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देश की समृद्धि के लिए सही नीति और रणनीति का चयन आवश्यक

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डॉ हितेष वाजपेयी

 

भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में खेती ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में केवल खेती पर निर्भर रहकर समृद्धि हासिल करना चुनौतीपूर्ण हो गया है। इसके विपरीत, वाणिज्य, यानी व्यापार, उद्योग, और सेवाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करना, देश की आर्थिक प्रगति के लिए अधिक प्रभावी तरीका साबित हो सकता है।

 

*1. खेती की सीमाएँ*

 

*अस्थिर आय:* खेती मुख्य रूप से मानसून, जलवायु, और भूमि की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। इन कारकों में अस्थिरता के कारण किसान अक्सर आर्थिक संकट का सामना करते हैं।

जलवायु परिवर्तन के चलते अनिश्चितताएँ और बढ़ रही हैं।

 

*कम योगदान:* देश की जनसंख्या में लगभग 50% लोग कृषि पर निर्भर हैं, लेकिन इसके बावजूद कृषि का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान लगभग 15-20% तक सीमित है।

इससे स्पष्ट है कि खेती से पूरी जनसंख्या का आर्थिक विकास संभव नहीं है।

 

*प्रौद्योगिकी की कमी:* खेती में नवाचार और तकनीकी प्रगति सीमित है। बड़ी संख्या में किसान आज भी पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे उत्पादकता और आय सीमित रहती है।

 

*2. वाणिज्य का महत्व*

 

*व्यापक रोजगार के अवसर:* वाणिज्य, उद्योग, और सेवा क्षेत्रों में अधिक से अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं।

तकनीकी, औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में कौशल के विकास से युवाओं को बेहतर भविष्य की संभावना मिलती है।

 

*निर्यात और आय:* वाणिज्य के माध्यम से निर्यात बढ़ता है, जिससे विदेशी मुद्रा का प्रवाह होता है। इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है।

 

*उद्योग और नवाचार:* वाणिज्य और उद्योग नए नवाचारों और प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित करते हैं। इससे उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार होता है, जो वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्रदान करता है।

 

*वित्तीय समृद्धि:* वाणिज्यिक गतिविधियाँ, जैसे बैंकिंग, बीमा, ई-कॉमर्स और उद्यमिता, देश की वित्तीय प्रणाली को मजबूती प्रदान करती हैं। इसका सीधा प्रभाव सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय पर पड़ता है।

 

*3. वाणिज्य और कृषि का संतुलन*

 

यह कहना उचित होगा कि खेती को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता,कृषि अति आवश्यक है लेकिन देश की समृद्धि के लिए *खेती और वाणिज्य* के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।

खेती को व्यावसायिक रूप देना, यानी कृषि-उद्योग का विकास करना, एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

कृषि उत्पादों का निर्यात, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का विस्तार और आधुनिक कृषि तकनीक का उपयोग करके कृषि क्षेत्र को भी वाणिज्यिक गतिविधियों से जोड़ा जा सकता है।

 

*4. विकास के उदाहरण*

 

दुनिया के कई विकसित देश जैसे सिंगापुर, जापान, और दक्षिण कोरिया ऐसे उदाहरण हैं, जिनकी कृषि क्षमता सीमित है, फिर भी वे वाणिज्य, उद्योग और सेवाओं पर आधारित अपनी अर्थव्यवस्था से दुनिया के समृद्ध देशों में गिने जाते हैं।भारत जैसे देश को भी मैन्युफैक्चरिंग, आईटी सेक्टर, स्टार्टअप इकोसिस्टम, और नवीन तकनीकों को बढ़ावा देकर वैश्विक व्यापार में अपनी पहचान बनानी चाहिए। इससे देश की समृद्धि के लिए नए द्वार खुल सकते हैं।

*केवल खेती पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं*

वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करने और व्यापक आर्थिक विकास हासिल करने के लिए वाणिज्य, उद्योग, और सेवा क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना अनिवार्य है। हालांकि खेती को पूरी तरह से छोड़ना नहीं चाहिए,परंतु खेती को भी वाणिज्यिक दृष्टिकोण से जोड़कर देश की आर्थिक समृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।(लेखक मध्यप्रदेश भाजपा के प्रवक्ता हैं।)(विनायक फीचर्स)

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