना ठीक है। आलस्य, प्रमाद, व्यर्थ क्रियाओं में समय बिताना, इधर-उधर जाना और इस आश्रम से उस आश्रम में जाना, बहुमूल्य समय को व्यर्थ खोना है- यह ठीक नहीं है।

अश्वनी बेदी जी ने कहा जिनको साधना की सिद्धि प्राप्त हो गई है, साधना के रस का आस्वादन किया है, उनको समाज की सेवा में कुछ समय व्यतीत करना उचित है। कार्यक्रम बनाकर कार्य करना यह एक बड़ा अच्छा तरीका है। जितना समय दे सकता है, समाज की सेवा में व्यतीत करे। भले मनुष्य यदि सेवा करें, तो देश व जाति के जनों का अधिक हित हो जाता है। व्यक्ति का आत्मा निर्मल हो जाता है। तब जो बात निकलेगी वह हितकर होगी। सामाजिक कार्यों की शुद्धि होगी। साधक अपने समय को जितना जन सेवा में लगायेगा, उतना ही अच्छा है।

साधक को, आराधना करने वाले नर-नारी को परोपकार, जन-सेवा आदि कार्यों को राम-सेवा और राम-पूजा ही समझना चाहिये। इससे समाज-सेवा में रुचि हो जाती है। मनुष्य (साधक) अपने सुकृत कर्मों से उस परमेश्वर को पूज कर सिद्धि प्राप्त करता है। यह श्रीराम का आराधन है। देश, बन्धुओं, अड़ोस-पड़ोस को सहायता देना, यह राम-पूजा है। साधक उस परमेश्वर को अपने कर्मों से पूजकर सिद्धि को प्राप्त करता है । उपासक के लिये सेवा राम-पूजा की सामग्री है। दूसरों को सत्संग के लिये उत्साह देना, यह भी सेवा कर्म है। वरना साधक स्वार्थी हो जाता है। काम करते रहने से शक्ति बनी रहती है। अपनी भक्ति का प्रकाश दूसरे पर पड़े। जीवन में फीकापन कितने समय से बढ़ रहा है, उसको राम नाम के प्रभाव से निकालना, भक्तों का विशेष कर्म है।

 

अपने विचारों का विस्तार करना, जो पिछड़े हुए हैं उनको उठाना, दुःखी – दीन की सहायता करना, समाज में शुभ कर्मों की वृद्धि हो – यह सब काम राम-पूजा है। हमें दास बनना चाहिये। उपासक के सब काम ध्यान, सिमरन आदि सहायक हैं और श्रीराम के आशीर्वाद के अवतरण हैं ।

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