रूस के तेल व्यापार पर प्रतिबंधों के बावजूद भारत दबाव में नहीं !

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केंद्रीय मंत्री पुरी का दावा, भारत के लिए नहीं है संकट जैसी कोई आशंका

नई दिल्ली, 22 जुलाई। पश्चिम से बढ़ते दबाव के बावजूद, भारत यह स्पष्ट कर रहा है कि उसकी ऊर्जा नीति राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार तय होगी, ना कि भू-राजनीतिक अल्टीमेटम के अनुसार होनी है। रूस, भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, जिसने इस वर्ष की पहली छमाही में कुल तेल आयात का लगभग 35% हिस्सा हासिल किया।

यहां गौरतलब है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी जैसी निजी रिफाइनर कंपनियों ने लगभग आधी खरीदारी की। अगर ये आपूर्ति बाधित होती है तो इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष एएस. साहनी का कहना है कि देश अनुकूलन के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि वे यूक्रेन युद्ध से पहले के सोर्सिंग मॉडल पर वापस लौट जाएंगे, जब भारत के कच्चे तेल के बास्केट में रूसी तेल की हिस्सेदारी 2% से भी कम थी।

दरअसल, इस हफ़्ते वाशिंगटन और ब्रुसेल्स से चेतावनी भरे संकेत आए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आगाह किया कि अगर मास्को 50 दिनों के भीतर यूक्रेन के साथ शांति समझौते पर सहमत नहीं होगा तो रूसी तेल खरीदना जारी रखने वाले देशों पर अतिरिक्त प्रतिबंध लग सकते हैं। नाटो महासचिव मार्क रूट ने भी इसी भावना को दोहराया और भारत को उन देशों में से एक बताया जिन पर बोली लग सकती है। हालांकि नई दिल्ली का संदेश शांत संकल्प का है। पैट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राजधानी में एक उद्योग कार्यक्रम में किसी संकट की संभावना को खारिज कर दिया। उन्होंने भारत की बढ़ी हुई ऊर्जा क्षमता पर ज़ोर देते हुए कहा, मुझे बिल्कुल भी चिंता नहीं है। अगर कुछ होता है तो हम उससे निपट लेंगे। पुरी के अनुसार, भारत ने अपने सोर्सिंग नेटवर्क का नाटकीय रूप से विस्तार किया है, जो यूक्रेन संघर्ष से पहले 27 आपूर्तिकर्ता देशों से बढ़कर आज लगभग 40 हो गया है। विदेश मंत्रालय ने भी यही रुख अपनाया। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल के मुताबिक भारत के ऊर्जा संबंधी विकल्प मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों और बाज़ार की वास्तविकताओं से प्रभावित होते हैं, ना कि राजनीतिक दबाव से।

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