विवेक रंजन श्रीवास्तव
सर्वप्रथम बात इंक पब्लिकेशन की, दिनेश जी वाकई वर्तमान साहित्य जगत में अच्छी रचनाओं के प्रकाशन पर उम्दा काम कर रहे हैं, उन्हे और उनके चयन के दायरे में अरुण अर्णव खरे जी के व्यंग्य संग्रह हेतु दोनों को बधाई।
अरुण अर्णव खरे जी इंजीनियर हैं , अत: उनके व्यंग्य विषयों के चयन , नामकरण , शीर्षक , विषय विस्तार में ये झलक सहज ही दिखती है। किताब पूरी तो नहीं पढ़ी पर कुछ लेख पूरे पढ़े , कई पहले ही अन्यत्र पढ़े हुए भी हैं। पुस्तक का शीर्षक व्यंग्य सोशल मीडिया में इमोजी की चिन्ह वाली भाषा से अनुप्रास में प्राय: हमारी पीढ़ी की पत्नियों द्वारा अपने पतियों को एजी के संबोधन से जोड़कर बनाया गया है। बढिय़ा बन पड़ा है। लेख भी किंचित हास्य , थोड़ा व्यंग्य , थोड़ा संदेश, कुछ मनोरंजन लिए हुए है। संग्रह इकतालीस व्यंग्य लेख संजोए हुए है। टैग बिना चैन कहां, सच के खतरे , झूठ के प्रयोग ( गांधी के सत्य के प्रयोग से प्रेरित विलोम ), नमक स्वादानुसार, ड्रीम इलेवन (श्री खरे अच्छे खेल समीक्षक भी हैं), पाला बदलने का मुहूर्त रचनाएं प्रभावोत्पादक है। आत्म कथन में अरुण जी ने प्रिंट किताब के भविष्य पर अपनी बात रखी है, सही है। पीडीएफ होते हुए भी, अवसर मिला तो इस कृति को पुस्तक के रूप में पढऩे का मजा लेना पसंद करूंगा।
(विनायक फीचर्स)