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संपादकीय

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डॉ.कंग का जाना और राजनेताओं की संवेदनहीनता

हरित-क्रांति की जनक पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पंजाब की आर्थिक-राजधानी लुधियाना में है। पंजाब और देश की खुशहाली यानि आर्थिक-व्यवस्था की रीढ़ कहलाने वाले कृषि क्षेत्र को समृद्ध और आधुनिक तकनीस से लैस करने में कृषि-वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ऐसे ही विद्धानों की अगली कतार में पीएयू के वाइस चांसलर रहे डॉ.एमएस कंग खड़े नजर आते थे। गत दिवस उनका अमेरिका में निधन हो गया। यह खबर कृषि, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और तमाम किसानों को गहरा आघात पहुंचाने वाली रही। यह भी गौरतलब है कि वह संयोग से पंजाब के श्री फतेहगढ़ साहिब इलाके में ही पैदा हुए थे। लुधियाना में पीएयू से पढ़कर बाकी उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए। पंजाब और पंजाबियत के भी पैरोकार होने के नाते अमेरिकी प्रांत में नौकरी करने के बाद पंजाब लौटे। पीएयू के वाइस चांसलर बनने का मौका मिला तो पूरी लगन से कृषि विश्वविद्यालय के इस सर्वोच्च पद की गरिमा बढ़ाते हुए अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा किया। रिटायरमेंट के बाद वह भले अमेरिकी प्रांत में ही जा बसे। इसके बावजूद पंजाब से गहरा जुड़ाव रहा। कृषि-जगत में विकसित तकनीक के जरिए पंजाब व देश की पहचान मजबूत करने के लिए किसी न किसी मंच के जरिए सेवाएं देते रहे। उनको राज्य सरकार ने भी कई बार सर्वोच्च सम्मानों से नवाजा। देश के अलावा विदेश भी तमाम अवॉर्ड हासिल किए। कई महत्वपूर्ण खोजपरक पुस्तकें लिखकर भी कृषि के विकास पथ को और आसान करने में अहम भूमिका निभाते रहे। इस सबके बावजूद वह जब इस दुनिया से अलविदा हुए तो एक आहत करने वाला एक और पहलू सामने आया। लोकसभा चुनाव के शोर में डूबे तमाम राजनेताओं के लिए यह आघात पहुंचाने वाली दुखद जानकारी शायद इतनी महत्वपूर्ण नहीं रही, जितना कि राजनीतिक दौड़ में अव्वल रही की फिक्र रही। तभी तो पंजाब के बाकी हिस्सों की बात दीगर रही, लुधियाना में पीएयू में शोकसभा के बाद अवकाश घोषित होने पर भी राजनेता नहीं जागे। जबकि जाने वाले कृषि वैज्ञानिक पंजाब की खुशहाली, आर्थिक-मजबूती के बहुत बड़े पैरोकार थे।

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