दरअसल थ्रेट-कॉल करने वाले विदेश में बैठकर करते हैं यह काम, उनको पकड़ना नहीं आसान
चंडीगढ़, 22 जुलाई। बीते दिनों सिक्खों के सबसे बड़े आस्था केंद्र श्री दरबार साहिब में बम लगाने की धमकी मिली थी। फिर दिल्ली और बेंगलुरु के तमाम स्कूलों में बम से उड़ाने की झूठी धमकियां आईं। अब बड़ा सवाल यह गकि आखिर इन थ्रेट-कॉल का पता लगाना क्यों मुश्किल होता है।
माहिरों के मुताबिक अगर ये धमकी विदेश से दी गई हों और कानून प्रवर्तन एजेंसियां अपराधी का पता भी लगा लेती हैं तो ऐसे अपराधी का पीछा करना एक लंबी चुनौती बन जाता है। हालांकि, पंजाब पुलिस ने अमृतसर में दरबार साहिब के पास बम विस्फोट करने की झूठी कॉल करने वाले व्यक्ति को पकड़ने में तेज़ी दिखाई। फिर भी, यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर कानून प्रवर्तन एजेंसियां नज़र रखने की पूरी कोशिश कर रही हैं। दरअसल बर्नर फ़ोन या प्रीपेड सिम इस काम में इस्तेमाल होते हैं। जिनको पहले बिना पहचान के खरीदा जाता था और अस्थायी रूप से इस्तेमाल किया जाता था, फिर फेंक दिया जाता था। हालांकि अब ऐसा नहीं है।
एन्क्रिप्टेड या गुमनाम नेटवर्क के ज़रिए ऑनलाइन की गई बम की धमकियां भेजने वाले की पहचान आसानी से नहीं होती है। तकनीक कॉल करने वालों को दिखाई देने वाले नंबर को नकली बनाने की अनुमति देती है, जिससे ऐसा लगता है कि कॉल किसी और से आई है। यदि कोई धमकी किसी लाइब्रेरी, कैफ़े या अन्य साझा नेटवर्क से भेजी जाती है तो विशिष्ट उपयोगकर्ता की पहचान करना बहुत कठिन होता है।
अपराधी धमकी भेजने के लिए किसी और के डिवाइस या खाते का उपयोग कर सकते हैं, जिससे जांचकर्ताओं को गुमराह किया जा सकता है। यदि खतरा देश के बाहर से उत्पन्न होता है, तो कानून प्रवर्तन को प्रेषक का पता लगाने और उस पर मुकदमा चलाने में कानूनी और तार्किक बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। किसी खतरे का पता लगाने के लिए स्थानीय, राज्य और संघीय अधिकारियों के बीच समन्वय की आवश्यकता हो सकती है, जिससे प्रक्रिया धीमी हो सकती है। कई खतरे होक्स साबित होते हैं, जिससे कानून प्रवर्तन संसाधनों पर दबाव पड़ता है और प्राथमिकता तय करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
कुछ हमलावर बड़ी संख्या में धमकियां भेजने के लिए बॉट्स का इस्तेमाल करते हैं, जिससे ट्रैकिंग और भी जटिल हो जाती है। कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अक्सर दूरसंचार प्रदाताओं या आईटी कंपनियों से जानकारी मांगनी पड़ती है। जिसमें कानूनी प्रक्रियाओं और डेटा प्रतिधारण नीतियों के आधार पर समय लग सकता है। यदि सुरक्षित मैसेजिंग ऐप्स, जैसे सिग्नल, व्हाट्सएप के माध्यम से धमकियां भेजी जाती हैं तो प्लेटफ़ॉर्म के पास भी सामग्री या प्रेषक की जानकारी तक पहुंच नहीं हो सकती है। यह केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में एक समस्या है जिसका सामना विकासशील देश भी कर रहे हैं।
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