आज 66 वर्ष के हो गए। बचपन से अब तक बहुत कुछ देखा है। अब वो सब अच्छे-बूरे सपने की तरह खट्टामीठा अनुभव सा है। आज का विषय जनरेशन गैप बहुत ही कुछ कहना पड़ता है और यह शब्द अनेक बार सुनने को मिलता है। ये वो दुरी है नये-पुराने के बीच जिसकी खाई पटती नहीं बढ़ती जाती है। नये के साथ जिज्ञासा है उत्साह है , ताकत है और पुरानों के साथ परिपक्वता व अनुभव है। अनुभूति भी साथ हैं। नई पीढ़ी पुरानों की ताकत बन जाऐ और पुराने नई पीढ़ी के अनुभवी मार्गदर्शक बन जाऐ तो चमत्कार संभव हैं। इसके लिए हर कार्य में सहयोग, सामंजस्य बिठाना चाहिए जो कि मुश्किल है मगर असंभव नहीं।
संयुक्त परिवार खत्मप्रायः है एकल परिवार अधिकांशतः है। स्वार्थ ने स्वतंत्रता को जन्म दिया अब हमारा
कुछ नहीं, सब कुछ तेरामेरा हो गया। बड़ों का निर्णय मान्य नहीं होता। सब नयी पीढ़ी की चलती हैं। मांबाप ने जिंदगी भर अच्छेबुरे समय में जिंदगी भर सुखदुख में पाल कर बड़ा किया मगर शादी के बाद बेटा-बहु अलग हो गये। आप कितने भी कष्ट उठाओं मगर जब अपनों से ही ताने मिलते हैं कि तुमने किया ही क्या है हमारे लिए, तब दिल छलनी हो जाता हैं। विचार आता हैं कि सब छोड़कर गंगा किनारे बैठ जाऐं। कभी सुनने को मिलता है कि उनको देखो उन्होंने कितना धन जोड़ लिया और तुम वहां के वहीं हो। कभी सुनने को मिलता है कि आपने हमें पैदा ही क्यों किया। इसका उत्तर नहीं दे सकते हो।
जिनके बच्चे अच्छे निकल गये मगर सोच में फिर भी फर्क
हैं और आगे भी रहेगी क्योंकि आपकी सोच पुरानी हो गई है नये जमाने की सोच नई हो गई जो मेल नहीं खाती अर्थात सोच बदल गई है अब बस एकदूसरे के साथ तालमेल बिठाना है सामंजस्य बनाना हैं और संतुष्ट रहना सीखना होगा। मांबाप ने उस दौर में असुविधाओं के बीच कठिन मेहनत जितनी की उतनी वर्तमान की औलादें इतनी सारी सुविधाओं के होते हुए आज भी नहीं कर सकती। पीढ़ियों के बीच दूरी हैं उम्र की, समझ की, विचारों की, संबंधों को मानने की, स्वार्थ की और वर्तमान औलादों की औलादें जो देखेगी वो सीखेगी और अपने मांबाप के साथ व्यवहार रूपत्रमें करेगी। वह भी बोलेगी मम्मी आपको कुछ नहीं आता, पापा आपको कुछ नहीं आता, आप समझते नहीं हो मैं बताता हूं।
जनरेशन गैप आगे भी रहेगी। कभी खत्म नहीं होगी इसलिए जो जैसी जिंदगी जीना चाहता है उसे जीने दो,
अपन संतुष्ट रहो। दूसरों की आवश्यकताओं को समझो।
जैसा बने, उसकी तारीफ करो और खाओं। नाराजगी का प्रदर्शन मत करों। घर के किसी सदस्य की आलोचना अन्य के सामने मत करो। यही आज के लिए मेरे मन की बात हैं।
– मदन वर्मा ” माणिक ”
कवि एवं लेखक, इंदौर, मध्यप्रदेश