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मुद्दे की बात : बांग्लादेश में भारत के खिलाफ साजिश ! 

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जमात के जरिए आईएसआई ने चुना अंतरिम सरकार का कंधा !

बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बनने के बाद अब भारत से उसके रिश्तों में खटास आती दिख रही है। नई सरकार के आदेश के बाद भारत में सेवारत दो बांग्लादेशी राजनयिकों को उनके कर्तव्यों से हटाकर वापस बुला लिया गया है। दिल्ली में बांग्लादेश उच्चायोग में प्रथम सचिव (प्रेस) के रूप में कार्यरत शबन महमूद को उनके अनुबंध की समाप्ति से पहले इस्तीफा देने के लिए कहा गया। इसी तरह, कोलकाता में बांग्लादेशी वाणिज्य दूतावास में इसी पद पर कार्यरत रंजन सेन को भी उनके कर्तव्यों से बर्खास्त कर दिया गया।

यहां बताते चलें कि बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शनों और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश छोड़कर भाग जाने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार की स्थापना हुई है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का रुख भारत के साथ जो नजर आ रहा है, उससे लगता है कि वह सहयोग के रास्ते पर ना बढ़कर टकराव के रास्ते पर बढ़ना चाहती है। हसीना के प्रत्यर्पण के लिए बेताब यूनुस सरकार का रवैया एक सहयोग करने वाले पड़ोसी देश की तरह नहीं, बल्कि एक बदले पर उतारु दुश्मन देश जैसी है। हसीना के खिलाफ दर्ज हो रहे आपराधिक मामलों की संख्या लगातार बढ़ा रही है। रविवार को उनके खिलाफ हत्या के चार नए केस दर्ज हुए।

मीडिया रिपोर्टों की मानें तो हसीना पर 53 केस दर्ज हुए, इनमें से 44 हत्या से जुड़े हैं। बगावत के बाद हसीना ढाका से भागकर भारत आईं और तब से यही हैं। उनकी छवि भारत समर्थक रही है। रिपोर्ट्स की मानें तो बांग्लदेश में हसीना के खिलाफ वहां के उसी कट्टरपंथी संगठन जमात ए इस्लामी ने साजिश रची, जिसने 1971 में पाकिस्तानी फौज का साथ दिया था। इसी संगठन ने बांग्लादेशी मुस्लिमों को मारने में पाकिस्तानी फौज की मदद कर वहां के समाज में भारत के खिलाफ नफरत पैदा की। इसका प्रभाव बांग्लादेशी सेना सहित सरकारी प्रतिष्ठानों में है। हसीना के खिलाफ साजिश के पीछे केवल जमात नहीं, बल्कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी है। जमात में इतना दम नहीं था कि वह केवल सरकार का तख्ता पलट दे। यह सोची-समझी साजिश थी, धरने-प्रदर्शन और आंदोलन में पैसों की जरूरत होती है। इसके लिए जमात के पास पैसा और लॉजिस्टिक सपोर्ट जाहिर तौर पर आईएसआई से मिला। खबर यह भी है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच हथियारों की डील हुई है। पाकिस्तान तीन फेज में बांग्लादेश को हथियार और गोला बारूद देगा। यह बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच नेक्सस का खुलासा करता है।

हसीना को भगाए जाने के बाद जमात सहित भारत विरोधी शक्तियों का मकसद अभी पूरा नहीं हुआ। वे हसीना के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं, इससे यही लगता है कि वे उन्हें वापस बुलाकर फर्जी मुकदमा चला उन्हें फांसी पर लटकाना चाहते हैं। हसीना और भारत के खिलाफ उनका नफरती एजेंडा साथ-साथ चल रहा है। पांच अगस्त के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा का तांडव हुआ, मंदिरों एवं संपत्तियों में आग लगाई गई। साथ ही 1971 युद्ध में भारतीय सेना का योगदान बताने वाले स्मारकों को तोड़ा गया। आईसीएसआर द्वारा बनाए सांस्कृतिक केंद्र में लूटपाट और आगजनी हुई। इन सभी घटनाओं को आपस में जोड़ने से यही संकेत मिलते हैं कि भारत के खिलाफ बांग्लादेश में एक बड़ा कुचक्र रचा गया है। साजिश और बदला लेने के टूलकिट के हिसाब से वहां पर चीजें हो रही हैं। मो. यूनुस जो कि अंतरिम सरकार के मुखिया हैं, लगता है वह भी दबाव में हैं। यूनुस के फैसलों के पीछे कोई और दिमाग काम कर रहा है। यूनुस उतना ही, और वही कह और कर रहे हैं जितना कि उनसे कहने और करने के लिए कहा जा रहा है। अंतरिम सरकार चलाने के लिए सेना ने उन्हें चुना है। जाहिर है कि यूनुस का चुनाव कुछ शर्तों पर हुआ होगा। इनमें से एक शर्त यह भी होगी कि भारत-बांग्लादेश के रिश्ते को सामान्य नहीं होने देना है। नफरत, संदेह का माहौल और चिंगारी हमेशा भड़का कर रखना है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि यूनुस ने अंतरिम सरकार के मुखिया के तौर पर आठ अगस्त को शपथ ली। जबकि भारत के प्रधानमंत्री से फोन पर बात करने में उन्हें आठ दिन का समय लग गया। वह भी तब जब प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से हिंदुओं की सुरक्षा और बांग्लादेश की समृद्धि में भारत के सहयोग पर बयान दिया। पीएम के इस बयान के बाद मोहम्मद यूनुस ने मोदी को फोन किया।

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