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नवीन गोगना

चंडीगढ़, 19 अप्रैल : ट्राइसिटी के पर्यावरणविदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में चंडीगढ़ के सलाहकार एवं मुख्य सचिव राजीव वर्मा से मुलाकात कर रॉक गार्डन क्षेत्र में वन भूमि के गैर-वन भूमि में परिवर्तन और उसकी मौजूदा स्थिति को लेकर गंभीर चिंता जताई। पर्यावरणविदों ने इस परियोजना में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित शर्तों के उल्लंघन और हीटवेव जैसे जलवायु संकट के दौरान पेड़ों की कटाई को मानव व प्रकृति के लिए हानिकारक बताया।

परियोजना की पृष्ठभूमि

 

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के सामने रॉक गार्डन क्षेत्र में 0.0272 हेक्टेयर और 0.2195 हेक्टेयर भूमि को चंडीगढ़ प्रशासन ने गैर-वन प्रयोजनों के लिए अधिसूचित किया है। कुल मिलाकर यह क्षेत्रफल 0.2467 हेक्टेयर बनता है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) तथा उच्च न्यायालय द्वारा इस भूमि को केवल सड़क को चौड़ा और सीधा करने के लिए उपयोग करने की अनुमति दी गई थी ताकि ट्रैफिक सुगम हो सके और वाहनों की आवाजाही में सुविधा हो।

 

पर्यावरणीय शर्तों का उल्लंघन

 

पर्यावरणविदों ने सलाहकार के समक्ष प्रस्तुत किया कि यह परियोजना अब अपने मूल उद्देश्य से भटक चुकी है। उन्होंने कहा कि जिस भूमि को सड़क निर्माण के लिए परिवर्तित किया गया था, उसका उपयोग अब ‘कच्ची पार्किंग’ के रूप में किया जा रहा है, जो वन अधिनियम, 1980 का स्पष्ट उल्लंघन है।

 

MoEF&CC द्वारा अनुमोदन के समय यह शर्त रखी गई थी कि परियोजना के अंतर्गत किसी भी प्रकार की स्थायी निर्माण गतिविधि या अन्य गैर-वन प्रयोजन की अनुमति नहीं होगी। इसके बावजूद वहां न केवल कच्ची पार्किंग बनाई गई है, बल्कि वहां वृक्षों की कटाई भी की गई, जिसकी पर्यावरणीय रिपोर्ट प्रशासन द्वारा साझा नहीं की गई है।

 

वृक्ष कटाई और पुनः रोपण का मुद्दा

 

प्रदूषित या खराब वन भूमि के लिए मानक निर्धारित करते हैं कि प्रति हेक्टेयर 1,100 पेड़ लगाए जाने चाहिए। 0.2467 हेक्टेयर भूमि के हिसाब से कम से कम 272 पेड़ों का रोपण होना चाहिए। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा क्षेत्र की पारिस्थितिक आवश्यकताओं के अनुरूप वृक्ष प्रजातियों की एक सूची भी जारी की गई थी, ताकि जैव विविधता को बनाए रखा जा सके।

 

पर्यावरणविदों ने आरोप लगाया कि न तो पेड़ रोपण की कोई योजना सार्वजनिक की गई और न ही कटे हुए पेड़ों का विवरण उपलब्ध कराया गया। उन्होंने प्रशासन से वृक्ष गणना रिपोर्ट, पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) रिपोर्ट और वनीकरण की रिपोर्ट पारदर्शी तरीके से उपलब्ध कराने की मांग की है।

 

हीटवेव और जलवायु संकट

 

प्रतिनिधिमंडल ने इस बात पर भी बल दिया कि इस समय हीटवेव की स्थिति गंभीर है और भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने पहले ही अप्रैल, मई और जून के महीनों में अधिक तापमान और गर्म हवाओं के प्रभाव को लेकर चेतावनी जारी कर दी है। ऐसे में पेड़ों की कटाई से न केवल स्थानीय तापमान में वृद्धि होगी, बल्कि नागरिकों के स्वास्थ्य और जीव-जंतुओं की जीवनशैली पर भी गहरा असर पड़ेगा।

 

पूर्व में की गई पहल

 

कुछ दिन पहले भी पर्यावरणविदों का एक समूह सांसद मनीष तिवारी से मिला था और उन्होंने इस पूरे मामले को संसद स्तर पर उठाने का अनुरोध किया था। अब यह मामला प्रशासन के समक्ष दोबारा लाया गया है ताकि पर्यावरणीय नियमों का पालन हो और विकास कार्यों में पारिस्थितिकी की अनदेखी न की जाए।

 

प्रतिनिधिमंडल में शामिल प्रमुख पर्यावरणविद

 

पर्यावरणविदों के इस प्रतिनिधिमंडल में समिता कौर मंगत, पवीला बाली, पूजा शर्मा और अमनदीप सिंह जैसे ट्राइसिटी के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे। इन सभी ने पर्यावरण की रक्षा और नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए प्रशासन से सख्त कदम उठाने की मांग की।

यह मामला केवल एक सड़क या पार्किंग निर्माण का नहीं है, बल्कि यह इस बात का उदाहरण है कि किस तरह से पर्यावरणीय मंजूरी की शर्तों का पालन न होने से पारिस्थितिकी पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। जब देशभर में जलवायु परिवर्तन और बढ़ती गर्मी एक गंभीर संकट बन चुकी है, तब प्रशासन और समाज दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे पर्यावरण के संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दें।

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