मनोज कुमार अग्रवाल
मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘नमामि गंगे’ पर सरकारी खर्च में 15 गुना वृद्धि हुई है।अरबों खरबों खर्च करने के बाद भी गंगा नदी का जल पीने योग्य नहीं है। आखिर गंगा नदी की सफाई के लिए आ रही अरबों रुपए की धनराशि कहां गायब हो रही है? ऐसा कौन सा तंत्र है जो नमामि गंगे के नाम पर अपनी जेब भर रहा हैं?
नमामि गंगे मिशन के तहत 2015 से कई परियोजनाएं शुरू की गई हैं, लेकिन सबसे महंगी और सबसे महत्वपूर्ण परियोजना सीवेज-प्रबंधन के बुनियादी ढांचे का विकास है। कुल मिलाकर, विभिन्न नमामि गंगे परियोजनाओं के तहत लगभग 37,550 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं, लेकिन जून 2024 तक केवल 18,033 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए हैं, रिकॉर्ड बताते हैं कि अकेले सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की ही लागत ₹15,039 करोड़ है।
12 जुलाई को परियोजनाओं की समीक्षा के लिए आयोजित बैठक के रिकॉर्ड में कहा गया है, “एनएमसीजी के महानिदेशक (राजीव मित्तल) ने पाया कि अब तक व्यय की गति बेहद धीमी है।” उन्होंने उत्तर प्रदेश के अधिकारियों से पूछा, जहां अधिकांश परियोजनाएं हैं, व्यय कम क्यों है। जवाब में, प्रतिनिधि ने कहा कि जौनपुर, कासगंज, वाराणसी, बरेली, सलोरी और आगरा में छह परियोजनाओं पर ₹15.16 करोड़ खर्च किए गए हैं। उन्होंने कहा कि अप्रैल या तिमाही की शुरुआत में जो धनराशि आई है, वह जून के मध्य में प्राप्त हुई है। अधिकारी ने कहा, “₹25 करोड़ का भुगतान प्रक्रियाधीन है।”
इस योजना के तहत गंगा की सफाई में खर्च होने वाला फ़ंड चालू वित्त वर्ष के अंत तक सभी उच्च स्तर पर पहुंच सकता है। स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने कहा “वर्तमान देनदारियों और स्वीकृत परियोजनाओं के आधार पर हमें नमामि गंगे के तहत वास्तविक व्यय 3,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। यह गंगा को साफ करने के लिए एक साल में खर्च की जाने वाली उच्चतम राशि होगी।यह राशि गंगा और उसकी सहायक नदियों की योजनाओं और परियोजनाओं पर खर्च की जाएगी, जिसमें नए एसटीपी के कमीशन के अलावा मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का पुनर्वास और उन्नयन शामिल है। नमामि गंगे योजना 2014-15 में मोदी सरकार द्वारा लॉंच की गई थी। पहले वर्ष में वास्तविक व्यय 170.99 करोड़ रुपये से बढ़कर 2018-19 में 2,626.54 करोड़ रुपये हो गया। इस योजना के तहत अब तक 298 प्रोजेक्ट स्वीकृत हुए हैं जिसमें 40 एसटीपी से संबंधित हैं। केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 से 2020 के बीच में गंगा की सफाई पर खर्च करने के लिए 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
अब जरा गौर करें राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की उस टिप्पणी को हमें एक गंभीर चेतावनी के रूप में लेना होगा, जिसमें कहा गया है कि प्रयागराज में गंगा का पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि वह आचमन करने लायक भी नहीं रह गया है। एनजीटी का यह खुलासा इसलिये भी चिंता बढ़ाने वाला है क्योंकि कुछ ही माह बाद यानी जनवरी 2025 की पौष पूर्णिमा से प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत होने वाली है। कुंभ मेले की तैयारियां अंतिम चरण में हैं और अखाड़ों की सक्रियता बढ़ गई है। महाकुंभ को लेकर देश ही नहीं विदेश में भी खूब चर्चा होती है। यदि गंगाजल की गुणवत्ता को लेकर ऐसे ही सवाल उठते रहे तो देश-दुनिया में अच्छा संदेश नहीं जाएगा। सवाल इस बात को लेकर भी उठेंगे कि विभिन्न सरकारों द्वारा शुरू की गई अनेक महत्वाकांक्षी व भारी-भरकम योजनाओं के बावजूद गंगा को साफ करने में हम सफल क्यों नहीं हो पाए हैं। आखिर कौन है गंगा की यह हालत करने के गुनहगार? विडंबना देखिये कि तमाम सख्ती के बावजूद सैकड़ों खुले नाले गंगा में गंदा पानी गिरा रहे हैं। तमाम उद्योगों का अपशिष्ट पानी अनेक जगह गंगा में गिराया जा रहा है। वर्ष 2014 से गंगा की सफाई का महत्वाकांक्षी अभियान ‘नमामि गंगे’ शुरू किया गया था। बताया जाता है कि अब तक करीब चालीस हजार करोड़ रुपयों की लागत से गंगा की सफाई की करीब साढ़े चार सौ से अधिक परियोजनाएं आरंभ भी की गई हैं। इस परियोजना के अंतर्गत गंगा के किनारे स्थित शहरों में सीवर व्यवस्था को दुरुस्त करने, उद्योगों द्वारा बहाये जा रहे अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिये शोधन संयंत्र लगाने, गंगा तटों पर वृक्षारोपण, जैव विविधता को बचाने, गंगा घाटों की सफाई का काम किया जाना था। इसके अंतर्गत कुछ काम तो हुआ लेकिन अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आए हैं। जो हमें बताता है कि जब तक समाज में जागरूकता नहीं आएगी और नागरिक अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं करेंगे, गंगा मैली ही रह जाएगी। सिर्फ सरकारी प्रयास काफी नहीं हैं। दरअसल, लगातार बढ़ती जनसंख्या का दबाव और गंगा तट पर स्थित शहरों में योजनाबद्ध ढंग से जल निकासी व सीवरेज व्यवस्था को अंजाम न दिये जाने से समस्या विकट हुई है। गंगा को साफ करने के लिये जरूरी है कि स्वच्छता अभियान एक निरंतर प्रक्रिया हो। एक बार की सफाई निष्प्रभावी हो जाएगी यदि हम प्रदूषण के कारकों को जड़ से समाप्त नहीं करते। इसके लिये गंगा के तट वाले राज्यों में पर्याप्त जलशोधन संयंत्र युद्ध स्तर पर लगाए जाने चाहिए। साथ ही गंगा सफाई अभियान की नियमित निगरानी होनी चाहिए। इसमें आधुनिक तकनीक का भी सहारा लिया जाना चाहिए। लोगों को बताया जाना चाहिए कि गंगा सिर्फ नदी नहीं है यह खाद्य श्रृंखला को संबल देने वाली तथा हमारी आध्यात्मिक यात्रा से भी जुड़ी है। गंगा में अघुलनशील कचरा व अन्य अपशिष्ट डालने से रोकने के लिये जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। यदि जागरूकता व प्रेरित करने से बात नहीं बनती तो इसके लिये जुर्माने का प्रावधान भी होना चाहिए। साथ ही गंगा में जहरीला कचरा बहाने वाले उद्योगों पर भी आर्थिक दंड लगाना चाहिए। एक बात तो तय है कि सरकार के साथ साथ जब तक समाज की जिम्मेदारी तय नहीं की जाती, गंगा का साफ होना असंभव जैसा हो जाएगा। गंगा सिर्फ बहती नदी नहीं है हमारे पुरखों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है। गंगा मुक्तिकामी भी है। जीवनदायिनी भी है। ऐसे में केंद्र सरकार की नमामि गंगा परियोजना में राज्यों की भागीदारी और जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए।
क्या गंगा की स्वच्छता का मिशन बिना जनजागृति के पूरा हो सकता है? कहीं न कहीं गंगा को मां का दर्जा देने के लिए दिलों में आस्था और श्रद्धा का ज्वार पैदा करना होगा बस उसी दिन गंगा स्वच्छ हो जाएगी। (विभूति फीचर्स)