गेम चेंजर : टाटा ने पेश की महज 3249 रुपये में 108 किलो मीटर सफर तय करने वाली इलैक्ट्रिक साइकिल

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साइकिल इंडस्ट्री में टाटा समूह की पहल से सरकारी टेंडरों के भरोसे बैठे बिग-प्लेयरों को ‘टाटा’ वाली चुनौती !

लुधियाना 22 फरवरी। देशभर के शहर-कस्बों की सड़कों पर बढ़ते ध्वनि और वायु प्रदूषण के बीच एक ‘शांत- क्रांति’ हो रही है। हॉर्न की आवाज़ और धुएं के बीच पर्यावरण के अनुकूल एक शानदार विकल्प उभर रहा है। जिसे बिजनेस-टाइकून टाटा कंपनी ने साकार किया है। इस उद्योग-समूह ने साइकिल इंडस्ट्री में क्रांतिकारी पहल की है। कंपनी ने इलैक्ट्रिक साइकिल तैयार की है, जो महज 3,249 रुपये की मामूली कीमत पर आम लोगों की पहुंच में है।

यहां काबिलेजिक्र है कि यह इलैक्ट्रिक साइकिल एक बार चार्ज करने पर 108 किलोमीटर चलती है। जबकि साइकिल इंडस्ट्री के हब लुधियाना से लेकर देश-दुनिया में कई कंपनी इलैक्ट्रिक साइकिल बना रही हैं। जिनकी कीमत 25 से 40 हजार रुपये तक होने के बावजूद बैटरी क्षमता भी टाटा से कम है। इस प्रोजेक्ट के प्रमुख इंजीनियर राजेश शर्मा के मुताबिक हम जानते थे कि हम कुछ क्रांतिकारी बनाना चाहते थे। हालांकि किफ़ायतीपन, प्रदर्शन और स्थिरता के बीच सही संतुलन बनाना हमारी प्राथमिकता थी। कंपनी ने जब साइकिल की कीमत घोषित की तो इस इंडस्ट्री से जुड़े नामी उद्यमी भी हैरान रह गए। टाटा की मार्केटिंग डायरेक्टर प्रिया पटेल के मुताबिक हमने इसे किफायती बनाने को कोई कमी नहीं छोड़ी। टीम के बैटरी विशेषज्ञ अमित कुमार के मुताबिक हमारा लक्ष्य एक ऐसी साइकिल बनाना था, जिसे आप चार्ज कर पूरे हफ़्ते बिना किसी चिंता इस्तेमाल कर सकें। इसकी 36-वी, 10-एएच लिथियम-आयन बैटरी आधुनिक तकनीक का एक चमत्कार है।

कोट्स—–

–युनाइटेड साइकिल पार्ट्स एंड मैन्युफैकर्रर्स एसोसिएशन यानि यूसीपीएम के प्रेसिडेंट हरसिमरजीत सिंह लक्की ने कहा कि टाटा ने अगर ऐसा किया है तो बहुत सराहनीय है। हालांकि अभी उनकी नई साइकिल की डिटेल्स जानने के बाद ही तथ्यजनक प्रतिक्रिया दी जा सकेगी। साथ ही तमाम इलैक्ट्रिक-उत्पाद बनाने वालों, सरकार समेत जिम्मेदार महकमों से अपील की कि जनहित में ई-वेस्ट के निस्तारण का समाधान भी ढूंढना चाहिए। ई-वेस्ट सेहत के लिए कैंसर जैसी बीमारियों के तौर जानलेवा तक साबित होता है।

–यूसीपीएमए के पूर्व प्रेसिडेंट डीएस चावला ने हैरानी जताते कहा कि अगर इतनी किफायती साइकिल बनाई है तो स्वागत योग्य है। यह अपीलिंग-ऑफर जरुर है, लेकिन इसके कई देखने योग्य पहलू हैं। जबकि बाकी नामी कंपनियां सरकारी टैंडर के तहत इससे महंगी नॉर्मल साइकिल ही बना पा रही हैं तो तथ्य जानना जरुरी हो जाता है। मसलन, टाटा की इलैक्ट्रिक साइकिल की बैटरी की लाइफ कितनी है। इसकी टैस्टिंग किन संस्थाओं से सर्टिफाई है। क्या एक्सपर्ट के सामने इसके प्री-लांच ट्रायल हुए। देश की सड़कों के अनुकूल ट्रायल-रिस्पांस कैसा है, ऐसे तमाम पहलू देखने होंगे।

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