सामाजिक संगठनों,शैक्षणिक संस्थानों,व्यापार व्यवसाय संगठनों व आध्यात्मिक स्थलों सहित हरस्तर के संगठनों में राजनीतिक पार्टी विचारधारा की दखलअंदाजी बढ़ी-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
गोंदिया- वैश्विक स्तरपर पूरी दुनियां में भारत जहां एक ओर सबसे बड़ा लोकतंत्र सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश व सबसे पुराना बड़ा आध्यात्मिक मान्यताओं संस्कारों रीति रिवाजो सहित अनेक पौराणिक आधुनिक विशेषताओं वाला देश है, तो वहीं कुछ हद तक सबसे बड़ी संस्थाओं धार्मिक स्थलों संगठनों व विचारधाराओं वाला देश होने की बात भी मीडिया के हर प्लेटफार्म पर कही जाती रही है जिसका कुछ हद तक उपयोग राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए भी यानें वोट बैंक सुनिश्चित करने के लिए भी करती है, जो मैंने अपनी गोंदिया राइस सिटी में पहले चरण 19 अप्रैल 2024 को हुए लोकसभा चुनाव में देखा व कई संगठनो के अंदर यह महसूस भी किया, जिसके आधार पर मैं सटीकता से कर सकता हूं कि यही स्थिति दूसरे चरण में भी हुई होगी और आगे भी बाकी बचे पांच चरणों में पूरे देश में होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। परंतु ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह सब पर्दे के पीछे होताहै। हालांकि हर संगठन, संस्थान, समाज प्रमुख आध्यात्मिक स्थल प्रमुख अपने नियंत्रण व नेतृत्व से उस संगठन का संचालन करते हैं, परंतु उनके पीछे दखलअंदाजी किन्हीं और राजनीतिक पार्टी से संबंधित नेतृत्व की होती है जो मैंने अपने लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र गोंदिया भंडारा में देखा कि कुछ पंचायतें संगठनो के मुखिया साहब शैक्षणिक संस्थाओं के कुछ लोग व्यापारिक व्यावसायिक संगठनों से संबंधित कुछ लोग अपने-अपने स्तर पर एक प्रमुख पार्टी का प्रचार कर रहे थेहालांकि मुझे मालूम था यह सभी संगठन संस्थाएं उस पार्टी की विचारधारा से जुड़ी है। यहां एक ऐसी कुछ कदमों की सेवा समिति भी है जो एक पार्टी की विचारधारा से जुड़ी है जहां सिर्फ संस्थापक कीचलती है और उसके अनेक सदस्य अन्य संस्थाओं, संगठनों एजुकेशन सोसाइटी क्षेत्रीय पंचायतों में भी मेंबर उनको बनाए रखा है जो उन संस्थाओं के निर्णयोंट में दखलअंदाजी करते हैं जो रेखांकित करने वाली बात है। चूंकि आज दिनांक 2 मई 2024 को अमेरिका के 30 से अधिक विश्वविद्यालयों में छात्रों के उग्र आंदोलन की खबरें पूरे दिन मीडिया में छाई रही इसलिए आज मैंने अपने आर्टिकल के लिए यह विषय चुना कि परदे के पीछे विचारधारा आगेबढ़ाकर पैंठ जमाकर जबरदस्त वोट बैंक की राजनीति का प्रचलन बढ़ रहा है।इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी केसहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,राजनीतिक पार्टीबाज़ी जाति समाज से लेकर व्यापार व्यवसाय संगठनों तक व स्कूल कॉलेज से लेकर आध्यात्मिक स्थलों तक पैंठ का प्रचलन बढ़ गया है।
साथियों बात अगर हम जाति समाज से लेकर व्यापारिक संगठनों व स्कूल कॉलेजों से लेकर आध्यात्मिक स्थलों तक राजनीतिक पार्टी की पैंठ की करें तो, आजउपरोक्त क्षेत्रों में सुधार लाने की बजाय हर राजनैतिक दल सभी संगठनो संस्थानों में अपनी विचाराधारा आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक दखलंदाजी में लग जाते है, चाहे वह कुलपति व दूसरे महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति का मामला हो या शिक्षण सामग्री सामाजिक रीति रिवाज स्थितियों में बदलाव।देश के उज्ज्वल भविष्य की पौध तैयार करने वाले शिक्षण संस्थान आज राजनीतिक प्रोपेगेंडे का अड्डा बनते जा रहे हैं और छात्र इस राजनीति का शिकार हो रहे हैं। हमारे शिक्षण संस्थानों,समाज में कौन से विचारों पर चर्चा होनी चाहिए और किन पर नहीं, यह सवाल आज एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। शिक्षण संस्थानों का राष्ट्र निर्माण में एक अमूल्य योगदान होता है। यहाँ देश के युवा अलग अलग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर कई नज़रिए से सोचना सीखते हैं। ऐसे में अगर हमारी राजनीतिक दलें इन संस्थानों में घुसपैठ कर अपनी , वोटबैंक की राजनीति और संकीर्ण विचारधारा के लिए इन छात्रों का इस्तेमाल करने लगेगें तो इनका सही दिशा में विकास होना असंभव है। शिक्षण संस्थानों का राजनीतिकरण होने लगेगा। छात्र जो शिक्षण संस्थानों में पढने की बजाय अलग अलग राजनीतिक दलों से जुड़कर एक दुसरे के ऊपर अपना अधिकार जमाने के लिए प्रयास करते हैं जिसके फलस्वरूप इन दलों के बीच वर्चस्व की लड़ाई होने लगेगी। इसका लाभ देश के बाहर की विघटनकारी शक्तियां भी उठाने लगेगी। आजकल जिस प्रकार से देश की शिक्षण संस्थाओं संगठनों संस्थाओं का राजनीतिक हित के लिए उपयोग किया जाने लगा है, उससे यही लग रहा है कि छात्रों के दिल और दिमाग में देश के विरोध में भ्रम भरने का कार्य सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। आज विश्वविद्यालय में छात्रों के कई वर्ग हैं जो केवल अपनी दलगत निष्ठा को साबित करने के लिए राजनेताओं के अनुचित कृत्यों को सही साबित करने लगते हैं और इन घटकों में आपस में हिंसात्मक झड़पें भी होने लगी है। इन शिक्षण संस्थानों की आँगन जंग का मैदान हो गए हैं जहाँ पुलिस ज्यादा नजर आने लगी है। सोशल मीडिया के जरिये खुद को अभिव्यक्त करने वाली यह युवा पीढ़ी शिक्षा और रोजगार जैसे स्थायी मुद्दों को लेकर नहीं, बल्कि देश की नींव को बर्बाद करने वाले मुद्दों को ज्यादा तरजीह देती नजर आ रही है। शायद इसकी एक बड़ी वजह यह है कि आज देश के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में छात्र नेता खुद अराजकता के प्रतीक बन गए हैं। धरना देना, प्रदर्शन करना, नारे बाजी करना ,क्या शिक्षण संस्थान इसके लिए है ?
साथियों बात अगर हम भारत में छात्र राजनीति की करें तो भारत में छात्र राजनीति विश्वविद्यालयीय शिक्षण व्यवस्था का अहम घटक रही है।चाहे वो जेएनयू हो, डीयू हो, एएमयू हो या फिर लखनऊ, इलाहाबाद या बनारस हिंदू
विश्वविद्यालय शिक्षा के इन महत्वपूर्ण केंद्रों में आज़ादी के बाद से छात्र राजनीति ने न केवल छात्रों की समस्याओं को केंद्र में रखकर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है बल्कि छात्र राजनीति से निकले नेताओं ने देश की राजनीति के वृहत्तर फलक पर भी अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई है। अभी एनएसयूआई एबीवीपी भी है, इस बीच एक विचार और ज़ोर पकड़ने लगा कि छात्र राजनीति की ज़रूरत ही क्या है। विश्वविद्यालय तो पढ़ने के लिए होते हैं वहां छात्र राजनीति कर बेवजह अपना वक्त ख़राब करते हैं।जेएनयू के पूर्व कुलपति बीबी भटटाचार्य कहते हैं कि कैंपस में राजनीति होनी ही नहीं चाहिए।राजनीति और विश्वविद्यालय दुनिया में कहीं एक साथ नहीं चलते, ऑक्सफ़ोर्ड में भी यूनियन नहीं है,डिबेटिंग सोसायटी है केंब्रिज में यूनियन होती ही नहीं है आज शिक्षक की पहचान भी राजनीतिक दलों से होने लगी है। मेरे हिसाब से शिक्षा का भला इसी में है कि कैंपस में राजनीति न हो, छात्र वहां पढ़ने के लिए आते हैं, उन्हें पढ़ाई ही करनी चाहिए।शायद इन्हीं सब वजहों से आज भारत के तमाम विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति का अस्तित्व तो है लेकिन उसमें वैसी धार नज़र नहीं आती जैसी पहले देखने को मिलती थी।भारत सरकार के उच्च शिक्षा सचिव इस बारे में कहते हैं, लिंग्दोह कमेटी के सुझावों के दायरे में छात्रसंघ चुनाव एक सही क़दम है और इसका समर्थन किया जाना चाहिए, हो सकता है कि किसी-किसी विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति की दिशा सकारात्मक न रही हो और वहां के कुलपति ने विश्वविद्यालय के वृहत्तर हित के लिए उसपर रोक लगा दी, लेकिन मेरा मानना है कि यदि सही स्पिरिट में छात्र राजनीति की जा रही है तो ये बहुत अच्छी चीज़ हैबहरहाल, आज भारत के तमाम विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति की वस्तुस्थिति यही है कि उनका अस्तित्व तो है लेकिन उसमें वैसी धार नज़र नहीं आती जैसी पहले देखने को मिलती थी। हालांकि बीएचयू के संस्थापक मदन मोहन मालवीय ने छात्र और राजनीति नामक लेख में लिखा था कि जब तक राष्ट्र पर कोई बड़ा संकट न हो तब तक छात्रों को राजनीति से दूरी रखनी चाहिए और अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित करना चाहिए ताकि वो एक बुद्धिजीवी नागरिक बन सकें और देश की उन्नति में ज़्यादा बेहतर योगदान दे सकें।
साथियों बात अगर हम दिनांक 2 मई 2024 को अमेरिका में कई विश्वविद्यालयों के कैंपस में विशाल विरोध प्रदर्शन की करें तो,अमेरिका के कई यूनिवर्सिटी कैंपस में गाजा के समर्थन में शुरू विरोध-प्रदर्शन बड़ा रूप लेता जा रहा है। फिलिस्तीन में इजरायली हमले के खिलाफ आंदोलन का गढ़ अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी बनी है. यहां एक बार फिर सैकड़ों छात्रों को हिरासत में लिए जाने से कॉलेज कैंपस और उसके बाहर तनाव और बढ़ गया है। न्यूयॉर्क में गिरफ्तारी और कैलिफोर्निया में झड़पों की घटनाओं के बीच छात्र घुटने टेकने और आंदोलन खत्म करने से इनकार कर रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिकी प्रशासन के बलप्रयोग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस के हेलीकॉप्टर कैंपस के ऊपर मंडराते देखे गएफ्लैश-बैंग्स की तेज आवाजें भी सुनी गईं। इसकी मदद से पुलिस भीड़ को तितर-बितर करने का प्रयास करती है। अधिकारियों के पास आने पर प्रदर्शनकारियों ने सवाल किया कि पुलिस ने जरूरत के समय कार्रवाई क्यों नहीं की? प्रदर्शनकारियों ने पीछे न हटने का इरादा जाहिर करते हुए दो टूक लहजे में कहा कि प्रशासन शांति चाहता है, लेकिन हम इंसाफ की मांग कर रहे हैं। टीवी चैनलों पर फेस शील्ड और सुरक्षा जैकेट से लैस पुलिसकर्मियों को डंडों, हेलमेट और गैस मास्क से भी लैस देखा गया।अमेरिका में पुलिस की सख्ती के बावजूद फिलिस्तीन के समर्थन में छात्र आंदोलन जारी है। अमेरिकी मीडिया हाउस के मुताबिक अब तक 30 यूनिवर्सिटीज से 1300 से ज्यादा छात्र गिरफ्तार हो चुके हैं। बुधवार को यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, लॉस एंजिल्स ने आदेश दिया है कि प्रदर्शनकारी छात्र या तो कैंपस छोड़ दें या गिरफ्तारी के लिए तैयार रहें।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पर्दे के पीछे से विचारधारा आगे बढ़ाकर,पैंठ जमाकर जबरदस्त वोट बैंक की राजनीति का प्रचलन बढ़ा।राजनीतिकपार्टीबाजी-जाति समाज से लेकर व्यापार व्यवसाय संगठनों तक व स्कूल कॉलेज से लेकर आध्यात्मिक स्थलों तक।सामाजिक संगठनोंशैक्षणिक संस्थानों,व्यापार व्यवसायसंगठनों व आध्यात्मिक स्थलों सहित हर स्तर के संगठनों में राजनीतिक पार्टी विचारधारा की दखल अंदाजी बढ़ी।
*-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*