कई सीनियर बीजेपी नेता, गांवों-कालोनियों के नुमाइंदों को नजरंदाज करने से रोष
चंडीगढ़ 2 जनवरी। यूटी प्रशासन की ओर से मंगलवार को गठित नई एडवाइजरी काउंसिल को लेकर विवाद पैदा हो गया है। कई सीनियर भाजपा नेता खुद को और ग्रामीण क्षेत्रों और कॉलोनियों के प्रतिनिधियों को काउंसिल में शामिल नहीं करने से खफा हैं।
उपेक्षा से नाराज प्रतिनिधियों का कहना है कि काउंसिल में इस बार केवल सूट-बूट वाले लोगों को ही शामिल किया गया है। जिन्हें गांव-कॉलोनियों की समस्याओं के बारे में पता भी नहीं है। ऐसे में उन लोगों की आवाज नीति निर्माताओं तक कैसे पहुंचेगी ? यहां काबिलेजिक्र है कि एडवाइजरी काउंसिल में भाजपा के वरिष्ठ नेता संजय टंडन, पूर्व सांसद सत्यपाल जैन और अरुण सूद को भी शामिल नहीं किया गया। इसके अलावा काउंसिल में पूर्व सरपंच, पूर्व जिला पंचायत सदस्य, लंबरदार और गांव की गुरुद्वारा सभाओं से किसी को जगह नहीं मिली।
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रामवीर भट्टी ने कहा कि वह प्रशासक से अपील करते हैं कि काउंसिल में गांव-कॉलोनियों के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए, जहां शहर की करीब आधी आबादी रहती है। गांव और कालोनीवासियों की असली समस्याओं को वे ही समझ सकते हैं, जो जमीनी स्तर पर काम करते हैं। भाजपा के नेताओं को भी इस बार नजरअंदाज किया गया है। कई वरिष्ठ नेताओं को भी जगह नहीं दी गई है, जबकि उन्हें शहर के एक-एक मुद्दे के बारे में बारीकी से पता है।
यहां काबिलेजिक्र है कि पहले एडवाइजरी काउंसिल में 57 सदस्य थे, जिनकी वर्ष 2023 में संख्या बढ़ाकर 59 कर दी गई थी। इस बार संख्या को 54 किया गया है। एडवाइजरी काउंसिल के चेयरमैन प्रशासक गुलाबचंद कटारिया होंगे। प्रशासक को हर छह महीने में काउंसिल की एक बैठक बुलानी होती है। जिसमें शहर के लगभग सभी मुद्दों पर चर्चा की जाती है और समाधान ढूंढा जाता है। काउंसिल की आखिरी बैठक 14 सितंबर को हुई थी। जिसमें मेट्रो-मोनो समेत कई मुद्दों पर काउंसिल के सदस्यों ने चर्चा की थी।
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