इस बैल्ट में भाजपा दस साल रही मजबूत, यहां 6 जिलों की 23 सीटें, पिछली बार जीती थीं 12
नदीम अंसारी
हरियाणा 6 अक्टूबर। विधानसभा चुनाव को लेकर हरियाणा में सियासी-माहिर अब ‘पोलिंग-ट्रेंड’ के आधार पर चुनावी नतीजों के कयास लगा रहे हैं। प्रमुख दलों, खासकर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के पिछले प्रदर्शन के आधार पर राजनीतिक आकंलन जारी है। माहिरों की मानें तो ‘जीटी रोड बेल्ट’ में इस बार भाजपा को सियासी झटका लगने की आशंका है। जो उसे बहुमत से दूर करने का बड़ा कारण बन सकता है।
गौरतलब है कि इसी बैल्ट में हरियाणा के 6 जिले और सबसे अधिक 23 विस सीटें हैं। पिछले दो चुनाव में यहां बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया था। पार्टी ने 2014 में यहां 23 में से 21 सीटें जीती थीं। जबकि 2019 में भी 23 में से 12 सीटें हासिल कर ली थीं। यहां काबिलेजिक्र है कि हरियाणा में भाजपा की रणनीति गैर-जाट वाली राजनीति की रही है। जबकि इसी बैल्ट में सबसे ज्यादा गैर-जाट वोटर हैं। 2019 में यहां औसतन 69.38% वोटिंग हुई थी। इस बार घटकर 67.72% रह गई। 2019 में भाजपा ने यहां जो 12 सीटें जीती थीं, उनमें से पांच सीटों पर इस बार पहले की तुलना में ज्यादा पोलिंग हुई है। जिसे एंटी-इन्कंबेंसी के तौर पर देखा जा रहा है।
बाकी प्रमुख बैल्ट में भी चुनौती !
हरियाणा की असल जाट-लैंड कहलाने वाली देशवाल बेल्ट भी चुनावी नतीजों पर बड़ा असर डाल सकती है। यहां कांग्रेस दमदार प्रदर्शन करती रही है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के दबदबे के चलते यहां सिर्फ तीन जिलों रोहतक, झज्जर और सोनीपत में बीजेपी को गैर-जाट वोटरों का सहारा रहा है। 2014 में मोदी-लहर में भी बीजेपी यहां 14 सीटों पर खास प्रदर्शन नहीं कर सकी थी। इसके अलावा सूबे का दूसरा सबसे बड़ा इलाका बागड़ बेल्ट है। इसके 5 जिलों में 21 विस सीटें हैं। इस बैल्ट में भी जाटों का सियासी-रसूख है। यहां तीनों मशहूर लाल यानि सियासी-दिग्गजों देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल के परिवारों का दबदबा है। 2014 और 2019 में मोदी-लहर के बावजूद भाजपा इस बैल्ट में बाकी हिस्सों जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। तब यहां कांग्रेस, इनेलो और अन्य क्षेत्रीय दल आगे रहे थे। मेवात बेल्ट में मुस्लिमों का दबदबा रहा है। 2014 में यहां इनेलो का वर्चस्व रहा, लेकिन 2019 में कांग्रेस नूंह जिले की तीनों सीटों पर जीतीं। इस बेल्ट में भी बीजेपी को बढ़त मिलने की कम ही उम्मीद है।
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