ढाई साल की गुगली के साथ पारी खेलने मैदान में उतरे गुप्ता के दांव से अच्छे-अच्छे सोच में

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पंजाब में राज्यसभा चुनाव के उम्मीदवार राजिंदर गुप्ता

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पंजाब की राजनीति में महान संतुलनकर्ता, सभी दलों में सहज

 

चंडीगढ़,लुधियाना, 9 अक्टूबर। पंजाब में राज्यसभा उप चुनाव में सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार राजिंदर गुप्ता हैं। जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और उनकी कई दशक से राजनीति में गहरी पकड़ रही है। साथ ही समाजसेवा के क्षेत्र में उन्होंने तमाम सराहनीय काम किए। दूसरी तरफ कारोबारी-जगत में कदम रखा तो अपने औद्योगिक-समूह ट्राइडेंट ग्रुप को खास पहचान दिलाई।

बरनाला के साथ सियासी-सीढ़ियां चढ़े :

राजिंदर गुप्ता को सिर्फ नामचीन उद्यमी बतौर जानने वाले ज्यादातर लोग शायद यह नहीं जानते, वह कई दशक पहले से एक राजनेता रहे हैं। जिनमें शुरु से सत्ता, संरक्षण, वफ़ादारी और महत्वपूर्ण लोगों के करीब रहने की कला रही। उन्होंने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला के सहयोग से अपना करियर शुरू किया था। नेतृत्व के साथ इस शुरुआती जुड़ाव ने जीवन भर की राजनीतिक निकटता के बीज भी बोए। दशकों से गुप्ता ने अपने व्यक्तित्व के चलते सभी पार्टियों के नेताओं से बेहतर संबंध बनाने के चलते पंजाब से लेकर केंद्र सरकार तक हमेशा पकड़ बनाए रखी। राजिंदर गुप्ता का जन्म बठिंडा में एक कपास व्यापारी के घर हुआ था, जो आगे चलकर पंजाब के सबसे अमीर लोगों में से एक बनने वाले व्यक्ति के लिए एक साधारण शुरुआत थी। हालांकि अपनी व्यावसायिक सफलताओं से पहले भी, उनका संबंध शक्तिशाली राजनीतिक हस्तियों से था। वे राजनीतिक गलियारों में छाए रहे और सत्ताधारियों द्वारा उनका सम्मान किया जाता रहा। समय के साथ उनकी प्रतिष्ठा एक ऐसे व्यक्ति के रूप में बढ़ती गई जो बिना किसी से नाता तोड़े पार्टी लाइन पार कर सकते थे। जिससे कई लोगों की नज़र में वे किसी अहम राजनीतिक पद पर आने से पहले ही एक उत्कृष्ट राजनेता बन गए। उनको पंजाब प्लानिंग बोर्ड का वाइस चेयरमैन भी बनाया गया था।

 

बादल परिवार से रहीं नजदीकियां :

एक दौर में गुप्ता की शिरोमणि अकाली दल-बादल, खासकर तत्कालीन सीएम प्रकाश सिंह बादल के परिवार से लंबे समय तक नजदीकियां रही। उन्हें अक्सर अकाली नेतृत्व का समर्थन मिला। मसलन, बरनाला में भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर किसानों ने उनके ट्राइडेंट प्लांट का विरोध किया था। तब सीएम बादल ने 2008 तक इस मामले को सुलझाने के लिए हस्तक्षेप किया। जिससे गुप्ता के प्रभाव की गहराई और शिअद सरकार में उनकी पहुंच का राजनेताओं और आम लोगों को बाखूबी पता चलता था।

 

कैप्टन राज में भी सियासी-रुतबा रहा कायम :

जब कांग्रेस पंजाब में सत्ता में थी, तब गुप्ता कभी बाहरी व्यक्ति नहीं रहे। साल 2017 से 2021 तक, सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस सरकार के दौरान वह पंजाब प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन रहे। इस दौरान, कैप्टन ने सार्वजनिक रूप से उनकी प्रशंसा की।

 

आप सरकार में भी गहरी पकड़ :

पिछले विधानसभा चुनाव में पंजाब में आम आदमी पार्टी की नाटकीय जीत के बाद, गुप्ता पृष्ठभूमि में नहीं गए। सीएम भगवंत मान के नेतृत्व में नई सरकार ने उन्हें पंजाब राज्य आर्थिक नीति एवं योजना बोर्ड का उपाध्यक्ष बनाया गया। यह आप सरकार में भी उनकी गहरी पकड़ का अहम सबूत है। अब, राज्यसभा उपचुनाव के लिए आप के उम्मीदवार के रूप में चुने जाने के बाद, गुप्ता अपनी राजनीतिक साख को और मजबूत करने की तैयारी में हैं। वहीं, उनके चयन को आप द्वारा आंतरिक धारणाओं को संतुलित करने के लिए एक रणनीतिक कदम भी माना जा रहा है। दरअसल, गुप्ता की इमेज बेदाग और सबसे दोस्ताना रिश्तों वाली रही है। लिहाजा विपक्षी दलों ने भी कभी उनके खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की।

 

केंद्र और कई सूबों में गहरे सियासी-रिश्ते रहे :

गुप्ता का प्रभाव केवल राज्य की राजनीति तक ही सीमित नहीं है। उनके बारे में अक्सर कहा जाता है कि वह अलग मिजाज के राजनेता हैं। अमूमन सियासत में राजनेताओं की किसी ना किसी पार्टी से टकराव की नौबत आती है। कई दशकों के दौरान उनके साथ शायद कभी ऐसी नौबत नहीं आई।

सोनिया, मनमोहन, मोंटेक तक रही नजदीकी :

कांग्रेस के नेतृत्व में जब केंद्र में यूपीए ने सत्ता संभाली, उसी दौरान, पंजाब और केंद्र सरकार दोनों में, उच्च पदस्थ लोगों के साथ राजिंदर गुप्ता का बेहतर तालमेल रहा। यूपीएम चेयरपरसन सोनिया गांधी सहित राष्ट्रीय नेताओं तक उनकी सीधी पहुंच थी। वहीं, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अलावा योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के साथ उन्होंने अच्छे संबंध बनाए रखे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अक्सर कपड़ा संबंधी नीतिगत मामलों पर गुप्ता से सलाह लेते थे। इन संबंधों से राज्य स्तर के निर्णयों और केन्द्र-राज्य सहयोग पर निर्भर निर्णयों, विशेषकर बड़े औद्योगिक या अवसंरचनात्मक परियोजनाओं, दोनों को प्रभावित करने की उनकी क्षमता में वृद्धि हुई।

 

मध्य प्रदेश में सीएम शिवराज से बनी निकटता अब भी बरकरार :

गुप्ता ने भाजपा शासित राज्यों में भी अच्छे संबंध बनाए। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से उनकी नजदीकियां बनीं। भले ही चौहान केंद्र में मंत्री बनकर चले गए, लेकिन दोनों की नजदीकियां बरकरार हैं। जब चौहान बीते दिनों बाढ़ आपदा के दौरान पंजाब दौरे पर आए, तब भी राजिंदर गुप्ता से मुलाकात की थी।

मोदी भी कर चुके तारीफ :

हकीकत में गुप्ता एक ऐसा राजनीतिक व्यक्तित्व हैं, जिनको किसी एक विचारधारा से पूरी तरह बंधा नहीं जा सकता है। वह दक्षिणपंथी, मध्यमार्गी और क्षेत्रीय, सभी तरह के रिश्तों को निभाने में माहिर हैं। ऐसा लगता है कि सत्ता में चाहे कोई भी पार्टी हो, उनके उपयोगी बने रहने की मिसाल राजनेताओं के लिए एक मिसाल भी है।

 

छवि और प्रतिष्ठा कुशल और विश्वसनीय :

राजिंदर गुप्ता के बारे में जो बात सबसे अलग है, वह सिर्फ़ यह नहीं है कि वे विभिन्न दलों के करीब हैं, बल्कि यह भी है कि वे उन रिश्तों को कैसे निभाते हैं। उन्हें अक्सर इस रूप में वर्णित किया जाता है, अनुकूलनशील, प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए बस इतना ही बदलते हैं, लेकिन इतना भी नहीं कि उनकी पहचान खो जाए।

 

समाजसेवा में भी रहे आगे :

जानकार मानते हैं कि किसी भी राजनेता की छवि में समाजसेवा से और निखार आता है। राजिंदर गुप्ता भी ऐसे ही बिरले राजनेता हैं। मसलन, एक दौर में जब लुधियाना में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज ने भी आर्थिक संकट का सामना किया। ऐसे में तब गुप्ता ने बतौर समाजसेवी इस प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्था को संकट से उबरने में बड़ी मदद दी। उधर, पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन के चेयरमैन बनकर उन्होंने इस संस्था गहरे तक जमी भ्रष्टाचार की जड़ें उखाड़ीं।

राज्यसभा में आगामी प्रवेश : प्रतीकवाद और रणनीति

राज्यसभा उप-चुनाव के लिए आप द्वारा गुप्ता का चयन अत्यंत प्रतीकात्मक है। यह इस धारणा को जताता है कि पंजाब (आप में) पर दिल्ली से आए नेताओं का दबदबा है। गुप्ता पंजाबी हैं, स्थानीय हैं और ग्रामीण और औद्योगिक पंजाब दोनों से जुड़े हैं। कांग्रेस और अकाली दल में भी संपर्क रखने वाले एक ऐसे व्यक्ति का समर्थन करके, आप संकेत देती है कि वह पुरानी दरारों को पाट सकती है। यह रेखांकित करता है कि राजनीतिक रेखाएं कठोर नहीं हैं और शायद हमेशा कठोर भी नहीं होनी चाहिए। साल 2022 से सत्ता में काबिज और आंतरिक असंतोष व विपक्षी चुनौतियों का सामना कर रही आप के लिए, राज्यसभा में गुप्ता जैसे व्यक्ति का होना, उन्हें उच्च सदन में एक ऐसे व्यक्ति के साथ आवाज़ देता है, जो शासन की भाषा को समझता हो। साथ ही प्रशासनिक व राजनीतिक दोनों ही रूपों में मज़बूत हो।

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