क्या डीपफेक तकनीक हमारे समाज और नैतिक मूल्यों के लिए बन चुके हैं?

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डीपफेक तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का ऐसा रूप है जो असली और नकली के बीच की रेखा मिटा देता है। मशीन लर्निंग के ज़रिए बनाए गए ये वीडियो, तस्वीरें और आवाज़ें इतने वास्तविक लगते हैं कि सच और झूठ में फर्क करना लगभग असंभव हो गया है। हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार से जुड़ा एक एआई-जनरेटेड वीडियो इस खतरे की ताज़ा मिसाल बना, जिसमें उन्हें महर्षि वाल्मीकि के रूप में दिखाया गया। इस वीडियो को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे “जनहित के खिलाफ” बताते हुए सभी प्लेटफॉर्म से तत्काल हटाने का आदेश दिया।अक्षय कुमार ने भी मीडिया से अपील की कि एआई से जुड़ी किसी भी सामग्री को साझा करने से पहले उसकी सत्यता की जांच की जाए।


डीपफेक का इस्तेमाल अब सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह समाज, राजनीति और नैतिक मूल्यों पर सीधा प्रहार बन चुका है। इनका उपयोग फर्जी खबरें फैलाने, साइबर अपराध, धोखाधड़ी और चुनावों में हेरफेर जैसी गतिविधियों में तेजी से बढ़ रहा है। 2025 की ग्लोबल थ्रेट रिपोर्ट के अनुसार, डीपफेक तकनीक आने वाले वर्षों में दुष्प्रचार का सबसे बड़ा हथियार बन सकती है।

फिर भी, यह सच है कि एआई तकनीक के अपने फायदे भी हैं। इसका उपयोग स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में दक्षता बढ़ाने और मानव जीवन को आसान बनाने के लिए किया जा रहा है। एआई डेटा विश्लेषण, रोग पहचान, जलवायु पूर्वानुमान और डिजिटल नवाचार में अहम भूमिका निभा रहा है।

लेकिन एआई के साथ चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं — जैसे डेटा गोपनीयता का उल्लंघन, गलत सूचना का प्रसार, बेरोजगारी का खतरा और नैतिक नियंत्रण की कमी। न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर ने कहा कि ऐसे डीपफेक वीडियो सिर्फ व्यक्ति की छवि को नहीं, बल्कि समाज के नैतिक ढांचे को भी कमजोर कर रहे हैं।

अब समय आ गया है कि सरकार और तकनीकी संस्थान मिलकर एआई आधारित कंटेंट पर सख्त निगरानी और कानून लागू करें। क्योंकि अगर डीपफेक पर रोक नहीं लगी, तो यह सच्चाई, विश्वास और लोकतंत्र — तीनों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता है।