किताबों के मेले

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किताबों के मेले

विवेक रंजन श्रीवास्तव

 

कलमकार जी अपने गांव से दिल्ली आये हुये थे किताबों के मेले में। दिल्ली का प्रगति मैदान मेलों के लिये नियत स्थल है, तारीखें तय होती हैं एक मेला खत्म होता है,दूसरे की तैयारी शुरू हो जाती है। सरकार में इतने सारे मंत्रालय हैं , देश इतनी तरक्की कर रहा है,कुछ न कुछ प्रदर्शन के लिये , मेले की जरूरत होती ही है। साल भर मेले चलते रहते हैं। मेले क्या चलते रहते हैं ,लोग आते जाते रहते हैं तो चाय वाले की , पकौड़े वाले की , फुग्गे वाले की आजीविका चलती रहती है। इन दिनो किताबों का मेला चल रहा है चूंकि मेला किताबों का है,शायद इसलिये किताबें ज्यादा हैं आदमी कम।जो आदमी हैं भी वे लेखक या प्रकाशक , प्रबंधक ज्यादा हैं,पाठक कम। लगता है कि पाठकों को जुटाने के लिये पाठकों का मेला लगाना पड़ेगा। मेले में तरह तरह की किताबें हैं।

कलमकार जी को सबसे पहले मिलीं रायल्टी देने वाली किताबें, ये ऐसी किताबें हैं जिनके लिखे जाने से पहले ही उनकी खरीद तय होती है, इनके लेखक बड़े नाम वाले होते हैं। कुछ के नाम उनके पद के चलते बड़े बन जाते हैं,कुछ विवादों और सुर्खियों में रहने के चलते अपना नाम बड़ा कर डालते हैं। ये लोग आत्मकथा टाइप की पुस्तकें लिखते हैं। जिनमें वे अपने बड़े पद के बड़े राज खोलते हैं,खोलते क्या किताबों के पन्नो में हमेशा के रिफरेंस के लिये बंद कर डालते हैं। इन किताबों का मूल्य कुछ भी हो,किताब बिकती है,लेखक के नाम के कांधे पर बिकती है,सरकारी खरीद में बिकती है।लेखक को रायल्टी देती है ऐसी किताब। प्रकाशक भी इस तरह की किताबें सजिल्द छापते हैं,भव्य विमोचन करवाते हैं,नामी पत्रिकायें इन किताबों की समीक्षा छापती हैं।

दूसरे तरह की किताबें होती हैं बच्चों की किताबें , अंग्रेजी की राइम्स से लेकर विज्ञान के प्रयोगों और इतिहास व एटलस की , कहानियों की , सुस्थापित साहित्य की ये किताबें प्रकाशक के लिये बड़ी लाभदायक होती हैं। इन रंगीन,सचित्र किताबों को खरीदते समय पिता अपने बच्चों में संस्कार,ज्ञान,प्रतियोगिताओं में उत्तीर्ण होने के सपने देखता है। बच्चे बड़ी उत्सुकता से ये किताबें खरीदते हैं,पर कम ही बच्चे इन्हें पूरा पढ़ पाते हैं , और उनमें से भी बहुत कम इनमें लिखा समझ पाते हैं। पर जो जीवन में इन किताबों को उतार लेता है,ये किताबें उन्हें सचमुच महान बना देती हैं। कुछ बच्चे इन किताबों के स्टाल्स के पास लगी रंगीन नोटबुक,डायरी , स्टेशनरी , गिफ्ट आइटम्स की चकाचौंध में ही खो जाते हैं,वे इन किताबों तक पहुंच ही नहीं पाते ,ऐसे बच्चे बड़े होकर व्यापारी तो बन ही जाते हैं।

कलमकार जी ज्यों ही धार्मिक किताबों के स्टाल के पास से निकले तो ये किताबें पूछ बैठी हैं -उनके आस पास सीनियर सिटिजन्स ही क्यों नजर आते हैं ? वह तो भला हो रेसिपी बुक्स ट्रेवलाग,काफी टेबल बुक्स,गार्डनिंग ,गृह सज्जा और सौंदर्य शास्त्र के साथ घरेलू नुस्खों की किताबों के स्टाल का जहां कुछ नव यौवनायें भी दिख गईं कलमकार जी को।

एक बड़ा सेक्शन देश भर से पधारे ,अपने खर्चे पर किताबें छपवाने वाले झोला धारी कलमकार जी जैसे कवियों और लेखकों के प्रकाशकों का था , ये प्रकाशक लेखक को अगले एडीशन से रायल्टी देने वाले होते हैं। करेंट एडीशन के लिये इन प्रकाशकों को सारा व्यय रचनाकार को ही देना होता है,जिसके एवज में वे लेखक की डायरी को किताब में तब्दील करके स्टाल पर लगा देते हैं।किताब का बढ़िया सा विमोचन समारोह संपन्न होता है , विमोचन के बाद भी जैसे ही घूमता हुआ कोई बड़ा लेखक स्टाल पर आता है ,किताब का पुनः लोकार्पण करवा कर हर हाथ में मोबाइल होने का सच्चा लाभ लेते हुये लेखक के फेसबुक पेज के लिये फोटो ले ली जाती है। ऐसा रचनाकार आत्ममुग्ध किताबों के मेले का आनन्द लेता हुआ , कोने के टी स्टाल पर इष्ट मित्रों सहित चाय पकौड़ो के मजे लेता मिलता है।

मेले के बाहर फुटपाथ पर भी विदेशी अंग्रेजी उपन्यासों का मेला लगा होता है,पुस्तक मेले की तेज रोशनी से बाहर बैटरी की लाइट में बेस्ट सेलर बुक्स सस्ती कीमत पर यहां मिल जाती हैं। दुनिया में हर वस्तु का मूल्य मांग और सप्लाई के इकानामिक्स पर निर्भर होता है किन्तु किताबें ही वह बौद्धिक संपदा है , जिनका मूल्य इस सिद्धांत का अपवाद है , किसी भी किताब का मूल्य कुछ भी हो सकता है इसलिये अपने लेखक होने पर गर्व करते और कुछ नया लिख डालने का संकल्प लिये कलमकार जी लौट पड़े किताबों के मेले से ।

(विभूति फीचर्स)

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