ऐसे में कहीं लग तो नहीं जाएगी ‘आजाद’ कौंसलर की लॉटरी, चर्चाओं का बाजार गर्म
लुधियाना 29 दिसंबर । नगर निगम चुनाव में आए नतीजों के बाद पुंजाब राजनीति का धुरा कहलाने वाला महानगर लुधियाना में ‘सियासी-घमासान’ मचा है। लुधियाना नगर निगम के 95 वार्डों में चुनाव हुए थे। सूबे की सत्ता में होने के बावजूद आम आदमी पार्टी को वोटरों ने महज 41 सीटों पर जिताया। इसी तरह प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को भी 30 सीटें सौंपीं। जबकि केंद्र में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी महज 19 सीटें ही हासिल कर सकी। जबकि शिरोमणि अकाली दल-बादल को सिर्फ 2 ही सीटें मिल सकीं वहीं तीन आजाद उम्मीदवार चुनाव जीत गए थे।
ऐसे हालात में सूबे की सत्ता में होने के बावजदू नतीजे आने के ९ दिन बाद भी आप निगम की सत्ता से दूर है। उसे बहुमत के लिए 48 सीटों की जरुरत है। फिलहाल तमाम जोड़तोड़ के बावजूद आप के हक में फिलहाल 43 कौंसलर खड़े नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर चुनावी नतीजे आने के बावजूद मेयर बनाने को लेकर कोई फैसला नहीं हो सका है।
हालांकि सियासी जानकारों का मानना है कि लुधियाना निगम के दायरे में लगते सभी छह विधानसभा क्षेत्रों आम आदमी पार्टी के विधायक हैं। अंदरुनी सियासत के नजरिए से देखें तो आप के पाले में बहुमत के लिए काउंसलरों का आना जाना लगा हुआ है
हलांकि अकाली कौंसलर ने तो घर-वापसी कर ली। एक कांग्रेसी कौंसलर के भी फिर पलटी मारने के आसार हैं।
आप की हालत फजीहत वाली !
ताजा हालात देखें तो अगर आप अपने 41 कौंसलर के साथ अपने 6 शहरी विधायकों से भी वोटिंग कराएगी तो भी सत्ता हासिल करने में पर्याप्त बहुमत नहीं है । ऐसे में आजाद उम्मीदवार की ‘लॉटरी’ लगने की उम्मीद है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस और बीजेपी हाईकमान ने आप के खिलाफ आपसी गठजोड़ का फार्मूला खारिज कर दिया है। जबकि जिला स्तर पर दोनों पार्टी के रणनीतिकार आजाद कौंसलरों के सिर पर हाथ रख चुके हैं। उनके जरिए यह रणनीति बनी है कि आजाद कौंसलर को मेयर बनाया जाए। उस सूरत में बीजेपी और कांग्रेस का उसको मौन समर्थन रहेगा।
मेयर पद के सशक्त दावेदार थे पराशर :
लंबे वक्त कांग्रेस में रहे राकेश पराशर आम आदमी पार्टी में शामिल होने के बाद छठी बार कौंसलर बने हैं। लिहाजा सत्ताधारी पार्टी की तरफ से वही मेयर पद के सबसे सशक्त दावेदार बनकर उभरे। इसे सियासी-खेल ही कहेंगे कि बदले हालात में वह मेयर पद हासिल कर पाने में कामयाब होते नजर नहीं आ रहे। दरअसल पुरानी कहावत के मुताबिक सियासत में सिर गिने जाते हैं और किस्मत भी बड़ा खेल खेलती है। मसलन, उनके बाद सियासत में सक्रिय होकर कौंसलर से विधायक और फिर कैबिनेट मंत्री बने भारत भूषण आशु, जिला प्रधान संजय तलवार इसकी मिसाल हैं। इसी तरह खुद पराशर के भाई अशोक पराशर पप्पी सीधे आप के टिकट पर चुनाव लड़कर पिछली बार विधायक बने। फिर आप ने ही उनको लोकसभा चुनाव भी लड़ाया, भले ही वह हार गए। जबकि राकेश पराशर के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस ने गिदड़बाहा के विधायक अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग को लुधियाना से लोकसभा चुनाव लड़ाया और वह जीतकर सांसद हैं। जबकि पराशर की तरह ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गए पूर्व सांसद रवनीत सिंह बिट्टू पिछला लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद भाजपा से राज्यसभा मैम्बर और केंद्रीय राज्यमंत्री बन चुके है ।
————