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चीन से इंपोर्ट फेब्रिक की चुनौती से निपटने के लिए सरकार की मदद से हों ठोस प्रयास

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लुधियाना की टैक्सटाइल इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स ने इस पर विस्तार से चर्चा कर दिए अहम सुझाव

लुधियाना 14 सितंबर। टैक्सटाइल सिटी कहलाने वाले महानगर लुधियाना में चाइना से इंपोर्ट हो रहा फेब्रिक बड़ी चुनौती बना है। जिसका सीधा असर इस इंडस्ट्री पर हर स्तर पर देखने को मिल रहा है। टैक्सटाइल इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स से यूटर्न टाइम ने खास बातचीत की।
— निटवेयर क्लब के प्रधान दर्शन डाबर ने इन मुद्दों पर चर्चा के दौरान कहा कि सीजन बढ़िया नहीं जा रहा है वूलन इंडस्ट्री पहले केवल फ्लोर पर निर्भर थी। अब बहुत सारे आइटम जुड़ चुके हैं, सभी चाइना से आए फेब्रिक से तैयार हो रहे हैं। फेब्रिक इंपोर्ट होने की वजह से अब तो यूपी के बड़े शहरों मेरठ, मुरादाबाद, साहरनपुर, बरेली, रामपुर तक में होजरी का माल बनने लगा है। साथ ही कंप्यूटराइज्ड मशीनें आ जाने से तमाम जगह स्कूल ड्रेसेज भी तैयार होने लगी हैं। इससे लुधियाना की होजरी इंडस्ट्री का बड़ा नुकसान पहुंचा है।
डाबर ने रोष जताया कि सरकार की पॉलिसी में भी खामियां हैं। दूसरी तरफ माहौल होजरी इंडस्ट्री के खिलाफ हो गया है। कुल मिलाकर इसका खमियाजा इस इंडस्ट्री को भुगतना पड़ रहा है। साथ ही एग्जिबिशन के मुद्दे पर साफ किया कि यहां इस बार चार बड़ी एग्जिबिशन लगी थीं। एक की कमान खुद मैंने संभाली थी। प्रदर्शनियों में सबसे चिंताजनक पहलू यह रहा कि बायर भले ही बड़ी तादाद में आए, लेकिन फाइनल ऑर्डर बहुत कम मिल सके। बायर फैक्ट्री आने, माल देखने का वादा करते हैं, लेकिन फाइनल ऑर्डर बहुत कम खरीददार देते हैं। सीधेतौर पर कहें तो इन हालात में अस्सी फीसदी लोगों को नुकसान हो रहा है। हर आदमी तक उद्यमियों की सीधी पहुंच नहीं होता है। ट्रेडर के जरिए बिक्री होती है और ट्रेडर बहुत कम हो गए हैं।
करीब बीस साल से यही मांग है कि कंप्यूटराज मशीनें जर्मन, इटली से आती है। यह निटिंग मशीनें यहां क्यों नहीं बन सकती है। चाइनीज मशीनें जरुर बन गई, वही यहां आ रही हैं। बंग्लादेश से फॉरेन ट्रेड पॉलिसी लागू है, हालात सामान्य होने पर फिर पहले जैसा कारोबारी लेनदेन होने लगेगा।
— इसी इंडस्ट्री के अनुभवी उद्यमी अजीत लाकड़ा भी कमोबेश ऐसा ही नजरिया रखते हैं। उनके मुताबिक चाइना से कपड़ा इंपोर्ट होने से लुधियाना की फैब्रिक इंडस्ट्री पर बहुत गलत असर पड़ा है। यहां सिर्फ कॉटन के कपड़े बन रहे हैं। कॉटन के कपड़े बिक भी रहे हैं, लेकिन उनमें कोई लंबी-चौड़ी कमाई नहीं होती है। चाइना से इंपोर्ट फेब्रिक के डिजाइन, कलर और स्टाइल काफी विकसित हैं, मिस-डैक्लारेशन और अंडरइन्वाइसिंग वाला कपड़ा आने से जरुरत मुताबिक यूनिट लगा ली जाती है। दस-पंद्रह इंपोर्टर हैं, उन्होंने आगे होलसेलर, सेमी-होलसेलर रखे हुए हैं। कम चीजों के साथ यूनिट लग जाती हैं। ऐसे में वूलन-होजरी में लुधियाना की मोनोपोली खत्म हो गई है।
चीन से आ रहे अंडरइन्वाइसिंग वाले कपड़े के खिलाफ यहां की इंडस्ट्री ने विरोध प्रदर्शन भी किया था। जिसके बाद चाइनीज इंडस्ट्री के चैप्टर 60 के कुछ आइटमों पर संबंधित विभाग ने एमआईपी यानि मिनिमम इंपोर्ट प्राइज लगाई थी। फिर हमें चिट्ठी आई थी कि और किन आइटमों पर एमआईपी लगानी है। जिस पर यहां की इंडस्ट्री ने मेल कर उनको सुझाव भी भेजे थे। लाकड़ा बेबाकी से कहते हैं कि बेशक चाइना से इंपोर्ट फेब्रिक अहम मुद्दा है, लेकिन लुधियाना में बहुत से एडवांस तकनीक वाले आइटम अब भी बन नहीं पा रहे हैं। दरअसल चीन जैसी डिजाइनिंग, मशीनें और यार्न हमारे पास नहीं हैं। एमआईपी लगने के बावजूद भी यहां चाइनीज फेब्रिक से उत्पादन बंद नहीं हो सकेगा, दरअसल मैन्युफैक्चर्रर इसके लिए राजी नहीं है। इसका तकनीकी हल सरकार के पास कोई नहीं है। इसका हल यही है कि सरकार की मदद से आधुनिक तकनीक वाली मशीनें, यार्न और अन्य सुविधाएं हासिल हों। बाकायदा आधुनिक मशीनें ड्यूटी फ्री की जाएं। यह स्टडी भी हो कि चीन जैसे उत्पाद यहां क्यों नहीं बन पा रहे हैं। हमारी तुलना में चीन की सरकार अपनी इंडस्ट्री को बहुत ज्यादा सपोर्ट करती है। बंग्लादेश के हालात का असर यूरोप पर ज्यादा पड़ा है। अब यूरोप के कारोबारी इधर का रुख कर सकते हैं। इसका फायदा हमें मिल सकता है। अमेरिका-यूरोप से फारेन ट्रेड के तहत भारत सरकार को प्रयास करना चाहिए।
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