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नौकरशाह बनाम सरकार : आईएएस परमपाल कौर के त्यागपत्र पर ‘तकनीकी-पेंच’ फंसा, कितना सही आप सरकार का अड़ंगा

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सीएम मान की दलील, मंजूरी नहीं देंगे, कार्रवाई भी करेंगे
कानूनी-जानकारों की नजर में मान का दावा समझ से परे

नदीम अंसारी
लुधियाना/यूटर्न/12 अप्रैल। लोकसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच आईएएस अफसर परमपाल कौर सिद्धू के भाजपा में शामिल होने पर उनके इस्तीफे को लेकर बहस छिड़ गई है। सीएम मान की दलील है कि जांच होगी, अगर उसमें इस्तीफे का मकसद सही न हुआ तो मंजूरी नहीं देंगे, कार्रवाई भी करेंगे। वहीं, पूर्व आईएएस कुलदीप वैद और कानूनी जानकारों को इस मामले में सीएम का बयान समझ से परे लग रहा है।
यहां काबिलेजिक्र है कि परमपाल कौर ने वीरवार को अपने पति गुरप्रीत सिंह मलूका के साथ भाजपा ज्वाइन की थी। वह वरिष्ठ अकाली नेता सिकंदर सिंह मलूका की बहू हैं। उनके भाजपा में शामिल होते ही मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने ट्वीट कर स्पष्ट किया था कि अभी तक परमपाल कौर का इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ। वहीं सूत्रों का कहना है कि परमपाल ने नौकरी से इस्तीफा नहीं दिया, बल्कि वालंटियर रिटायरमेंट यानि वीआरएस की प्रक्रिया अपनाई है। मुख्यमंत्री के पास उनकी फाइल अप्रूवल के लिए भेजी गई थी।
अब गौर करें मुख्यमंत्री मान ने बयान पर, उन्होंने तंज कसा कि परमपाल कौर को पहले आईएएस बनने की और अब राजनीति में आने की बेहद जल्दी है। इस्तीफा की मंजूरी के बिना वह चुनाव लड़ने को बेचैन है। मान का दावा है कि इस्तीफे की मंजूरी देनी है या नहीं, यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। यह भी कानूनी कर्तव्य है कि कब और कैसे इस्तीफा स्वीकार करना है। इसके कुछ नियम-कायदे है, जिनका हर हाल में पालन करना होता है। किसी भी अफसर का इस्तीफा देते ही स्वीकार नहीं होता, कुछ समय लगता है। सरकार परमपाल कौर सिद्धू के इस्तीफा देने के कारणों का पता लगा रही है। अगर जांच में उनका मकसद गलत पाया गया तो उन पर कार्रवाई भी होगी। उनको कैसे जल्दबाजी में आईएएस बनवाया गया था, सबको पता है।

सीएम का बयान हैरान करने वाला : वैद
पूर्व आईएएस कुलदीप वैद लुधियाना के गिल हल्के से कांग्रेसी विधायक रहे हैं। आईएएस परमपाल कौर के मुद्दे पर उन्होंने मुख्यमंत्री के बयान, दावों पर हैरानी जताई। वैद कहते हैं कि सीएम के पास इस्तीफे की फाइल महज प्रक्रिया के तहत एप्रूवल के लिए जाती है। तकनीकी तौर पर इस्तीफा देना या वीआरएस लेना आईएएस का विशेषाधिकार है। वह केंद्र सरकार के अधीन होता है। किसी भी तरह का तकनीकी अड़ंगा लगाने पर आईएएस को कैट में अपना केस ले जाना का हक भी हासिल है। वैद ने अपनी मिसाल के साथ दलील दी कि परमपाल कौर का तो कुछ महीने का ही कार्यकाल बचा था। मैंने तो चार साल से ज्यादा वक्त रहते हुए आईएएस पद से इस्तीफा दिया था।
सीएम का बयान समझ से परे : पुरंग
इस मामले को लेकर लुधियाना के सीनियर एडवोकेट मुनीष पुरंग का कहना है कि
जैसा कि आईएएस परमपाल कौर के केस में देखने, पढ़ने को मिला, उसके मुताबिक सीएम का बयान तकनीकी तौर पर समझ से परे हैं। यह तो बिल्कुल साफ है कि आईएएस केंद्र के अधीन होते हैं। उनके इस्तीफे या वीआरएस की एप्रूवल फाइल में बेशक सीएम को अड़ंगा लगाने की पावर तो है, लेकिन आमतौर पर ऐसा नहीं होता। दरअसल ऐसे तकनीकी अड़ंगे को आवेदक अधिकारी कैट में चुनौती दे सकता है। वैसे सीएम के बयान में सियासी-झलक भी है, ऐसा होता भी है, अब परमपाल कौर राजनीति में हैं और सीएम खुद राजनेता भी तो हैं।
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