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मामला:एनएचएआई से मुआवजे केे तौर पर ऐंठे गये 32 करोड,अदालत ने आरोपी महिला की जमानत याचिका की खारिज

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मामला:एनएचएआई से मुआवजे केे तौर पर ऐंठे गये 32 करोड,अदालत ने आरोपी महिला की जमानत याचिका की खारिज

(कुलवंत सिंह)

पंजाब/यूटर्न/9 जुलाई: आप नेता की सहायता से जाली एफीडेविट देकर एनएचएआई से 32 करोड का मुआवजा लेने के मामले में सैशन कोर्ट ने अमरजीत कौर की जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह संवेदनशील मामला है,कोई मामूली अपराध नही,अमरजीत कौर ने अपनी दो बेटियों के भी जाली एफीडेविट बनाये जो जिसके सबूत भी अदालत के पास मौजूद है। वहीं इस मामले में कई अन्यों पर भी गाज गिरने की संभावना है। शिकायतपक्ष के वकील आदित्य जैन ने बताया कि अदालत ने दोनों पक्षों को ध्यान से सुना और अंत फैसला देते हुए जमानत याचिका को खारिज कर दिया।

गौरतलब है कि अदालत ने कहा था कि मामला केद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपने का आदेश दिया था। इस प्रकार, वह अग्रिम जमानत देने में अदालत की उदारता की हकदार नहीं है। स्वर्गीय जनरल संत सिंह, गाँव दाखा, तहसील और जिला लुधियाना में स्थित 61बी-8बी-7बी भूमि के मालिक थे और उनकी 27.11.1975 को बिना वसीयत के मृत्यु हो गई थी और वे अपनी पत्नी धरम कौर (26.09.1978 को मृत्यु हो गई), सरदूल सिंह (पुत्र की मृत्यु 07.11.1996 को मृत्यु हो गई), सुखनंदन सिंह (पुत्र की मृत्यु 07.11.1996 को मृत्यु हो गई) और नसीब कौर (पुत्री की मृत्यु 06.02.2019 को मृत्यु हो गई) को पीछे छोड़ गए थे। सरदूल सिंह ने 19.10.1975 दिनांकित एक अपंजीकृत वसीयत तैयार की, जिसे लेफिटनेंट जनरल संत सिंह द्वारा निष्पादित किया गया था। लुधियाना जिले की तहसील व गांव दाखा में जमीन के संबंध में गीतिंदर कौर और संजीत कौर के पक्ष में। नसीब कौर ने लेफिटनेंट जनरल संत सिंह की संपत्ति में अपने हिस्से का दावा करते हुए सिविल सूट दायर किया था जिसमें ऊपर उल्लिखित जमीन भी शामिल है। उक्त सिविल सूट का फैसला 20.11.2017 को तत्कालीन विद्वान सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की अदालत ने किया था। इस आदेश से व्यथित होकर नसीब कौर ने 20.11.2017 के फैसले और डिक्री के खिलाफ सिविल अपील नंबर 19/2018 दायर की, जो लंबित थी। अपील में अमरजीत कौर (वर्तमान आवेदक) और उनकी बेटियों का उनके वकील द्वारा विधिवत प्रतिनिधित्व किया गया था। अपील के लंबित रहने के दौरान, नसीब कौर की 06.02.2019 को मृत्यु हो गई और शिकायतकर्ता को उसकी पंजीकृत वसीयत दिनांक 30.01.2014 के अनुसार उसके कानूनी प्रतिनिधि के रूप में शामिल किया गया था लेफिटनेंट जनरल संत सिंह की जमीन का बड़ा हिस्सा, जिस पर मुकदमा चल रहा था, दिल्ली-कटरा एक्सप्रेस हाईवे के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहित किया गया था। शिकायतकर्ता को 07.06.2022 को पता चला कि अमरजीत कौर ने खुद के लिए और अपनी दो बेटियों गीतिंदर कौर और संजीत कौर के वकील के तौर पर लगभग 32 करोड़ रुपये का मुआवजा प्राप्त किया था। उसने लुधियाना के एसडीएम (पश्चिम) के कार्यालय में झूठा हलफनामा दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली-कटरा एक्सप्रेस हाईवे के लिए अधिग्रहित जमीन के संबंध में कोई मुकदमा लंबित नहीं है, जो पूरी तरह से झूठ था क्योंकि विभिन्न अदालतों में दीवानी मुकदमे लंबित थे और उन सभी को उक्त मामलों के बारे में पूरी जानकारी थी, जिसमें लेफिटनेंट जनरल संत सिंह सेखों की संपत्ति का मालिकाना हक विवादित था। मुकदमे के अंतर्गत आने वाली भूमि में से, जिसे एनएचएआई ने अधिग्रहित किया था, खसरा संख्या 61//23/3, 24, 62//10, 11, 19, 22/1, 20/2, 63//4, 5, 6, 15, 27, 7/1, 16/2, 16/3, 16/4, 16/6 का भुगतान अमरजीत कौर, गीतिंदर कौर और संजीत कौर ने गलत तरीके से अधिकारियों को गलत तथ्य प्रस्तुत करके गलत लाभ के लिए और अधिग्रहित भूमि पर शिकायतकर्ता के अधिकार को हड़पने के लिए पहले ही ले लिया था। इसके बाद, शिकायतकर्ता को पता चला कि अमरजीत कौर ने सिविल मुकदमा लंबित न होने के बारे में झूठे हलफनामे पेश किए थे। शेष मुआवजा राशि प्राप्त करने के लिए एसडीएम (पश्चिम), लुधियाना की अदालत के समक्ष उक्त भूमि के दीवानी मुकदमे दायर किए। अमरजीत कौर के साथ-साथ उनकी बेटियों गीतिंदर कौर और संजीत कौर की जानकारी में हलफनामे झूठे थे, जो 10.33त्न टीडीएस काटने के बाद 28,75,00,106/- रुपये की भूमि का मुआवजा प्राप्त करने के लिए सरकार और उसके अधिकारियों के साथ धोखाधड़ी करने के लिए दायर किए गए थे। कृषि भूमि के अधिग्रहण के मामले में टीडीएस लागू नहीं था और यह वापसी योग्य था। यदि सभी आरोपियों ने अपने हलफनामे में अपील की पेंडेंसी का खुलासा किया होता, तो मुआवजे की राशि उन्हें प्राप्त नहीं हो सकती थी और यह राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1957 की धारा 3-एच की उप-धारा (4) के मद्देनजर विद्वान अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, लुधियाना की अदालत में जमा कराई गई होती। सरकारी अधिकारियों को झूठे दस्तावेज पेश करके आरोपियों ने न केवल शिकायतकर्ता के साथ बल्कि सरकार के साथ भी धोखाधड़ी की और अपने गलत व्यक्तिगत लाभ के लिए उन्हें गलत नुकसान पहुंचाया।

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