स्वामी गोपाल आनन्द बाबा – विभूति फीचर्स
हिमाचल प्रदेश की अत्यन्त मनोरम वादी मनाली व कुल्लू घाटी की महादेवी व इस क्षेत्र के शासकों की कुलदेवी हैं. हिडि़म्बा। जिनका सुप्रसिद्ध मंदिर मनाली में है। हि =अम्बा, डि=वनी और अम्बा = दुर्गा अर्थात् वन दुर्गा हैं हिडिम्बा।
उक्त मंदिर विशाल प्राचीनता लिए हुए हैं। वर्तमान मंदिर का निर्माण सन् 1553 ई. में इस राज्य के तत्कालीन शासक महाराजा बहादुर सिंह ने करवाया था। मंदिर के भीतर हिडि़म्बा देवी की मूर्ति नहीं है, बल्कि यहां महिषासुर-मर्दिनी के श्री विग्रह की पूजा-उपासना होती है। मंदिर में एक कन्दरानुमा गुफा है, जिसमें उतरना पड़ता है, इसकी पाषाणी चट्टानों पर दो प्राचीन पद चिन्ह बने हुए हैं, जिन्हें हिडि़म्बा देवी के पद चिन्ह माना जाता है। इसी पदचिन्ह की पूजा होती है। पास में दुर्गाजी को विराजमान कराया गया है।
हिडि़म्बा मंदिर के इतिहास पट्ट से ज्ञात होता है कि मनाली के पास कुल्लू राज्य के प्रथम राजा विहिंग पाल पहिेले एक साधारण अर्दली थे। वे परम देवी भक्त थे, उन्होंने श्रद्धा भक्ति से देवी हिडि़म्बा की उपासना की, जिससे देवी ने उन्हें साक्षात दर्शन दिया व वरदान दिया कि तू कुल्लू का राजा बनेगा, मैं बनाऊंगी। देवी की अपार कृपा से वहां के अत्याचारी, निरंकुश शासक राजा मिति ठाकुर का समूल सर्वनाश हुआ और विहिंग पाल राजा हुए।
मंदिर स्थान प्राचीन घुनगिरी वन के मध्य में है। अत: यहाँ लोग इसे घुनगिरी मंदिर के नाम से भी जानते हैं। उक्त मंदिर मनाली के मध्य ऊंचाई पर ऊँचे पाषाणी आधार स्तम्भ पर प्राचीन देवदार लकडिय़ों के खण्डों से तिब्बती बौद्धों की पैगोड़ा शैली पर बना हुआ है, जिसमें वन्य जीव-जन्तुओं के विशाल सींगों तथा मुखौटों को लगाया गया है। पूर्व काल में यहां वन्य जन्तुओं की बलियाँ (बलिदान) दी जाती थी। मंदिर के आसपास देवदार के वृक्षों का ऐसा सघन वन है, जिसके कारण भगवान भुवन भास्कर सूर्य की रश्मियाँ देवदार वृक्षों की पत्तियों, टहनियों से छनकर इस मंदिर पर आकर ठहरती हैं, जिससे दर्शनार्थी रोमांचित हो उठते हैं। उस समय यह मंदिर एक अलग ही अलौकिक रूप में दिखलाई पड़ता है।
घुनगिरी वन के मध्य स्थित हिडि़म्बा देवी मंदिर में अपनी आस्था की सुगंध यहाँ के लोगों में पूरी श्रद्धा से है। पूरी मनाली के श्रद्धा के केन्द्र इस मन्दिर की हिडि़म्बा देवी को लोगों ने अपने अत्यन्त निकट कर लिया है।
महाभारत व पुराणों से ज्ञात होता है कि हिड़म्ब व हिडि़म्बा राक्षस व राक्षसी थे। प्राचीन काल में असुर संस्कृति के साथ ही दानव व दैत्य संस्कृति की गणना होती थी, जिनके साम्राज्य भी पृथ्वी पर थे। रक्ष संस्कृति या राक्षस संस्कृति का संस्थापक लंकापति रावण था, तब से राक्षसजनों के भी राज्य यत्र-तत्र स्थापित थे। पाण्डव वनवास काल में राक्षस हिडि़म्ब के शासन क्षेत्र में ठहरे थे। यहीं पर उसकी बहन राक्षसी हिडि़म्बा का प्रेम संबंध भीमसेन से बना और दोनों ने विवाह करना तय किया। माता कुन्ती सहित पांचों पाण्डवों की स्वीकृति हुई। उस काल तक भी मानव, दानव, दैत्य, राक्षस आदि में एक-दूसरे से विवाह संबंध होते थे। पर हिडि़म्बा ने कहा- भाई हिडि़म्ब इसे स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि जो उन्हें पराजित कर देगा वही मुझसे विवाह कर पाएगा। अत: भीम (पाण्डव) ने हिडि़म्ब से युद्ध किया और इस युद्ध में हिडि़म्ब मारा गया। भीमसेन का हिडि़म्बा के संग विवाह हो गया जिनसे पुत्र घटोत्कच उत्पन्न हुआ।
उत्पन्न बालक घटोत्कच के मस्तक (घट) पर केश नहीं थे और न ही केश उत्पन्न होने के लक्षण थे, अत: हिडि़म्बा ने अपने पति भीम से कहा कि इसका घट (शीश) उत्कच (केशरहित) है सो इस बालक का नाम घटोत्कच रखें। घटोत्कच का साम्राज्य पूर्वोत्तर भारत में था। उसने अपनी माता हिडि़म्बा के नाम पर राजधानी हिडि़म्बापुर बसाई जो अब डीमापुर कहलाती है। घटोत्कच के दो पुत्र हुए – 1. बर्बरीक, 2. विश्वसेन (बिस्सासेन)। महाभारत युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व ही भगवान श्रीकृष्ण के चक्र सुदर्शन से वर्बरीक का मस्तक काट डाला गया, वह मस्तक ऊंचे स्थान पर रखा गया था ताकि सम्पूर्ण युद्ध वह देख सके और तब मृत्यु को प्राप्त हो। इस युद्ध में उसका मस्तक राजस्थान में पुन: प्राप्त हो गया और वह बाबा खाटू श्याम के नाम से पूजित है। घटोत्कच भी कर्ण के अमोद्य अस्त्र से मारा गया। तब पाण्डव भीम सेन के वंश में आगे वंशज विश्वसेन या बिस्सासेन हुए। उत्तर पूर्वांचल में विस्सासेन के राज्य के क्षत्रिय वंशजों की श्रृंखलाबद्ध कड़ी उपलब्ध है, जो 5015 वर्ष वहां क्रमश: शासक रहे हैं। विश्वसेन के वंशजों को ही सेन वंश कहा गया है। आधुनिक काल में गौड़ प्रांत में इनका राज्य स्थापित हुआ। पश्चात् सेन राजवंश के राज्य कूच, बिहार, दिल्ली, कुल्लू-मनाली (हिमाचल प्रदेश) में स्थापित रहे। कूचबिहार रियासत उत्तरी बंगाल में थी। यहां की राजकुंवरी गायत्री देवी जयपुर (राजस्थान) की रानी बनी। भारत के पूर्वांचल में देवी हिडि़म्बा राक्षसी के रूप में नहीं बल्कि वनदेवी दुर्गा के रूप में पांच हजार वर्ष से पूजित हैं, वहीं कुल्लू मनाली में कम से कम चौदहवीं सदी ईसवी से अब तक सात सौ वर्षों से पूजित हैं। मैं समझता हूँ कि देवी हिडि़म्बा राक्षसी होते हुए भी एक मात्र ऐसी देवी हैं जिनकी पूजा सभ्य सुसंस्कृत आर्य जन करते हैं। चन्द्रवंशी पाण्डववंशी क्षत्रिय भीमसेन एवं राक्षसवंशी क्षत्राणी हिडि़म्बा के संयोग सहवास से उत्पन्न क्षात्रधर्मी क्षत्रिय शासकों की सदियों से हिडि़म्बा को देवी रूप में पूजा-उपासना करने का ही यह सद्परिणाम है।
ज्येष्ठ कृष्ण प्रथमा को हिडि़म्बा देवी का जन्म दिवस माना जाता है। इस दिन कुल्लू घाटी स्थित डूंगरी के वन में एक विशाल मेला लगता है, जो त्रिदिवसीय होता है। वह संगीत और मस्ती का समय होता है। नृत्य के विशेष आयोजन भी इसमें होते हैं। इस अवसर पर सिमसा के कार्तिक स्वामी, सियाल की मालादेवी और नासोग्नि के शंख नारायण को उनके भक्त नाचते, गाते, झूमते, धूमधाम से घुनगिरी लाते हैं। अन्तिम दिन उक्त मेला मनाली के मनु मंदिर के चहुंओर लगता है।
कुल्लू में दशहरा आश्विन नवरात्र के बाद दशमी से प्रारम्भ होकर कई दिनों तक मनाया जाता है। इस सुप्रसिद्ध दशहरा मेला में इस क्षेत्र के देवी देवताओं की पालकी पहुंचती है, परन्तु प्रमुखत: देवी हिडि़म्बा की पालकी का सम्मिलित होना परम आवश्यक है, वे हिडि़म्बा को साक्षात दुर्गा मानकर पूजते हैं। दशहरा के अवसर पर हिडि़म्बा की विशेष पूजा होती है और लोग भैंसा की बलि देते हैं। अष्टांग बलि दी जाती है। वे मानते हैं कि असुर महिष का बलिदान हो गया।
मनाली हिमाचल प्रदेश का अत्यन्त मनोरम स्थल है। सघन-वन, जल-प्रपात और रजत समान हिमाच्छादित पहाड़ों तथा तिब्बती भारतीय संस्कृति की मिली जुली बौद्ध संस्कृति से सुवासित मनाली का पर्यटन घूमने वालों में ऐसी स्थायी छाप छोड़ता है। नगर में वैसे तो अनेक दर्शनीय स्थल हैं, परन्तु सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र है- हिडि़म्बा देवी का मंदिर। मनाली का यह हिडि़म्बा मंदिर श्रद्धा से आप्लावित भक्त हो या उत्सुक पर्यटक सभी के लिए एक अलग अनुभव देता है। (विभूति फीचर्स)
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इस तरह खोज हुई विटामिन ‘ई’ की
डॉ. गुलाबचंद कोटडिय़ा- विभूति फीचर्स
विटामिन साधारणतया 4 प्रकार के ही अभी चिन्हित किए गए है। ए.बी.सी और डी। इन चारों में सारी शक्तियां व गुण समाहित होते हैं जिन्हें मनुष्य अपने शरीर के लिए चाहता है। इन विटामिनों की द्रव्य या गोलियां बनी बनाई बाजार में उपलब्ध है। इसके अलावा मजाक में एक और विटामिन एम अर्थात् मनी को माना जाता है यह सर्वोपरि है क्योंकि उसके बिना कुछ नहीं प्राप्त होता न विटामिन, न ताकत।
विषय वासना, कामोत्तेजन संबंधी गोलियां वियाग्रा व कई अन्य नामों से कुछ समय पहले खूब बिकती थी अब भी बिकती होगी। विटामिनों पर अनुसंधान कार्य चालू है। आज अमेरिका में पांचवा विटामिन ‘ई’ की गोलियां गटकना सबके लिए आवश्यक बन गई है। यह विटामिन ‘ई’ है क्या? केलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. जेम्स स्मिथ जो एक सेक्स क्लिनिक चलाते हैं। उन्होंने एक ऐसी दवा बनाई है जो वृद्घावस्था को रोकने में सहायक होती है अर्थात् उस दवा के मर्यादित सेवन से चिर यौवन तो नहीं फिर भी वृद्घावस्था को रोका जा सकता है। क्लिनिक में आने वाले स्त्री-पुरूषों पर उन्होंने उस दवा का प्रयोग यानी विटामिन ‘ईÓ से उपचार किया तो उन्होंने उसे सफल पाया।
अमेरिका में विटामिन ‘ई’ के बारे में कनाड़ा के डॉ. इवान शूट ने जब सर्वप्रथम जानकारी दी तो पूरे देश में खलबली मच गई। वृद्घावस्था में खण्डहर, जीणशीर्ण बने शरीर में अगर शक्ति संचार होने लगे तो हर कोई उसकी कामना करेगा ही। शारीरिक सुख व यौन आनंद प्राप्त करने अमेरिकी लोग रोज विटामिन ‘ई’ की गोलियां गटकने लगे हैं। डाक्टरों के अनुसार इसके सेवन से टूटे फूटे दाम्पत्य जीवन में बसंत बहार छा सकती है। शरीर का चाहे कोई अंग हो उसमें उत्तेजना भर जाती है।
अब तो यूरोप के सभी देशों में इसका प्रचलन बढ़ गया है। हर कोई उसके पीछे पागल है। मजे की बात यह है कि विटामिन ‘ई’ की शोध का श्रेय एक जापानी सांड को जाता है टोकियो के पास एक गांव में एक किसान ने उत्तम जाति के एक सांड को पाला था। हमारे भारत में उसे सूरजी का सांड कहते हैं जिसके द्वारा गायों का गर्भाधान कराया जाता है।
पर जापान के उस सांड को गायों में कोई रस नहीं था, न उन्हें वह भोगने का प्रयत्न करता था। एक योगी की तरह तटस्थ निष्काम भाव से देखता रहता था। किसान ने सोचा जिस कार्य के लिए उस सांड को रोज मालदार तर पौष्टिïक खुराक खिला रहा हंू उसके लिए तो वह सांड तैयार ही नहीं हो रहा है। मानों हड़ताल पर बैठा हो। किसान हैरान परेशान हो गया। इस निकम्मे नाकारा नपुंसक सांड को पालने से क्या फायदा? उसने उसमें उत्तेजना पैदा करने के लिए कई प्रयत्न किए पर सब निष्फल सिद्घ हुए। अंत में हारकर उसने घरेलू (दादा दादी के नुस्खे) उपचार द्वारा आजमाने का विचार किया। उस किसान के घर में एक शीशी थी जिसमें तेल युक्त सत्व द्रव्य रूप में भरा था। इस तेल में पुरूषों में यौन शक्ति की जागृति का गुण है, ऐसी मान्यता थी। उत्तेजना पैदा कर सके वैसा द्रव्य था। आज भी आधा जापान उस तैलीय द्रव्य का उपयोग करता है। उस किसान ने कुछ सोचकर उस तेल की शीशी में इकट्ठे द्रव्य को सांड की खुराक में मिश्रण कर दिया। आधी खुराक पेट में पहुंचते ही सांड डकराने लगा व खुरों से जमीन खोदन लगा। जोर-जोर से रम्भाने लगा। आंखों में कामुकता के लाल लाल डोरे चमकने लगे। गायों की तरफ वह आकर्षित होने लगा। किसान को इस परिवर्तन पर सुखद आश्चर्य हुआ। दिन रात वह गायों का गर्भाधान कराने लग गया। यह बात हवा की तरह पूरे जापान में फैल गई और अमेरिका के समाचार पत्रों में उसके बारे में प्रकाशित हुआ तो वैज्ञानिक उस तत्व की खोज में जुट गए।
कई दवा कंपनियों ने इस विचार को हाथों हाथ लिया। प्रयोग व अनुसंधान होने लगे। शोध और अनुसंधान के बाद पता चला कि इस तत्व में ‘अल्फा टोकोफेरोल’ नामक महत्वपूर्ण द्रव्य भरपूर मात्रा में मौजूद है। अगर उसे मुनष्यों को दिया जाए तो गुम हुई युवा शक्ति का पुनर्भरण हो सकता है।
उदासीन यौन संबंध पुन: जागृत हो सकते हैं। वे भी सांड की तरह शारीरिक संपर्क के लिये तैयार हो जाते हैं। इस ‘आल्फा टोकोफेराल’ को ही विटामिन ‘ई’ का नाम दिया गया है। शक्ति के नवसंचार हेतु उस जापानी सांड का आभार मानना चाहिए। अमेरिका यों भी प्रबल सेक्स भावना प्रधान देश है, खुले प्रेम प्रदर्शन का समर्थक। अमेरिकी सदा सेक्स के भूखे होते हैं। विटामिन ‘ई’ साग भाजी पत्तों में पाया जाता है। मांसाहारी अमेरिकी ज्यादा गेहूं या साग भाजी का सेवन नहीं करते अत: शरीर के आवश्यक पोषक तत्वों का अभाव आ गया है अत: उन्हें ये गोलियां खाने के लिए मजबूर होना पड़ा। ये गोलियां यौन शक्ति जगाने के काम आती है इसलिए ये गोलियां सर्वत्र लोकप्रिय हो गई। तीसरा कारण और भी महत्वपूर्ण है। हाल ही में अमेरिकी स्त्री पुरूषों पर एक सर्वेक्षण किया गया जिससे पता चला कि अमेरिकियों में बीसवीं सदी में जितनी जननशक्ति थी वह 21वीं सदी आते-आते तृतीयांश रह गई है अर्थात् अमेरिकी स्त्रियां भले ही परिवार नियोजन का पालन नहीं करें पर भविष्य में उनके बच्चा होगा ही यह आशा भी विलुप्त होने लगी। यह एक विचित्र परिस्थिति है। संतान जन्में या न जन्में पर विषय सुख या सेक्स आनंद प्राप्त कर सभी मजा लूटना चाहते हैं और जब यौन शक्ति को बढ़ाने के गुण विटामिन ‘ई’ में मौजूद हैं तो कोई क्यों चूके? कामोत्तेजना हो, नपुंसकता दूर हो, यौवन पुन: मिल जाए, शक्ति छलछलाने लगे। स्त्री पुरूष एक दूसरे को भोगने, शारीरिक संपर्क करने को आतुर हो जाए तो और क्या चाहिए? डाक्टरों ने उस ‘विटामिन ई’ को इस प्रकार का प्रमाण पत्र भी दे दिया। अमेरिका में विटामिन ‘ई’ की बिकवाली 20 प्रतिशत बढ़ गई है। विटामिन सी से भी वह अधिक बिकती है। चिकित्सा संसार में खलबली मची हुई है इसका कारण है विज्ञान शास्त्र में अभी तक विटामिन ‘ई का अस्तित्व ही न होना।
अनुसंधान शोध लगातार हो रहे हैं। इन गोलियों के अधिक सेवन से आदमी बहकता जरूर है पर उसके शरीर में नुक्सानदायक प्रतिक्रिया होने का डर नहीं है। इसलिए डाक्टरों की चेतावनी के बावजूद लोग इसका धड़ल्ले से सेवन कर रहे हैं। विटामिन ‘ई’ का उत्पादन बहुत अधिक हो रहा है। अमेरिका में तीस से अधिक कंपनियों ने इस दवा उत्पादन का कार्य हाथ में लिया है जिसमें 4 कंपनियां तो ऐसी है जो परिवार नियोजन की गोलियां भी बनाती है। भारत में भी विटामिन ‘ई’ की दवा व गोलियां उपलब्ध है। टानिक, टेबलेट के रूप में प्राप्त है। स्किन टानिक के लोशन में भी विटामिन ‘ई’ पाया जाता है।
डॉ. शूट ने हाल ही में अत्यंत असरदार शक्तिवर्धक नई विटामिन ‘ई’ की गोलियों को बाजार में पेश किया है और बताया कि 100 से अधिक जोड़ों पर इसका प्रयोग किया गया और उन्हें खोई जवानी पुन: प्राप्त हो गयी है परंतु ‘आल्फा टेकोफेरोल’ का वैज्ञानिक विश्लेषण व पूर्ण शोध अभी हुआ नहीं है। पूर्ण शोध होने के बाद ही उसे विटामिन के रूप में स्वीकृति दी जाएगी। चिकित्साशास्त्री यह भी मानते ही है कि ‘आल्फा टेकोफेरोल’ मात्रा का शरीर में प्रमाण कम होते ही नपुंसकता आने लगती है। 1972 में अमेरिका में डेविड होटिंग नामक एक डाक्टर ने एक सूचना प्रसारित की थी कि अमेरीकियों में आल्फा टेकोफेरोल की जितनी मात्रा प्रमाण में होनी चाहिए उतनी है नहीं, इसलिए उनकी जनन शक्ति, कुप्रभावित हो गई है। इस पर अमेरिकी कंपनियों ने थोकबंद गोलियों का उत्पादन शुरू कर दिया और सेवन भी होने लगा। खूब प्रसार प्रचार भी किया गया कि इसके सेवन से तीन गुना यौन शक्ति बढ़ जाती है। विटामिन ‘ई’ के अधिक सेवन से कुछ नुक्सान हो सकता है उसका परीक्षण संपूर्णत: अभी तक हुआ नहीं है। वैज्ञानिक इस कार्य में अंधेरे में हाथ पैर मार रहे हैं। पूर्ण जानकारी अनुपलब्ध है। उन्हें यह भी पता नहीं है शरीर में यह तत्व कितना होना चाहिए। पर यह बात उन्हें पता है कि यह तत्व गेंहू के चोकर से प्राप्त होता है अत: उसी पर प्रयोग करते जा रहे हैं।
अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जान एफ केनेड़ी विटामिन ‘ई’ का सेवन करते थे, तब वह बाजार में नई नई ही आई थी। उनके यौन संबंधों के चर्चे आज भी होते हैं। रूसी नेता बे्रजनेव भी इस गोली के शौकीन थे। भारत में भी शौकीन है जनसंख्या लगातार बढ़ रही है इसलिए इसका सेवन कम ही होता है।
पुरूष ही नहीं स्त्रियां भी इसकी तरफ आकर्षित है। कामशीलता से पीडि़त स्त्रियों के लिए भी यह विटामिन वरदान सिद्घ हो रहा है। इसमें पोषक तत्व है इसके बारे में कोई दो राय नहीं है। (विभूति फीचर्स)