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बाल कहानी : राखी की थाली

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नयन कुमार राठी

रिंकी बिल्ली अपने घर के आगे राखी की थाली सजाकर बैठी है। वनवासी उसके सामने से निकलकर जा रहे हैं। अधिकतर कलाइयां राखियों से सजी हैं। उसे इस तरह बैठे देख सभी मुस्कुराते हुए जा रहे हैं। पर थाली सजाने का कारण कोई नहीं पूछ रहा है।

हर बरस रिंकी इसी तरह रक्षाबंधन के दिन राखी की थाली सजाकर घर के बाहर बैठ जाती है कि किसी के द्वारा पूछने पर सारी बात बतलाकर उसे राखी बांध देगी। पर हर बरस यह दिन ऐसे ही निकल जाता है। उसकी थाली सजी रह जाती है। रात में वह सजी थाली से सामान निकालकर रख देती है और राखी को संभालकर रख लेती है। उसके पास राखियों का ढेर हो गया है। वह रक्षाबंधन के दिन राखियों को फैंकने की और थाली नहीं सजाने की सोचती है। पर मन गवाही नहीं देता वह थाली सजा लेती है। दोपहर होने तक किसी द्वारा नहीं पूछे जाने पर वह थाली उठाकर अंदर आई। उसे एक ओर रखकर उदास-सी पलंग पर पड़ गई। बार-बार उसकी नजर थाली पर जाती। मन में वह बोली- पता नहीं भगवान ने किस जनम के पापों का बदला लिया है। सगा भाई नहीं है। दूर-दूर तक रिश्तेदारी में भी कोई भाई नहीं है। धरमभाई कोई बनने को राजी नहीं होता। पता नहीं हमारे पूर्वजों की करतूतों का ख्याल करके कोई हमसे रिश्ता नहीं जोडऩा चाहता हो। शाम तक और देखती हूं। नहीं तो बाजार जाकर अपने जातिभाई की तस्वीर खरीदकर उसे ही राखी बांध दूंगी। जाने कब उसकी आंख लग गई।

खट… खट… की आवाज से उसकी आंख खुली। आंख मसलते हुए वह उठी। दरवाजे के पास पहुंचकर उसे खोला। सामने चिंकी बंदर को देख वह आश्चर्य से बोली- तुम यहां कैसे…? शायद गलत जगह आ गए हो। वह दरवाजा बंद करके जाने लगी। वह हंसते हुए बोला- मैं सही जगह आया हूं। अगर अंदर ले चलो, सारी बात बतलाऊं। रिंकी उसे लेकर अंदर आई। पलंग पर बैठाया। वह पानी लेकर आई। पानी पीने के पश्चात चिंकी बोला- एक बात कहना चाहता हूं। जो बहुत दिनों से मन में है। तुमसे मिलकर कहने की सोच रहा था। पर हिम्मत ही नहीं हुई कि कहीं मेरी बात सुनकर तुम मुझे गालियां नहीं देने लगो। पर आज हिम्मत करके तुमसे कहने आया हूं। आज रक्षाबंधन है- फैसला करके आया हूं। अगर तुम्हें कोई ऐतराज नहीं हो। मुझे अपना भाई बनाकर राखी बांध सकती हो। यह कहते हुए चिंकी की आंख भर आई। हिचकियां लेते हुए रिंकी बोली- यह बात किसी से भी सुनने को बरसों से मेरे कान तरस रहे थे। आज मेरे मन की आस पूरी होगी। वह दौड़कर अंदर गई। राखी की सजी थाली लेकर आई। चौकी लगाई। चिंकी को उस पर बैठने को कहा। उसने चिंकी को तिलक लगाया। राखी बांधी और जो राखियां थाली में थीं। वे भी बांधने लगी। चिंकी बोला- यह क्या…। रिंकी हंसते हुए बोली- भैया। बरसों की आस आज पूरी होगी। ये राखियां हर बरस मैं सहेजकर रख लेती थी। अब इन्हें सहेजकर नहीं रखना होगा। हर बरस नई थाली और नई राखी सजेगी। इसलिए सभी राखियां तुम्हें बांध रही हूं। उसने सभी राखियां चिंकी को बांध दी। फिर मिठाई खिलाकर आरती उतारी।

चिंकी ने अपनी जेब में हाथ डालकर रुपये निकाले और थाली में रखकर बोला- रुपयों से अपनी मनपसंद वस्तु खरीद लाना। उसने रिंकी के चरण छुए वह हंसकर बोली- भैया आज बहन के घर भोजन करके ही जाना। वह बोला- बहन का कहना टाल कैसे सकता हूं। रिंकी भोजन बनाने में लग गई।

भोजन बनाने के पश्चात थाली सजाकर वह लाई। दोनों ने साथ में भोजन किया। भोजन पश्चात रिंकी बोली- ऐसा रक्षाबंधन बार-बार आए। भाई, बहन के घर राखी बंधवाने आए। चिंकी हंसते हुए बोला- बहना। अब तो इस भाई को हमेशा ही तुम्हारे घर आना है और रक्षाबंधन के दिन तो विशेष रूप से आना है। रिंकी उसके गले मिल गई। वह मुस्कुराने लगा। (विभूति फीचर्स)

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