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युद्ध की देवी दुर्गा

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डॉ. मोनिका रघुवंशी

प्राचीन काल में जीव नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से स्वयं परेशानियों से नहीं निकल पा रहे थे। देवी देवता अमर हैं अतः वह निरंतर असुरों के त्रास से व्याकुल थे। मनुष्य असुरक्षित होकर कभी प्राकृतिक आपदाओं से, कभी सुख संसाधनों की कमी से, कभी पशु पक्षियों से या कभी आपस में ही परेशानियों से घिरे हुए थे। पशु पक्षी व असुर प्राकृतिक आपदाओं के कारण निरंतर मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे। ऐसी स्थिति में आदिशक्ति ने दुर्गा देवी रूप में जीवों की पीड़ाओं को हरने के लिए अवतरण किया।

जीवों की परेशानी देखते हुए अधिक विलंब ना करते हुए दुर्गा देवी ने सीधे स्त्री रूप में अवतरण किया। उन्होंने ब्रह्मांड की सर्वश्रेष्ठ दैविक शक्तियां धारण कीं जो की नकारात्मक शक्तियों पर विजय हासिल करने में सक्षम हों। उन्होंने देवी देवताओं की सर्वश्रेष्ठ शक्तियों का चुनाव किया। देवी देवताओं की सर्वश्रेष्ठ शक्तियां नकारात्मक शक्तियां देखते ही युद्ध को प्रस्तुत हो गईं। देवी देवताओं की शक्तियों को नकारात्मक शक्तियों में असुर प्रतीत होने लगे। दुर्गा देवी युद्ध में प्रवृत्त होकर नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करने लगीं। दुर्गा देवी दिन रात नकारात्मक शक्तियों से युद्ध कर सामान्य जीवन को त्रास देने वालों को समाप्त करने लगीं। इस प्रकार वह युद्ध की देवी रूप में विख्यात हुईं।

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