अंबाला, 8 अप्रैल । गुलजार सिंह संधु के पंजाबी में लिखित तथा वंदना सुखीजा व गुरबख्श सिंह मोंगा द्वारा हिन्दी में अनुवादित गोरी हिरणी – उपन्यास पर जनवादी लेखक संघ अंबाला तथा प्रगतिशील लेखक संघ अंबाला ने संयुक्त रूप से आज एक परिचर्चा छावनी के सिख सीनियर सैकेंडरी स्कूल में आयोजित की। प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से डा. गुरदेव सिंह ‘देव’ ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए अनुवादकों का परिचय देकर उपन्यास की द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। जनवादी लेखक संघ की ओर से जयपाल ने अंबाला,चंडीगढ़,बरवाला,डेराबसी, करनाल, कुरुक्षेत्र ,फगवाड़ा, बरनाला आदि से पधारे विशिष्ट अतिथिगण व वक्ताओं का अभिनंदन करते हुए कहा कि मुक्ति अकेले प्राप्त नहीं होती और तटस्थ रहने वालों का भी इतिहास लिखा जाएगा।
उपन्यास की सह अनुवादक वंदना सुखीजा ने अपने संबोधन में कहा कि अनुवाद के माध्यम से हम एक संस्कृति को दूसरी संस्कृति के पास पहुंचा सकते हैं। लेखक गुलजार सिंह संधु ने अपनी कृति में हिटलर के समय के समाज पर प्रभाव, युद्ध की विभीषिका, अति राष्ट्रवाद, नस्लवाद आदि को प्रभावी तरीके से अभिव्यक्त किया है। इस उपन्यास में जर्मनी और भारतीय पंजाब के बहुसांस्कृतिक परिवेश को बखूबी दर्शाया गया है। उपन्यास का अंत परिवार के जुडते हुए आशावाद से होता है। अनुवाद प्रक्रिया का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने स्वयं तथा दूसरे सह अनुवादक गुरबख्श सिंह मोंगा ने क्रमश: अनुवाद कार्य जारी रखते हुए उसे आगे बढ़ाते हुए सम्पन्न किया।
डेराबस्सी से आए पंजाबी रचनाकार जयपाल ने पंजाब विभाजन, नाजीवाद, फासिज्म, अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों के मूल्य थोपने, वैश्विक राजनीतिक तानाशाही, नस्लवाद के शुद्धिकरण के बिंदुओं को गोरी हिरणी के संदर्भ में उजागर किया।
करनाल से पधारे डा अशोक भाटिया ने कहा कि अनुवादक देश-दुनिया में भाषा और संस्कृति ले जाते हैं। गोरी हिरणी का नायक और खलनायक युद्ध है। रचना में युद्ध व घृणा, प्रतिरोध की चेतना इत्यादि का वर्णन है।
डा रत्न सिंह ढिल्लों ने उपन्यास के संदर्भ में ऊंच नीच, स्वास्तिक चिन्ह, हिटलर के अंत, दो सगी बहनों की विचारधारा में भिन्नता, अनाथालयों में बच्चों की दर्दनाक स्थिति, शहरी व ग्रामीण पारिवारिक जीवन में अंतर, संवाद के माध्यमों हुए परिवर्तनों व तकनीक के अनुप्रयोग रेखांकित किए। तलाक को प्रवास के लिए प्रयोग करने पर चिंता प्रकट की। प्रगतिशील लेखक संघ पंजाब के अध्यक्ष सुरजीत जज ने मुख्य वक्ता की भूमिका में संबोधन करते हुए पेरिस में 1935 में गठित प्रगतिशील लेखक संघ के इतिहास में भारतीयों की भागीदारी पर प्रकाश डाला। उन्होंने कबीर, रविदास, बुद्ध, नानक को प्रगतिशील चिंतक बताया। उन्होंने माना कि गोरी हिरणी में जर्मन और पंजाबी संस्कृति का एक दूसरे पर प्रभाव पड़ा है । उनके अनुसार प्रगतिशील लेखक शब्द शक्ति के हुनर से समाज की लड़ाई लड़ता है। पूंजीपति सेना राष्ट्रवाद से जोड़ता है लेकिन स्वयं सेना में अपने बच्चों को नहीं भेजता। उपन्यास में जानकारी प्रदान करने की बजाए यथार्थ सृजन पर अधिक बल दिया जाता है। गोरी हिरणी में प्रवचन रहित रचना है। पात्रों और घटनाओं जरिए संदेश देती एक कृति है।
गोरी हिरणी के सह अनुवादक गुरबख्श सिंह मोंगा ने कहा कि संविधान सम्मत वैज्ञानिक दृष्टिकोण की प्रतिष्ठा से ही समाज और राष्ट्र का निर्माण होगा। उन्होंने बताया कि अंबाला के हयूमेन फांउडेशन के प्रभारी सुनील अरोड़ा ने गोरी हिरणी को विद्यालयीन शिक्षकों की रचनात्मक प्रतिभा के विकास की परियोजना हेतु चयनित कर लिया है। जिस पर फाउंडेशन विविध स्तरीय प्रतियोगिताओं का आयोजन करेगा।
इनके अतिरिक डॉ सुदर्शन गासो, अनुपम शर्मा, डॉ गुरदेव सिंह, हरपाल ग़ाफ़िल , हरपाल सिंह पाली,जगमीत सिंह जोश, संतोख सिंह, जयपाल आदि ने भी संक्षिप्त टिप्पणियां प्रस्तुत की ।
तनवीर जाफरी द्वारा प्रस्तुत प्रगतिशील एवं जनवादी लेखक संघ द्वारा इस्राईल द्वारा किए जा रहे गजा जनसंहार के विरूद्ध निंदा प्रस्ताव को सर्वसम्मति से सभा ने पारित कर दिया। प्रगतिशील लेखक संघ के 9 अप्रैल को 89वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में उन्होंने दूसरे प्रस्ताव में संकल्प किया कि सदस्यगण पूंजीवादी, साम्राज्यवादी तथा फासीवादी शक्तिओं का विरोध करते रहेंगे तथा सामाजिक समानता का समर्थन करते हुए कुरीतियों, अन्याय, पिछड़ेपन व अंधविश्वास के विरूद्ध अपनी आवाज पूर्ववत बुलंद करते रहेंगे। इसे भी सदन ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया । अन्य प्रतिभागी लेखकों में रवीन्द्र सिंह, भजनवीर,शाम सिंह संधू, गुरजिंदर सिंह,नदीम खान, हितेश,जसवंत सिंह, आत्मा सिंह, मनमोहन शर्मा,पंकज शर्मा,सुनील शर्मा, सुनील अरोड़ा, राजिंदर कौर,ओम करुणेश, प्रोफेसर नरेंद्र कुमार,एस.पी.भाटिया, प्रवीन वर्मा,वर्शुल आहुजा आदि की समुलियत एक उपलब्धि रही।
-प्रो.राजीव चंद्र शर्मा