जैनाचार्य श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म.सा. को “पद्मश्री” सम्मान
भारतवर्ष के 76वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत सरकार द्वारा 113 विभूतियों को भारत के सर्वोच्च सम्मानों में से एक – पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित करने की घोषणा की गई। उसमें एक विशेष नाम है भगवान महावीर स्वामीजी के 77वें पट्टधर एवं गुरुवर आत्म-वल्लभ परंपरा के वर्तमान गच्छाधिपति जैनाचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी महाराज का। विशेषतया बिहार क्षेत्र में निःस्वार्थ सामाजिक उत्थान एवं अध्यात्म विकास हेतु सरकार द्वारा उन्हें इस अवार्ड से सम्मानित किया गया है।
• कौन हैं जैनाचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी महाराज ?
शांतिदूत जैनाचार्य श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी महाराज का जन्म वर्ष 3 अगस्त 1958 को दिल्ली के एक पंजाबी जैन परिवार में हुआ था। बाल्य काल हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश में बिताने के पश्चात मात्र 9 वर्ष की आयु में सभी संसाधनों का त्याग करके परिवार के साथ जैन दीक्षा ग्रहण करके वे जैन समाज के मुनि बने एवं वर्ष 1993 में जैन परंपरा के सर्वोच्च पद “आचार्य” पर आसीन हुए। जैन साधु को अतिदुष्कर चर्या का पालन करने के साथ साथ समाजकल्याण के विविध असामान्य कार्य आपके द्वारा हो रहे हैं।
लगभग 70 वर्ष पूर्व देहावसान हुए पंजाब केसरी आ. वि. वल्लभ सूरिजी जी ने जीवन पर्यन्त समाज सेवा के अनेक कार्य किये। उनकी समस्त संस्थाओं का जीर्णोद्धार एवं विकास आज उन्हीं के परंपरा के गच्छाधिपति आ.वि. नित्यानंद सूरीश्वर जी के मार्गदर्शन में गतिमान हैं।
विगत 57 वर्षों से पैदल विचरण करते हुए जम्मू से कन्याकुमारी/ चिदंबरम एवं कच्छ से कलकत्ता / कटक तक की लगभग 2 लाख किलोमीटर की पैदल यात्रा की है एवं देश भर में जैनधर्म के मौलिक सिद्धांतों अनुसार मानवता के सन्देश को फैला रहे हैं।
जैन समाज में आपकी प्रसिद्धि “शांतिदूत” विशेषण से है क्योंकि आपके उपदेश व आचरण से आपने अनेक जगह कलहों को शांत किया एवं साम्प्रदायिक सौहार्द को स्थापित किया। आप हमेशा ही प्रसन्न वदन रहते हैं। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी ने सन् 2020 में राजस्थान के पाली जिले में जैतपुरा स्थित Statue of Peace का वर्चुअल उद्घाटन किया था, वह भी इन्हीं जैनाचार्य श्रीजी की प्रेरणा से निर्मित हुआ था। अनेक राजनेता व धर्मनेता से समय समय पर आपसे मुलाक़ात करके जनकल्याण के विविध कार्यों हेतु मंत्रणा करते हैं।
• क्या है जैनाचार्य श्रीजी का बिहार क्षेत्र में विशेष योगदान?
पंचायती राज मंत्रालय द्वारा वर्ष 2006 में जमुई (बिहार) को पिछड़ा क्षेत्र घोषित किया गया था। यह भगवान महावीर की जन्मभूमि है। आचार्यश्रीजी सन् 2002 में यहां पहली बार पधारे एवं इस क्षेत्र से गरीबी को देखकर उनका हृदय पसीज गया एवं कल्याणक भूमियों के उद्धार का उन्होंने संकल्प लिया। आचार्य श्रीजी द्वारा उस क्षेत्र में लछवाड जैसे गाँवो में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, कम्प्यूटर लैब, रोज़गार सहयोग आदि प्रकल्पों से पूरा क्षेत्र विकास की ओर उन्नत है।
आचार्य श्रीजी की प्रेरणा से भगवान महावीर की जन्मभूमि लछवाड के भगवान महावीर हॉस्पिटल के माध्यम से आजतक 36,000 लोगों ने निःशुल्क माइक्रो सर्जरी आई आपरेशन, जयपुरी फुट एवं निशुल्क दवाई द्वारा नेत्र ज्योति व अंग सहायता प्राप्त की है एवं अनेक गांवों में वह हॉस्पिटल फ्री कैम्प आयोजित करता है।
विद्यालय न जाने वाले 700 बालकों को वर्षभर निःशुल्क शिक्षा दिलाने की व्यवस्था आपने 2002 में शुरू कराई जो आज भी गतिमान है जिसको विस्तार देते हुए युवकों को स्वावलंबी बनने हेतु निःशुल्क कंप्यूटर लैब भी प्रारंभ की गई।
लछवाड में आपकी प्रेरणा से पुराने तीर्थ का जीर्णोद्धार पूर्ण हुआ। भारत भर से दर्शनार्थियों में वृद्धि हुई। भगवान महावीर से जुड़े होने के कारण इस क्षेत्र के विकास हेतु आप प्रतिबद्ध रहे। पक्की सड़कें, नदियों पर पुल, बिजली व्यवस्था, पुलिस थाने की स्थापना आदि कार्यों को आपने सरकार को सहयोग देकर शीघ्र सम्पन्न करवाया। 2023 में जिला जमुई के सिकंदरा विधान सभा क्षेत्र की पंचायत ने इस हॉस्पिटल द्वारा हो रहे सुकृत के धन्यवाद स्वरुप आचार्य श्रीजी को “नेत्र ज्योति प्रदाता” अलंकरण से विभूषित किया। आप श्रीजी के प्रवचनों से उस क्षेत्र में अनेक जैन व अजैन व्यक्तियों ने मानवता के मार्ग को प्राप्त कर अनैतिक कार्यों का त्याग कर सदाचार की ओर जीवन बढ़ाया है।
• क्या हैं जैनाचार्य श्रीजी के अन्य कार्यक्षेत्र?
यद्यपि यह पद्मश्री सम्मान विशेषतया बिहार क्षेत्र की सेवा हेतु सम्मानित करने के निमित्त है, किन्तु इसके अतिरिक्त भी आचार्य श्रीजी के भारत भर में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, तीर्थ विकास के अनेक उपक्रम गतिमान हैं। एक जैन संत के जीवन की मर्यादा का पालन करते हुए इतने कार्य करना असामान्य गिना जाता है।
पंजाबकेसरी आ.वि. वल्लभ सूरीश्वर जी म. एवं उनके शिष्यवृन्दों ने 30 से अधिक स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल का निर्माण करवाया था। श्री पार्श्वनाथ जैन विद्यालय (वरकाणा, राज.), श्री आत्मानंद जैन स्कूल (पंजाब लुधियाना, अम्बाला, जंडियाला गुरु), श्री महावीर जैन विद्यालय (मुंबई), जैन भारती मृगावती विद्यालय (दिल्ली) उसमें उल्लेखनीय नाम हैं। उनकी परंपरा का निर्वहन करते हुए आचार्य श्री नित्यानंद सूरिजी वर्तमान में उन संस्थाओं का मार्गदर्शन व तीव्र गति से विकास कार्य कर रहे हैं। 110 वर्ष प्राचीन श्री महावीर जैन विद्यालय, गुजरात की विभिन्न शाखाओ का जीर्णोद्धार एवं वृद्धि, अनेक सरकारी गैर सरकारी, विद्या भारती आदि में अर्थ सहयोग व विद्यालयों में कंप्यूटर लैब निर्माण, ऑडिटोरियम निर्माण आदि विकास अथवा नवीनीकरण जरूरतमंद विद्यार्थियों को निःशुल्क शिक्षा आदि उपक्रम पर बल दे रहे हैं। उसी श्रृंखला में नए विद्यालयों शाखाओं का निर्माण भी आचार्य श्रीजी करवा
रहे हैं। शारदा यूनिवर्सिटी में जैन स्टडी सेण्टर की स्थापना, आचार्य विजय वल्लभ स्कूल (पुणे), श्री आत्म-वल्लभ पब्लिक स्कूल (अबोहर), श्री आत्म-वल्लभ जैन कन्या महाविद्यालय (गंगानगर, राज.) आदि 20 से अधिक संस्थाएं उनके पुरुषार्थ से निर्मित हुई हैं।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में : गुजरात में ईडर, वड़ोदरा, मुंबई में विरार, राजस्थान में सादड़ी, बिहार में लच्छवाड़, तमिलनाडु में मदुरंतकम आदि क्षेत्रों में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटलों का नूतन निर्माण आचार्य श्रीजी की प्रेरणा से अनेक व्यक्तियों ने आर्थिक सहयोग देकर किया है। उनमें भी निरंतर विकास कार्य गतिमान हैं, यथा 20 वर्ष पूर्व स्थापित लछवाड हॉस्पिटल को वृद्धि करते हुए वर्ष 2023 में 108 बेड के नूतन विंग की स्थापना की गयी। वर्ष 2023 में उनकी निश्रा में शारदा यूनिवर्सिटी में 1200 बेड के हॉस्पिटल का उद्घाटन संपन्न हुआ। नागौर, पाली आदि कई जगह पर स्थानीय सरकारी अथवा गैर सरकारी अस्पतालों के सहयोग हेतु आर्थिक सहायता द्वारा अथवा ऑपरेशन रूम आदि की स्थापना, मशीन की भेंट आदि कार्य किये हैं।
जब जब भी देश पर सुनामी, बाढ़, भूकंप आदि आपदाएं हुई हैं, आचार्य श्रीजी ने जैनसमाज को उपदेश देकर अनथक सहायता की है। रोज़गार, आवास, गोशाला की भी अनेक योजनाएं उनके मार्गदर्शन में संचालित हैं। एक जैनाचार्य के रूप में 500 से अधिक मंदिरों-तीर्थों की प्रतिष्ठाएं व स्थापनाएं आचार्य श्रीजी द्वारा हुई हैं, 30 से अधिक पुस्तकों का लेखन-संपादन हुआ है।
इसके अतिरिक्त भी आचार्य श्रीजी के कार्यों की बहुत लंबी फेहरिस्त है। भक्तों में यह हर्ष की लहर है की भारत सरकार ने पद्मश्री द्वारा गुरुदेव को अलंकृत करने की घोषणा की है। ऐसे संतों व समाज सेवकों के सम्मान से समाज में निःस्वार्थ सेवा हेतु जागृति का संदेश जाता है।
• कहाँ पर विराजमान हैं विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म. और पद्म अवार्ड पर उन्होंने क्या कहा?
जैन संतो का कोई स्थायी निवास स्थल नहीं होता। वे एक जगह से दूसरी जगह पैदल ही विचरण करते हैं एवं एक जगह पर 4 महीने से अधिक स्थिरता नहीं करते। वर्षाकाल में आचार्य श्रीजी ने चातुर्मास जैन धर्म की पुण्यस्थली पालीताणा तीर्थ (जिला भावनगर, गुजरात) में किया। वहां से पैदल विचरण कर वे 14 जनवरी को बड़ौदा पधारे एवं अभी सूरत में विराजमान हैं। आगामी कार्यक्रम अनुसार वे मुंबई व पूना पधारेंगे एवं जुलाई 2025 तक राजस्थान के नागौर जिले में पहुंचने का संकल्प रखते हैं।
जैनाचार्य श्रीजी को पद्म अवार्ड से सम्मानित होने के समाचार से भारत भर के सेवा संगठन, राजनेताओं-धर्मनेताओं व गुरु भक्तों की ओर से गुरुदेव श्रीजी को शुभकामनाएं दी जा रही हैं।
जैसे ही पद्मश्री सम्मान का समाचार आचार्य भगवंत तक पहुंचा, उन्होंने समाज के सभी वर्गों का आभार अभिव्यक्त किया। उन्होंने कहा कि – “जैन संत तो जन जन के संत हैं। यह गौरव का विषय है कि सरकार उनके कार्य को विश्व पटल पर रखने की भावना रखती है। ये भारत सरकार एवं गुरुभक्तों का सत्कार्य है जो उन्होंने इस सम्मान को प्रदान किया, हालांकि मेरा जीवन तो गुरु वल्लभ की भावना के अनुसार मात्र और मात्र जन जन की सेवा का है, किसी अवॉर्ड या पदवी के लिए कार्य करना मेरे गुरु भगवंतों की हितशिक्षा नहीं है। वस्तुतः यह सम्मान मेरा नहीं, हर उस कार्यकर्ता का है जो निःस्वार्थ भाव से मेरे एक इशारे से तन, मन और धन अर्पित करके समाजोद्धार के कार्य में जुड़ जाते हैं। मेरे गुरु भगवंतों ने मुझे जो मुनि, आचार्य एवं गच्छाधिपति पद का दायित्व दिया है, मैं बस उसी का यापन करता हूँ। दीन दुखियों की सेवा के लिए सब एक एक कदम बढ़ाएं तो सभी मिलकर लाखों कदम बढ़ सकते हैं। हम सभी समय के एक एक पल का यथाशक्ति सदुपयोग करें, यही प्रभु महावीर की वाणी है।”