तीन में ना तेरह में मृदंग बजाए डेरे 

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संदीप शर्मा

तीन में ना तेरह में मृदंग बजाए डेरे में हिन्दी की इस लोकोक्ति का सार अगर कहा जाए तो बेफिक्र रहना या फिर निश्चिंत हो जाना होता है। लेकिन पंजाब की राजनीति में यह तीन और तेरह का आंकड़ा भारतीय जनता पार्टी को बेफ्रिक नहीं होने देता है। यह आंकड़ा भाजपा के लिए हमेशा ही परेशानी का शबब रहा है, जी का जंजाल बना है। पंजाब की राजनीति के इतिहास में जाएं तो हम देखते हैं कि यहां मतदाता के मन में अपने लिए जगह बनाने के लिए शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन एक लंबे दौर तक रहा है। बावजूद इसके भाजपा कभी भी लोकसभा में तीन का आंकड़ा पार करने में कामयाब नहीं रही है। इस बार के लोकसभा के चुनावी समर में भारतीय जनता पार्टी ने 28 साल बाद पंजाब के राजनीतिक मैदान में अकेले अपने दम पर ताल ठोकने का एलान किया है। अब जबकि शिअद-भाजपा के गठबंधन की गांठ खुल गई है और दोनों ही पार्टियां एलान कर चुकी हैं कि हम साथ-साथ नहीं हैं। इसके बावजूद भी शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से भारतीय जनता पार्टी का दामन थामने वालों की होड सी लगी हुई है। आज भी भारतीय जनता पार्टी पंजाब में चौथे नंबर की पार्टी है ऐसे में जिस रफ्तार से पहली,दूसरी और तीसरी नंबर की पार्टियों के नेता भाजपा के कुनबे में जुट रहे हैं उससे पंजाब की सियासी हवाओं का रुख भांप पाने में सियासी पंडितों की गुणा गणित की गुत्थी भी बार-बार उलझती जा रही है। किस पार्टी के पक्ष में माहोल ज्यादा है और किसके पक्ष में कम इस बारे में खुलकर कुछ भी कह पाना अभी जल्दबाजी ही होगी।

कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुनील जाखड तो पहले से ही कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं बाकी रही सही कसर लुधियाना से कांग्रेस के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने भाजपा की सदस्यता लेकर पूरी कर दी है। कांग्रेस की सरकार में कैप्टन अमरिंदर सिंह लंबे समय तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे हैं, अमृतसर से सांसद रहे हैं वो अब भाजपा में हैं। वहीं अब अमरिंदर सिंह की पत्नी परणीत कौर भी भारतीय जनता पार्टी से पटियाला लोकसभा सीट से टिकट लेने वालों की कतार में हैं। पंजाब कांग्रेस के मुखिया रहे सुनील जाखड हो या फिर जालंधर से आम आदमी पार्टी के सांसद सुशील कुमार रिंकू,जालंधर पश्चिम से आम आदमी पार्टी के विधायक शीतल अंगूराम, राजनयिक रहे तरणजीत सिंह संधू इन सबका भारतीय जनता पार्टी में आना एनडीए के लिए फील गुड कराने वाला है।

अब उन तथ्यों पर भी गौर फरमा लेते हैं जो शिअद और भाजपा के अलहदा होने की अहम वजह माने जा सकते हैं। शिरोमणि अकाली दल के साथ रहकर भी भारतीय जनता पार्टी को जब कुछ खास हासिल नहीं हुआ तो फिर हालात खोने को कुछ नहीं पाने को बहुत कुछ जैसे हो जाते हैं। जगज़ाहिर है कि शिरोमणि अकाली दल सिक्खों की कट्टर राजनीति का पैरोकारी दल है इसकी वजह से भाजपा का हिन्दू वोट बैंक भी कांग्रेस के साथ नज़र आता है। भारतीय जनता पार्टी परिवारवाद और भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाती है जबकि अकाली दल परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों से दो-चार होता रहा है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सांसदों और बड़े नेताओं का भाजपा का दामन थामना कहीं पंजाब की सियासी हवाओं के बदलते रुख का अंदाज तो नहीं है। पंजाब की राजनीति का ऊंठ किस करवट बैठेगा इस विषय में कुछ भी कह पाने में चुनावी चाणक्य अभी अगर और मगर के स्थिति में हैं। अभी कुछ और नेताओं के पाला बदलने और टिकट वितरण के बाद चुनावी तस्वीर बहुत हद तक साफ होने की उम्मीद है।