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हौंसले की मिसाल : तरनतारन के सुखजीत पेरिस ओलंपिक के लिए भारतीय हॉकी टीम में सलैक्ट

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नस दबने से लकवा होने के बाद व्हील-चेयर पर आए सुखजीत के हौंसले ने करा दी उनकी खेल में वापसी

तरनतारन 28 जून। इस इलाके में लगते मियांविंड के गांव जवंदपुर के नामी हॉकी प्लेयर सुखजीत सिंह सुक्खा की इस खेल में शानदार वापसी हुई है। जुलाई महीने में पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों में जाने वाली भारतीय हॉकी टीम में उनका सलैक्शन हो गया। यह खबर गांव में पहुंचते ही उनके परिजनों और तमाम गांववालों ने जश्न मनाया।

गौरतलब है कि 26 साल के सुखजीत सिंह फिलहाल बेंगलुरु में चल रहे भारतीय हॉकी टीम के कैंप में मौजूद हैं। उनके पिता अजीत सिंह पंजाब पुलिस में हैं और खुद हॉकी खिलाड़ी रहे हैं। पंजाब पुलिस में भर्ती होने के बाद उनका परिवार जालंधर शिफ्ट हो गया था। अजीत सिंह हॉकी खेलने का अपना शौक बेटे सुखजीत के साथ पूरा करते थे। लिहाजा उसको बचपन से ही बढ़िया ट्रेनिंग मिली। साल 2006 में सुखजीत को मोहाली की सरकारी हॉकी एकेडमी में भर्ती कराया गया। सुखजीत का सपना ओलंपिक तक पहुंचना ही था।

करियर खत्म होने की नौबत आई : महज 8 साल की उम्र से हॉकी टीम में पहुंचने का सपना देखने वाले सुखजीत के लिए 2018 से बुरा दौर शुरु हो गया था। तब सुखजीत व्हीलचेयर पर आ गए थे। परिजन भी उसका करियर के खत्म होते देख गमजदा थे। सभी को यही लगता था कि सुखजीत का करियर अब खत्म है। दरअसल हुआ यूं कि अजीत पहली बार भारतीय हॉकी टीम के लिए 2018 में चुना गया। तीन चार दिन बाद उभरा यह नौजवान हाकी प्लेयर व्हीलचेयर पर आ गया। दरअसल प्री-लीग के दौरान भारतीय टीम बेल्जियम में थी। नए माहौल के बीच सुखजीत बीमार हो गया, लेकिन उसने प्रैक्टिस को जारी रखा। नतीजतन उसकी पीठ में दर्द बैठ गया। वहां उसने एक आस्ट्रेलियन फिजियोथैरेपिस्ट से इलाज कराया। उसने सुखजीत की एक नस दबाई तो समस्या बेहद गंभीर हो गई। उसके जिस्म का दाहिना हिस्सा ही लकवाग्रस्त हो गया।

पिता की मदद, हौंसले से लौटा मैदान में : सुखजीत के मुताबिक वह व्हील चेयर पर भारत लौटा था। पिता अजीत सिंह ने उठाकर कार में बैठाया। वापस आते ही मैसेज मिला  कि अब वह भारतीय हॉकी कैंप का हिस्सा नहीं रहा। सुखजीत ने तो खेलने की उम्मीद छोड़ दी, लेकिन पिता अजीत सिंह हार मानने को राजी नहीं थे। वह बेटे की मालिश करते, डॉक्टर के पास ले जाते। छह महीने की कड़ी मेहनत रंग लाई और सुखजीत अपने पैरों पर खड़ा हो गया।

लक्ष्य पाने की चुनौती : मैदान में लौटे सुखजीत के सामने लक्ष्य पाने की सबसे बड़ी चुनौती थी। दोबारा भारतीय टीम में पहुंचना था। शुरुआती सालों में पिता से मिली सीख काम आई। साल 2019 के अंत तक वह घरेलू हॉकी में वापस आ गया। इसी बीच कोविड आ गया, लेकिन सुखजीत ने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपने मसल्स की ताकत वापस लाने को कोविड के दौरान खूब पसीना बहाया। नतीजतन भारतीय टीम में वापसी का सफर पूरा हो गया।

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