watch-tv

भाजपा के मन मोहन सिंह हैं अपने मोदी

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

Listen to this article

भाजपा के मन मोहन सिंह हैं अपने मोदी जी

*****************************************

अठरहवीं लोकसभा का सत्र आषाढ़ के दूसरे दिन से शुरू हो रहा है । आषाढ़ यानि मानसून, यानि ये संसद का पहला मानसून सत्र है । इस सत्र में एक-दो दिन तो नए सदस्यों के शपथ ग्रहण में ही खर्च हो जायेंगे। बाकी फिर सरकार पर विपक्ष और विपक्ष पर सरकार बरसेगी। कभी प्रोटेम स्पीकर के चयन को लेकर,कभी लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव को लेकर । नीट का लीकेज और शेयर बाजार में सियासत के मुद्दे तो बाद में विमर्श में आएंगे।

नई लोकसभा ‘पुरानी बोतल में नयी शराब ‘ जैसी है ,केवल बोतल पर लगा लेबल बदला है । प्रधानमंत्री ,रक्षा मंत्री,वित्तमंत्री,भूतल-सड़क मंत्री और यहां तक कि गृहमंत्री तक पुराने हैं। फर्क ये है कि अब सियासत की इस बोतल पर अकेले मोदी जी नहीं बल्कि साथ में टीडीपी और जदयू के नेताओं के चेहरे भी नमूदार हो रहे हैं। विपक्ष की बोतल में लेबल भी नया है और शराब भी नयी है। बड़ी संख्या में विपक्ष में नए चेहरे जीतकर आये है। नई संसद में पुरानी स्मृति ईरानी की याद बहुत सताएगी। लेकिन नयी संसद में अब हमारे प्रधानमंत्री जी यदाकदा पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मन मोहन सिंह की कमी को जरूर पूरा कर देंगे। क्योंकि उन्होंने पिछले दस साल में मौन रहने की साधना को सिद्ध कर लिया है।

कांग्रेस के मनमोहन सिंह अब सियासत से एक तरह से निवृर्ति ले चुके है। ऐसे में संसद को एक तो मन मोहन सिंह चाहिए था। भाजपा के भाग्यविधाता और तीसरी बार प्रधानमंत्री बने श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी डॉ मन मोहन सिंह की जगह लेने जा रहे हैं। वे न मणिपुर के मामले पर बोलते थे और न अब नीट परीक्षा के लीकेज के मामले में कुछ बोल रहे है। वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख डॉ मोहन भगवत की सीख के बाद भी नहीं बोले। वे बोलेंगे, लेकिन तब बोलेंगे जब बहुत जरूरी होगा । खैर संसद में तो उन्हें बोलना ही होगा । राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के वक्त तो वे अपना मौन तोड़ेंगे ही।

मै सदन में नए मनमोहन को उपलब्ध कराने के लिए काशी की जनता के साथ ही भाजपा को भी बधाई देना चाहता हूँ। पूर्व प्र्धानमनी डॉ मन मोहन सिंह ने मौन रहकर अपनी सरकार को एक दशक चलाया था। भाजपा के मनमोहन ने भी उनकी परम्परा को कायम रखा ,न सिर्फ कायम रखा बल्कि वे तीसरी बार भी सरकार चलने के लिए कमर कसकर मैदान में है। हालाँकि इस तीसरे मौके पर उनके साथ बैशाखियाँ भी हैं । लेकिन वे बैशाखियों पर भी दौड़ते नजर आ रहे हैं उनकी चाल,चरित्र और चेहरे में कोई तब्दीली इस देश को नहीं दिखाई दे रही । वे भीतर से भी बदले होंगे इस बात कभी कोई गारंटी नहीं है।

मोदी जी देश को गारंटिड सरकार देने वाले कोई पहले प्रधानमंत्री नहीं है। उससे पहले देश को पहली गारंटी कांग्रेस के तत्कालीन नेता और प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने देश की जनता को साल में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी थी। इस योजना का नाम था महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार योजना। ये योजना आज भी जारी है । गनीमत है कि हमारे मोदी जी की सरकार ने अब तक शहरों ,स्टेशनों और दंड संहिताओं के नाम बदलने की सूची में मनरेगा को शामिल नहीं किया है। वे इसे अब तक बदल देते लेकिन शायद इस योजना को महात्मा गाँधी ने बचा लिया। महात्मा गाँधी के नाम पर हमारी सरकार,भाजपा और संघ सब सकुचा जाते हैं । भले ही महात्मा गाँधी इस परिवार की आँख की सबसे बड़ी किरकिरी हों।

मुझे लगता है कि भाजपा के मौजूदा नेतृत्व और नयी सरकार के ऊपर अभी तक संघ के प्रमुख डॉ मोहन भगवत और उनके कनिष्ठ इंद्रेश जी के उपदेशों का कोई असर नहीं हुआ है। सरकार का ‘ अहंकार ‘ आज भी पहले की तरह ठाठें मार रहा है।अहंकार आज भी सातवें-आठवें आसमान पर है। अहंकार आसानी से मरता भी तो नहीं है । नारद का अंहकार समाप्त करने के लिए विष्णु को माया रचना पड़ी थी। आज के संघी नेतृत्व में शायद इतनी तथा बची नहीं है कि वो मौजूदा पार्टी और सरकार के नेतृत्व का अहंकार समाप्त करने के लिए कोई माया रच पाए। संघ के पास ऐसा कोई शिवदूत भी नहीं है जो सरकार को आइना दिखने का दुस्साहस कर पाए। चंद्र बाबू नायडू और नीतीश कुमार की तो हैसियत ही क्या है ? ये शिव के गण हो सकते थे लेकिन ये दोनों तो पहले दिन से ही मोदी जी के चरणों में लंबलेट नजर आ रहे हैं।

देश की जनता ने जो जनदेश दिया है वो पूरे पांच साल के लिए दिया है। ये अहंकारी ही सही लेकिन मौजूदा सत्तारूढ़ गठबंधन का दायित्व है कि वो नयी सरकार को पूरे पांच साल चलाये ,लेकिन लोकसभा के अस्थाई अध्यक्ष के मनोनयन से लेकर स्थायी अध्यक्ष के लिए प्रत्याशी चयन और विपक्ष को उपाध्यक्ष का पद देने के मुद्दे पर सरकार का रुख ये दर्शाता है कि वो सरकार को पांच साल चलने के मूड में नहीं है। भाजपा अपने पूर्व के लक्ष्य को हासिल करने के लिए बीच में ही चुनाव मैदान में उतरने का दुस्साहस कर सकती है। वैसे भी भाजपा देश और दुनिया की अकेली ऐसी पार्टी है जो चौबीस घण्टे चुनावी मोड में रहती है। ये बुरी बात भी है और अच्छी बात भी। बुरी इसलिए की चौबीस घंटे चुनावी नाव पर सवार रहने की वजह से भाजपा की सरकार न ढंग से विकास कार्य कर पाती है और न देश के भाईचारे की सुरक्षा कर पाती है। भाजपा को सोते-जागते अपने तख्त की चिंता सताती रहती है।

बहरहाल हमें देखना होगा कि हमारी नई विकलांग सरकार क्या नियत के मुद्दे पर युवाओं के साथ भी ठीक वैसा ही व्य्वहार करेगी जैसा कि उसने अतीत में किसानों के साथ किया था। हमें देखना होगा कि हमारी नयी सरकार अपने पुराने कार्यकाल में 700 से ज्यादा किसानों की बलि ले चुकी है वो क्या नीट के मामले पर भी युवाओं का बलिदान लेगी या फिर सीधे-सीधे समस्या का निराकरण करेगी ? सरकार जो चाहे कर सकती है । सरकार सम्प्रभुता सम्पन्न होती है । तमाम शक्तियां उसके हाथों में निहित होती है। उसके सामने दो ही विकल्प हैं। पहला ये कि वो नीट के साथ ही देश के तमाम राज्यों में पिछले दस साल में पनपे नकल माफिया को जमीदोज करे,दोषियों को सींखचों के पीछे भेजे भले वे लोग भाजपा और उनकी सहयोगी पार्टियों से ही क्यों न जुड़े हों। दूसरा रास्ता ये है कि वो अपनी बुलडोजर संहिता से देश के किसानों की तरह ही युवाओं के आंदोलन को भी कुचल दे। चीन के नेतृत्व ऐसा कर चुका है । उसने वर्षों पहले सरकार के खिलाफ बीजिंग के थ्यानमन चौक पर जमा हजारों युवाओं पर टैंक चढ़ा दिए थे।

देश की अठारहवीं संसद और नयी सरकार का भविष्य अब जनता के हाथों में नहीं है । अब संसद ,सरकार का भविष्य सरकार और विपक्ष के हाथ में है। जनता तो जनादेश देकर घर में बैठी है । उसे मंहगाई से कोई शिकायत नहीं ,उसे विंभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक होने कोई शिकायत नहीं। जनता तो ‘ शाक-प्रूफ ‘ हो चुकी है । जनता के मौन का मतलब ये नहीं है कि अब देश की संसद भी मौन रहे । जनता के मौन का ये मतलब भी नहीं है कि सरकार हर मसले पर गुड़ खाकर बैठ जाये। अब सरकार को उत्तरदायी बनना पड़ेगा। हर सवाल का उत्तर देना पडेगा और यदि ऐसा नहीं होगा तो स्थितियां तेजी से बदलेंगी। क्योंकि अब सवाल भाजपा,कांग्रेस या संघ का नहीं बल्कि देश के भविष्य का है । देश की प्रतिष्ठा का है। अब पढ़े-लिखों पर अनपढ़ों का राज नहीं चलने वाला,।अब देश की महिला बाल विकास मंत्री को हिंदी की वर्तनी लिखना सीखना ही होगा।

@ राकेश अचल

achalrakesh1959@gmail.com

Leave a Comment