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चौथी बार शिअद के वजूद पर मंडराया है खतरा तो फूटी अयाली के रोष की चिंगारी, बड़ा संकेत

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टकसाली अकाली भी यही तो चाहते थे, जो बोले अयाली-झूंदा कमेटी की सिफारिश लागू करो, वर्ना मैं ‘साइलेंट’

नदीम अंसारी

लुधियाना 7 जून। पंजाब में लोकसभा चुनाव के चौंकाने वाले नतीजों से सभी प्रमुख दलों में अंदरखाते खलबली मची है। वहीं, सिर्फ एक सीट जीतने वाले शिरोमणि अकाली दल-बादल में असंतोष की चिंगारी फूट चुकी है। सूबे की सियासत में अरसे से धुरी रहे लुधियाना से अकालियों की अंतर्कलह का गंभीर मामला सामने आया है। इस लोकसभा सीट में लगते विधानसभा हल्का दाखा के अकाली विधायक मनप्रीत सिंह अय्याली ने शुक्रवार सरेआम अपना रोष जाहिर किया। वह सोशल मीडिया के मंच से अपने जज्बातों का इजहार करते नजर आए। लोस चुनाव में पार्टी की करारी हार से आहत अयाली ने बड़ा ऐलान किया कि वह झूंदा कमेटी की रिपोर्ट लागू होने तक पार्टी-एक्टिविटीज से दूर रहेंगे। शायद टकसाली अकाली भी यही चाहते थे, लेकिन फिर से बोलने की जुर्रत अयाली ने ही की।

सुखबीर पर चलाए तीर : पार्टी के टकसाली नेताओं में शुमार हो चुके अयाली ने इशारों में ही सही, शिअद मुखिया सुखबीर बादल पर तंज कसे। उन्होंने जो कुछ कहा, उसका लब्बो-लुआब यह है कि शिरोमणि अकाली दल पंथक और पंजाब की सिरमौर जत्थेबंदी है। जिसका गौरवशाली इतिहास रहा, लेकिन पिछले कुछ समय से बड़े नेताओं द्वारा लिए फैसलों से  पार्टी में बड़े स्तर पर सैद्धांतिक गिरावट देखने को मिली है। पार्टी पहले तो किसानी-मूवमेंट का रुख, फिर अब सूबे में पंथक-लहर पहचानने में नाकाम रही। अय्याली ने लगे हाथों अपरोक्ष रुप से पार्टी सुप्रीमो यानि छोटे-बादल को नसीहत भी दी। उन्होंने कहा कि किसानों और पंथक-पंजाबियों का भरोसा हासिल करने के लिए आज पबड़े फैसले लेने की जरूरत है। ताकि पार्टी जमीनी स्तर पर मजबूत हो सके।

कौन हैं झूंदा और क्या है उनकी रिपोर्ट : एडवोकेट इकबाल सिंह झूंदा शिरोमणि अकाली दल-बादल के टकसाली नेता हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी शिअद को ऐसी ही राजनीतिक-स्थिति का सामना करना पड़ा था, जैसे हालात अब लोस चुनाव में सामने आए। तब पार्टी ने चुनावी-हार के कारणों की जांच के लिए एडवोकेट झूंदा की अगुवाई में एक कमेटी बनाई थी। जिसमें उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कई तरह की सिफारिशें की थीं। इसमें सबसे खास, नीचे से लेकर ऊपर तक पूरा पार्टी का संगठनात्मक ढांचा बदलने की सिफारिश थी। हालांकि पार्टी सुप्रीमो सुखबीर बादल ने इसी बड़ी नसीहत पर अमल नहीं किया। हद ये कि झूंदा कमेटी की रिपोर्ट को पार्टी ने सार्वजनिक नहीं किया। सूत्रों के मुताबिक इस रिपोर्ट में यहां तक लिखा था कि पार्टी प्रधान को बदलने की जरुरत हो तो बदला जाए।

बड़ा सवाल, झूंदा को टिकट क्यों दिया ? अब लोस चुनाव में करारी हार के बाद एक बड़ा सवाल भी उठ रहा है, शायद  अकाली नेतृत्व के पास उसका माकूल जवाब नहीं होगा। शिअद मुखिया ने उन एडवोकेट झूंदा को ही संगरुर लोस सीट से टिकट थमा दिया, जिनकी अगुवाई में झूंदा कमेटी की रिपोर्ट बनी थी। झूंदा पांचवें नंबर पर रहते हुए जमानत तक नहीं बचा सके। जाहिर है, ऐसे में झूंदा कमेटी की रिपोर्ट लागू करने के पैरोकार अयाली जैसे अकाली नेता यह भी जरुर जानना चाह रहे हैं कि झूंदा को उम्मीदवार क्यों बनाया। क्या इस एवज में कि खुद झूंदा ही अपनी कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक न करने पर सवाल खड़ा कर दें। फिर शिअद मुखिया ने अगर उनको उम्मीदवार बनाया भी तो क्या वह जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं थे कि संगरुर में चुनावी नतीजे क्या होंगे ? जहां तक सवाल है खुद झूंदा के सियासी-करियर का तो वह अमरगढ़ से एक बार विधायक रहे, दूसरी बार हारे। फिलवक्त उनको टकसाली अकाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा के विरोधी धड़े की अगुवाई करने वाला माना जाता है। पार्टी से बागी हुए ढींडसा के विरोध के एवज में भी झूंदा को लोस चुनाव में टिकट बतौर इनाम मिला, यह भी पार्टी सूत्र मानते हैं।

शिअद के वजूद पर चौथी बार खतरा : गौरतलब है कि जैसा इस लोस चुनाव में शिअद का बुरा हश्र हुआ, ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ। पार्टी के लिए यह चौथा चुनाव था, जिसमें वह हाशिये पर नजर आई। सूबे की कुल 13 में से महज एक सीट ही पार्टी जीत पाई। जबकि11 सीटों पर शिअद चौथे स्थान पर और एक सीट पर पांचवें पायदान पर लुढ़क गया। गनीमत तो यह रही कि अपने गढ़ बठिंडा में बादल-परिवार की साख बच गई। बाकी तो इसे छोड़कर एक भी सीट ऐसी नहीं है, जहां पार्टी लड़ाई में दिखी हो। किसी भी सीट पर पार्टी दूसरे या तीसरे नंबर पर नहीं रही।

मनप्रीत का बयान वजनदार क्यों ? दाखा विधायक मनप्रीत सिंह अयाली पंजाब विधानसभा में शिरोमणि अकाली दल के नेता हैं। साल 1975 को जन्मे अयाली के पिता गुरचरणजीत सिंह किसान से जुड़े सियासतदान रहे। जो 15 साल तक अपने गांव के सरपंच रहे। अयाली ने कॉलेज में ग्रेजुएशन की पढ़ाई तो नहीं की, लेकिन सियासी-पढ़ाई उसी उम्र में शुरु कर दी थी। साल 1998 में वह गांव की कृषि समिति के अध्यक्ष बने। जिसके सरपंच रहे, फिर साल 2007 में लुधियाना जिला परिषद के चैयरमैन की कुर्सी संभाली। साल 2012 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ विधायक बने। साल 2014 में अयाली ने लुधियाना लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन तीसरे स्थान पर रहे। साल 2013 में उन्हें प्रधान मंत्री की उपस्थिति में देश में सर्वश्रेष्ठ जिला परिषद अध्यक्ष का पुरस्कार भी मिला। साल 2017 के विस चुनाव में अयाली आप के एचएस फुल्का से हारे थे। फुल्का के इस्तीफे के बाद उप-चुनाव में अयाली ने कांग्रेस के संदीप संधू को हरा फिर से सीट कब्जाई। ​​साल 2022 में आप की लहर में भी वह तीसरी बार दाखा से जीते। इस लोकसभा चुनाव में प्रस्ताव मिलने के बावजूद अयाली ने टिकट नहीं लिया। सियासी-जानकारों की नजर में वह जमीनी हकीकत से बखूबी वाकिफ थे। दरअसल लुधियाना लोस सीट पर शिअद उम्मीदवार रणजीत सिंह ढिल्लों चौथे नंबर पर ही आ सके।

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