उषा जैन ‘शीरीं’
नन्हीं चिंकी को, पापा खिलवाड़ करते जब भी हवा में उछालते तो वह खुशी से किलकारियां मारती। मम्मी को डर लगता कि कहीं चिंकी गिर न जाए, लेकिन चिंकी बिल्कुल बेखौफ अगली उड़ान के लिए तैयार नजर आती। उसे अपने प्यारे पापा पर पूरा भरोसा है जो कि वह उसे गिरने ही नहीं देंगे, उनके पास वह पूरी तरह सुरक्षित है।
छोटी-सी बिल्लो की अगर मम्मी गुस्से में पिटाई कर देती तो वह रोते हुए पापा… पापा की पुकार मचाने लगती, जबकि पापा उस समय ऑफिस में होते, लेकिन बिल्लो को तो भरोसा रहता है कि पापा उसे हर मुसीबत में बचा ही लेंगे।
माही के पापा उससे छिपकर दुकान जाते हैं। वर्ना वह उनसे लिपटकर साथ जाने की जिद करने लगती है। वह यही चाहती है कि पापा हर समय उसके पास रहें।
छोटी-सी अर्शी को जब मम्मी चिढ़ाते हुए कहतीं ‘पापा गंदे’ वह दहाड़े मारकर रोने लगती है।
दरअसल, बचपन से ही लड़कियों के लिए उनके पापा आदर्श होते हैं। उनमें उन्हें कोई कमी नहीं दिखती। वह उनके खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुन सकती हैं।
मनोवैज्ञानिकों की मानें तो लड़कियों में फादर फिक्सेशन एक कुदरती बात है। यही प्रवृत्ति आगे चलकर उनका पुरुषों के प्रति नजरिया तय करती है। उनकी परवरिश में पिता की भूमिका अहम होती है। एक गैरजिम्मेदार पिता जो अपने बच्चों के प्रति अपने कर्तव्यों की अवहेलना करते हैं, उन्हें प्यार और समय नहीं देते हैं, अपनी तनख्वाह शराब, जुए, विवाहेत्तर संबंधों, कॉल गर्ल्स आदि पर फूंक देते हैं, वे उनका बहुत नुकसान करते हैं, क्योंकि घर में बदहाली के साथ बच्चों कोमल मन पर बहुत बुरा असर पड़ता है, रिश्तों पर से उनका विश्वास उठ जाता है। लड़कियों को सारी पुरुष जाति से नफरत होने लगती है।
कभी-कभी पिता घर में बहुत सख्त अनुशासन रखते हैं। बच्ची को हर तरह से परफेक्ट देखने की धुन में वे उसके मन के भीतर झांक पाने में असमर्थ रहते हैं। उनकी हर समय की टोका-टाकी और सख्ती बेटी का मनोबल कम कर देती है। उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है। ऐसे में बड़ी होकर वह कई बार प्रतिक्रिया स्वरूप विद्रोहपूर्ण व्यवहार करने लगती है यानी कि जैसा कहा जाए, उससे ठीक विपरीत। ऐसे में पूरे चांसेज होते हैं कि वह अपना अहित कर बैठे।
पिता कई बार बाहर वालों के लिए खराब हो सकता है। धंधे में बेईमान हो सकता है, लेकिन जहां अपनी बेटी का सवाल आता है, उसके लिए उसमें सॉफ्ट कॉर्नर ही होता है। उसकी रक्षा के लिए वह अपनी जान की बाजी भी लगा सकता है।
पिता-पुत्री में कभी-कभी गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं, जो संवादहीनता की स्थिति में दूर नहीं हो पातीं, उसका इलाज है आपसी समझ। अपनी बात समझा पाना और पिता का दृष्टिकोण समझना। उनके प्रति आदर भाव कम न होने देना। अपनी गलती महसूस होने पर बगैर देर किए पिता से माफी मांग लेने से बाप-बेटी के रिश्ते मधुर बने रहेंगे।
कई बार लड़के को लेकर पिता के निराश होने से वे घर में दूसरी, तीसरी लड़की आ जाने पर अपना फ्रस्ट्रेशन उस पर निकालते हैं। बचपन की डांट-फटकार, लानत उनकी आत्मा पर ऐसी चोट करती है, जिनके निशान जीवन भर रह जाते हैं। बचपन में ही उनका सारा उत्साह बुझा दिया जाता है। उनकी खुशियां छीन ली जाती हैं।
बाद में विवाहोपरांत एक समझदार प्यार करने वाला पति उनके जीवन में खुशियों के रंग भरकर उनका खोया आत्मविश्वास लौटा सकता है। पिछले कटु अनुभवों को लेकर वे इस प्यार और अपनत्व का मोल अच्छी तरह समझ सकती हैं। किशोरावस्था लड़की के जीवन में ट्रांजिशनल पीरियड होता है। इस समय उसे एक बड़े बदलाव से गुजरना होता है। उसके लिये इसे समझ पाना इतना आसान नहीं होता। पिता के लिये भी यह एक मुश्किल समय होता है। संयुक्त परिवार में यह स्थिति इतनी कठिन नहीं होती थी। अब भावनात्मक परिवर्तन के इस दौर में लड़की के मन में पिता की जगह ब्वॉयफ्रेंड्स जगह बनाने लगते हैं, लेकिन यही वह वक्त भी होता है जब लड़की की साइकी में ‘फादर फिक्सेशन’ मजबूती से फिक्स पाया जाता है। पिता को अपना आदर्श मानने वालीं लड़कियां उन्हीं को पैमाना मानकर ब्वॉयफ्रेंड्स को देखती हैं।
पति इस पैमाने पर खरे उतर सकते हैं, कभी निराश होना पड़ सकता है। बहरहाल, अनुभवों की रोशनी तो जीवन की राह प्रशस्त करने को होगी ही।
(विभूति फीचर्स)