गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव 21 अक्टूबर 2025- दीपावली का चौथा माणिक मोती- प्रकृति ,पशुधन और मानवता के संतुलन का उत्सव
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट,हमें याद दिलाता हैँ कि विकास तभी सार्थक है जब वह धरती,अन्न, जल व पशु जीवन के प्रति कृतज्ञता से भरा हो।
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव,भारतीय संस्कृति की कृषि प्रधानता,पशुधन के प्रति संवेदना और सामूहिकता की भावना का प्रतीक है-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारत की सांस्कृतिक परंपराएँ केवल अनुष्ठानों या धार्मिक विधियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनमें जीवन, प्रकृति और मानवता का गहरा दर्शन निहित है। दीपावली का पंचदिवसीय महापर्व भारतीय जीवनके विविध आयामों को उजागर करताहै,धनतेरस से आरंभ होकर नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज तक यह श्रृंखला हर दिन एक नए आध्यात्मिक संदेश को जन-जीवन में प्रसारित करती है।21अक्टूबर 2025,मंगलवार, को जब कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव मनाया जाएगा, तब यह दीपावली के चौथे रत्न के रूप में आस्था और प्रकृति संरक्षण का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करेगा।इस दिन को कई प्रदेशों में“पड़वा” या “प्रतिपदा” भी कहा जाता है और इसे अन्नकूट पर्व के रूप में भी मनाया जाता है,जिसका अर्थ है,“अन्न का विशाल पर्वत” अर्थात् समृद्धि कृतज्ञता और धरती माता के प्रति श्रद्धा का उत्सवसरकारें अब“इको-टूरिज्म” और “स्पिरिचुअल टूरिज्म” के रूप में ऐसे त्योहारों को वैश्विक ब्रांडिंग दे रही हैं।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यहमानता हूं कि 2025 का गोवर्धन पर्व इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वर्ष जलवायु परिवर्तन, खाद्य असमानता और ऊर्जा संकट जैसे वैश्विक मुद्दों के मध्य आ रहा है।ऐसे में यह पर्व मानवता को यह संदेश देगा कि “प्रकृति से युद्ध नहीं, संवाद आवश्यक है।”भारत सरकार और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय हिंदू संगठनों द्वारा इस वर्ष ‘गोवर्धन पर्वत संरक्षण अभियान’,‘अन्नकूट फूड शेयरिंग मिशन’ और ‘गौसंवर्धन जागरूकता सप्ताह’ जैसी पहलें चलाए जाने की ज़रूरत है,जो इस पर्व को वैश्विक चेतना से जोड़ेंगी।संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स में“ज़ीरो हंगर”, “क्लाइमेट एक्शन” और “लाइफ ऑन लैंड” प्रमुख लक्ष्य हैं। गोवर्धन पूजा इन तीनों का प्रतीक है,अन्नकूट से भोजन के प्रति सम्मान और समान वितरण,गोवर्धन आराधना से प्रकृति संरक्षण,और पशुपालन पूजन से पारिस्थितिक संतुलन की भावना प्रकट होती है।इस प्रकार यह भारतीय पर्व वैश्विक सतत विकास का सांस्कृतिक प्रतीक बन चुकाहै।चूँकि दीपावली का चौथा माणिक- गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव 21 अक्टूबर 2025- प्रकृति,पशुधन और मानवता के संतुलन का उत्सव हैँ इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, गोवर्धन पूजा और अन्नकूट,हमें याद दिलाता हैँ कि विकास तभी सार्थक है जब वह धरती,अन्न, जल व पशु जीवन के प्रति कृतज्ञता से भरा हो।ऐसे में यह पर्व मानवता को यह संदेश देगा कि “प्रकृति से युद्ध नहीं, संवाद आवश्यक है।”
साथियों बात अगर हम गोवर्धन पर्व और अन्नकूट की पौराणिक उत्पत्ति जब भगवान ने दिया प्रकृति संरक्षण का संदेश को समझने की करेंतो,भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी इस दिन गाय, बैल और कृषि उपकरणों की पूजा की जाती है। लोग अपने घरों के सामने गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाते हैं, जिसे फूलों, धान, गन्ने, तुलसी और रंगोली से सजाया जाता है।गोवर्धन पूजा की कथा का मूल आधार श्रीकृष्ण और इंद्र के मध्य का संवाद है, जिसने भारतीय समाज को प्रकृति के प्रति कर्तव्यबोध सिखाया। द्वापर युग में जब ब्रज के लोग इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करते थे ताकि वर्षा हो, तब बालक कृष्ण ने उनसे कहा, “हमारी समृद्धि का मूल इंद्र नहीं, बल्कि गोवर्धन पर्वत हैजो हमारे गायों के लिए चारा,जल और जीवन देता है।” इस विचार ने प्रकृति-पूजा को ईश्वरीय दर्जा दिया।जब ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन की आराधना की, तब इंद्र क्रोधित होकर प्रचंड वर्षा ले आए। तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर सात दिन तक गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की। इस घटना ने न केवल मानवता को एकता और सहयोग का पाठ पढ़ाया बल्कि यह भी सिखाया कि प्रकृति ही असली देवता है, और उसका संरक्षण ही सच्ची पूजा है।आध्यात्मिक संदेश- अहंकार का दमन और विनम्रता का उत्सव-गोवर्धन पूजा केवल प्रकृति का नहीं, बल्कि अहंकार पर विजय का पर्व भी है। जब इंद्र का अहंकार टूटा और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा माँगी, तो यह शिक्षा दी गई कि शक्ति का प्रदर्शन नहीं, बल्कि सेवा और करुणा ही ईश्वरीय गुण हैं।आज जब राष्ट्र, व्यक्ति और समाज सत्ता के घमंड में खो रहे हैं, तब यह पर्व हमें याद दिलाता है“ अहंकार अंततः विनाश की जड़ है, जबकि विनम्रता सृजन की।”अन्नकूट का अर्थ और वैश्विक प्रतीकवाद-कृतज्ञता का पर्व अन्नकूट शब्द दो भागों से मिलकर बना है,‘अन्न’ अर्थात् भोजन और ‘कूट’ अर्थात् ढेर या पर्वत। इस दिन मंदिरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का भव्य अन्नकूट तैयार किया जाता है, जिसमें सैकड़ों तरह के पकवान, मिठाइयाँ और प्रसाद भगवान को अर्पित किए जाते हैं।यह पर्व अन्न के प्रति सम्मान और धरती की उदारता का उत्सव है। आधुनिक संदर्भ में देखा जाए तो यह त्योहार फूड सिक्योरिटी, सस्टेनेबल एग्रीकल्चर और वेस्टेज-फ्री कंजम्प्शन जैसे वैश्विक मुद्दों पर भी प्रकाश डालता है।जब दुनिया खाद्य असमानता, भुखमरी और जलवायु संकट से जूझ रही है, तब अन्नकूट का यह संदेश, 2025 का गोवर्धन पर्व इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वर्ष जलवायु परिवर्तन, खाद्य असमानता और ऊर्जा संकट जैसे वैश्विक मुद्दों के मध्य आ रहा है।ऐसे में यह पर्व मानवता को यह संदेश देगा कि “प्रकृति से युद्ध नहीं, संवाद आवश्यक है।”अन्न का आदर करो, प्रकृति का आभार मानो”वैश्विक स्तर पर अत्यंत प्रासंगिक है।
साथियों बात अगर हम गोवर्धन पूजा का वैज्ञानिक और पर्यावरणीय महत्व को समझने की करें तो,यदि धार्मिक आस्था से ऊपर उठकर इस पर्व को वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए, तो गोवर्धन पूजा इकोलॉजिकल बैलेंस और एग्रो-इकोनॉमिक रिलेशन की याद दिलाती है।यह त्योहार मनुष्य को यह सिखाता है कि उसकी समृद्धि का मूल आधार प्रकृति और पशु हैं। खेतों में काम आने वाले बैलों, गायों, और कृषि भूमि की सफाई और सजावट का भाव कृषि उत्पादकता को भी बढ़ाता है।आज जब ग्लोबल वार्मिंग, डीफॉरेस्टेशन और एनिमल क्रुएल्टी जैसे संकट बढ़ रहे हैं, तब गोवर्धन पूजा हमें याद दिलाती है कि “धरती हमारी माता है, और उसका संरक्षण हमारी संतान धर्म है।”अब गोवर्धन पूजा केवल भारत तक सीमित नहीं रही। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, मॉरीशस, नेपाल, थाईलैंड मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में बसे भारतीय समुदाय इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं।लंदन के भक्तिवेदांता मनोर टेम्पल में हर वर्ष हजारों भक्त अन्नकूट महोत्सव में भाग लेते हैं, जहाँ लगभग 1000 से अधिक व्यंजन भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किए जाते हैं। न्यूयॉर्क, टोरंटो, और सिडनी के मंदिरों में भी इसी परंपरा के तहत “गोवर्धन अन्नाकुट फेस्टिवल” आयोजित किया जाता है।यह उत्सव न केवल भारतीय संस्कृति की प्रतिष्ठा बढ़ाता है,बल्कि विश्व को यह संदेश देता है कि आध्यात्मिकता और पर्यावरण संरक्षण एक ही सूत्र में बंधे हैं।
साथियों बात अगर हम गोवर्धन पूजा और आर्थिकसमृद्धि का संबंध को समझने की करें तो,धनतेरस,दीपावली और गोवर्धन पूजा,ये तीनों पर्व आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। गोवर्धन पूजा के दिन व्यापारी अपने नए खातों की शुरुआत करते हैं,कृषक अपने पशुओं और खेतों को पुनःपूजते हैं और गृहस्थ महिलाएँ अपने रसोईघर की समृद्धि के लिए अन्न का आदर करती हैं।यह परंपरा बताती है कि भारतीय संस्कृति में आर्थिक प्रगति और आध्यात्मिक श्रद्धा को विरोधी नहीं, बल्कि पूरक माना गया है।वर्तमान में जब दुनिया उपभोक्तावाद में डूबी है, तब यह त्योहार सिखाता है कि सच्ची समृद्धि “देने” और “साझा करने” में है, न कि केवल उपभोग उपभोग नहीं करना होगा
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि गोवर्धन पूजा 2025-मानवता, प्रकृति और भक्ति का संतुलित उत्सव 21 अक्टूबर 2025 का गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट महोत्सव दीपावली श्रृंखला का वह चौथा माणिक है,जो आध्यात्मिकता, पारिस्थितिकी और मानवता को एक सूत्र में बाँधता है।यह दिन हमें याद दिलाता है कि सच्चा धर्म केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि खेतों, पशुओं, पर्वतों और भोजन में भी बसता है।जब हम गोवर्धन की पूजा करते हैं, तो वास्तव में हम प्रकृति, अन्न और जीवन के प्रति अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं।दुनिया के लिए यह पर्व भारत की उस सनातन दृष्टि का प्रतीक है जो कहती है->“यत्र सर्वे भूतानि आत्मन्येवानुपश्यति, स पश्यति।”अर्थात् जो हर प्राणी में अपने ही आत्मा को देखता है, वही सच्चा दृष्टा है।गोवर्धन पूजा इसी दृष्टि का उत्सव है,भक्ति में पर्यावरण,और पर्यावरण में भक्ति का दिव्य समागम।यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति ही गोवर्धन है, अन्न ही ईश्वर है, और मानवता ही पूजा है।
*-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतर्राष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि सीए(एटीसी) संगीत माध्यमा एडवोकेट किशन सनमुखदास भावानानी गोंदिया महाराष्ट्र *